ये फिल्म नक्सल प्रभावित इलाके में सालों बाद चुनाव करवाने को लेकर बनाई गई थी. इस फिल्म में राजकुमार राव, पंकज त्रिपाठी, संजय मिश्रा और अंजलि पाटिल जैसे कलाकारों ने दमदार भूमिका निभाई थी. फिल्म में राजकुमार राव को छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाके में चुनावी ड्यूटी के लिए भेजा जाता है. जहां पर वो सुरक्षा बलों के अजीब से रवैये और नक्सलियों के डर के बीच चुनाव करवाने की कोशिश करते हैं. उन्हेंअबूझमाड़ के एक ऐसे दुर्गम इलाके में चुनाव करवाना होता है जहां पर पहुंचना भी काफी मुश्किल है.... क्योंकि वहां सिर्फ 76 मतदाता रहते हैं.
फिल्म का कोंडागांव से खास रिश्ता
इस फिल्म का बस्तर के कोंडागांव जिले से गहरा नाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि फिल्म के कई कलाकार कोंडागांव ज़िले के कोंगरा गांव के रहने वाले हैं. ऐसे चुनावों से ठीक पहले हमने जूनो नेताम और सुखधर दो कलाकारों से मुलाकात की. बात करें सफर की तो...कोंडागांव से नारायणपुर के रास्ते में लगभग 20 किलोमीटर जाने के बाद रास्ता बाएं तरफ मुड़ता हैं. जहां से कच्चा रास्ता शुरू हो जाता है. रस्ते को देखकर ही पता चलता है कि गांव की हालत बेहद खराब होगी। जब हमने जूनो नेताम के परिवार से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि गांव में 1 साल पहले नल का कनेक्शन आ गया, 4-5 साल पहले स्कूल और अस्पताल भी बन चुका है.
.....लेकिन फिर से न्यूटन की तरफ लौटते हैं जिसमें एक डॉयलॉग है “बड़े बदलाव एक दिन में नहीं आते, बरसों लग जाते हैं जंगल बनने में,” जूनो नेताम से बातचीत में पता लगा कि पहले-पहल स्कूल की बिल्डिंग नहीं थी, पानी की व्यवस्था नहीं थी लेकिन 4-5 सालों में सब हो गया. हालांकि उनकी बहू सुखवती नेताम को हमने रसोई में चूल्हे में खाना बनाते देखा तो पता लगा कि उन्हें उज्जवला योजना का लाभ नहीं मिला है, साथ ही महतारी वंदन योजना के 1000 रुपये भी परिवार के पास नहीं पहुंचे हैं.
14 दिन की शूटिंग के मिले 1400 रुपये
हमने सुखधर से पूछा फिल्म में उनका रोल क्या था तो उन्होंने हलबी भाषा में फिल्म का डायलॉग दोहराते हुए कहा, ❝अगर वोट दोगे तो हाथ काट देंगे❞.... उन्होंने आगे बताया कि हालांकि फिल्म की शूटिंग 14 दिनों तक हुई जिसके लिए उन्हें 1400 रु. मिले. उन्होंने ये भी बताया कि फिल्म बनाने के बाद फिल्म की टीम फिर कभी गांव नहीं आई.
"... फिल्म की शूटिंग दिल्ली में हुई"
दूसरे कलाकार जूनो नेताम की बात करें तो उन्होंने 3 साल पहले बेटे के शादी करवाई है, उनकी बहू ने हमें बताया कि उन्हें पहले पता नहीं था कि उनके परिजनों ने फिल्म में काम किया है लेकिन उनके पति ने उन्हें बताया जिसके बाद उन्होंने न्यूटन फिल्म देखी. हालांकि रील और रीयल का फर्क समझिये जब हमने पूछा शूटिंग कहां हुई तो जूनो और सुखधर ने कहा दिल्ली गए थे. ऐसा क्यों कहा...? दरअसल, उनके लिए गांव से बाहर निकलना ही दिल्ली है. जबकि फिल्म की शूटिंग दल्ली राजहरा में हुई थी जो कोंडागांव से 170 किलोमीटर दूर है.
इसके बाद हमारी बातचीत गांव मानकर नेताम से हुई. उनका कहना था उन्होंने नक्सलियों के बारे में सुना है लेकिन कभी देखा नहीं, हालांकि ये इलाका माड़ डिविजन के तहत आता था. नक्सली यहां से अबूझमाड़ के लिए मूवमेंट करते थे... इस कहानी में फिल्म का एक और हिस्सा देखने को मिलता है जहां एक पुलिस अफसर न्यूटन को अपनी बंदूक देकर कहते हैं ये देश का भार है जिसे जवान अपने कंधे पर उठाते हैं. लोकतंत्र के इस पर्व में ये भार पूरा देश उठता है.
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