छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले के दूरस्थ इलाकों में से एक बिहारपुर में स्थित ITI कॉलेज इन दिनों बदहाली का प्रतीक बन चुका है. कॉलेज के मुख्य प्रवेशद्वार पर दिनभर ताले लटके रहते हैं. यहां, 14 बच्चों का दाखिला है, लेकिन पढ़ाने और अन्य कामों के लिए कॉलेज में सिर्फ एक शिक्षिका ही उपलब्ध है. वह भी सप्ताह में एक-दो दिन ही क्लास ले पाती हैं, जिससे छात्रों की पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हो रही है.
दो साल से लैब पर ताला, बिना प्रैक्टिकल कैसे हो ITI?
आईटीआई की पढ़ाई का सबसे अहम हिस्सा प्रैक्टिकल और मशीनों पर ट्रेनिंग होती है. लेकिन बिहारपुर ITI की लैब पिछले दो साल से बंद है. न मशीनें चलती हैं, न किसी तरह का प्रैक्टिकल कराया जाता है. बच्चे हर दिन पहुंचते हैं, लेकिन खाली कमरा और बंद लैब देखकर मायूस लौटना पड़ता है. छात्रों का सीधा सवाल है कि बिना लैब और प्रैक्टिकल्स के ITI की पढ़ाई का क्या मतलब रह जाता है.
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इकलौती शिक्षिका बोलीं- पढ़ाई ठीक से हो ही नहीं पा रही
कॉलेज में तैनात एकमात्र महिला शिक्षिका ने भी माना कि वे ठीक से पढ़ा नहीं पा रहीं. उन्हें शिक्षण के साथ क्लर्क का काम, रिकॉर्ड संभालना, फॉर्म भरना, प्रशासनिक फाइलों की प्रक्रिया और कई बार जिला मुख्यालय के दौरे तक की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है. इन अतिरिक्त कार्यों में समय निकल जाता है, जिससे क्लास की संख्या और भी कम हो जाती है.
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मंत्री बोलीं- अधिकारी आना ही नहीं चाहते
इस मामले पर महिला एवं बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े से सवाल पूछा गया, तो उनका जवाब बेहद चौंकाने वाला था. उन्होंने कहा कि बिहारपुर जैसे इलाकों में कोई अधिकारी आना ही नहीं चाहता. नियुक्ति होते ही शिक्षक ट्रांसफर के लिए आवेदन लगा देते हैं और दूसरे क्षेत्र में चले जाते हैं. तो क्या माना जाए कि इस अधिकारी अपनी मनमानी चला रहे हैं, अधिकारी और कर्मचारियों में सरकार का डर खत्म हो गया है?
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