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'नक्सलियों ने मेरे सामने बेटे की गर्दन काट दी और...' बस्तर में 'नक्सल क्रूरता' की कहानी पीड़ित की जुबानी

Bastar Naxal Victims: बस्तर जिले के नक्सल पीड़ित लोगों ने नई दिल्ली में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मूऔर केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की. इस दौरान लोगों ने कहा कि हमारा पुराना बस्तर लौटा दीजिए, जहां शांति और खुशहाली थी.

'नक्सलियों ने मेरे सामने बेटे की गर्दन काट दी और...' बस्तर में 'नक्सल क्रूरता' की कहानी पीड़ित की जुबानी

देश की राजधानी दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब के हॉल में बड़ी सी स्क्रीन पर एक डॉक्यूमेंट्री प्रदर्शित की जा रही है. करीब 52 वर्षीय दयालुराम जैन उस डॉक्यूमेंट्री को बड़ी ही खामोशी से एकटक देख रहे हैं. डॉक्यूमेंट्री में छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सल हिंसा के पीड़ितों का दर्द बयां किया जा रहा है, जिसका एक पात्र खुद दयालु राम भी हैं. दयालुराम छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के कांकेर जिले के कलारपारा के रहने वाले हैं.

पिता के सामने बेटे की हत्या... तो किसी को कुल्हाड़ियों से काटा

एनडीटीवी से बातचीत में दयालु बताते हैं, 'घटना 16 जून, 2018 की देर शाम करीब 8 बजे की है. वर्दीधारी नक्सलियों का एक दल मेरे घर पहुंचा, उन्होंने मुझसे पूछा कि तुम्हारा बेटा गेंदालाल कहां है, मैंने कहा- वो सो गया है, उन्होंने मेरे बड़े बेटे का कमरा बाहर से बंद कर दिया और छोटे बेटे गेंदा के गले में रस्सी बांधकर उसे घसीटते हुए बाहर ले आए. मुझे भी उन्होंने बंधक बनाया और दोनों को घर से आधा किलोमीटर दूर ले गए.

दयालु बताते हैं, 'मैं रास्ते भर गिड़गिड़ाते रहा कि मेरे बेटे का कोई कसूर नहीं है उसे छोड़ दो, लेकिन वो नहीं माने. फिर मेरे सामने ही मेरे बेटे के गर्दन को कुल्हाड़ी से काट दिए. उसकी गर्दन लटक रही थी, मैं हाथों से पकड़ा तो मुझे भी डंडे और पैर से मारने लगे. मुझे पत्थर से भी मारा. मैं जब बेहोश हो गया तो मुझे मरा समझकर छोड़ दिया.'

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बेटे को नक्सलियों ने 'क्रूरता' से मार डाला

बातचीत में दयालु बार-बार भावुक हो जाते हैं. रुआंसा हुए दयालु बताते हैं, 'बेहोशी की हालत में गांव और घरवालों ने मुझे अस्पताल में भर्ती कराया. चार महीने तक मेरा इलाज चला. मैं अपने बेटे के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो सका. उनके पास कोई प्रमाण नहीं था, बस शक था कि हम पुलिस को उनकी सूचना देते हैं, मैं बार-बार गिड़गिड़ाता रहा, लेकिन... हमार क्या कसूर था, बेटे को नक्सलियों ने क्रूरता से मार डाला.'

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पीड़ित ने कहा- अपना पैर, हाथ और अपनी आंखों की रोशनी को चुका

दरअसल, नक्सल हिंसा पीड़ितों का 55 सदस्यीय एक जत्था देश की जनता को अपनी व्यथा बताने बस्तर से दिल्ली पहुंचा. दयालु की तरह ही सभी की नक्सल हिंसा की दंश की अपनी कहानी है. कोई नक्सलियों द्वारा प्लांट किए आईईडी की चपेट में आने से अपना पैर, हाथ तो कोई अपनी आंखों की रोशनी खो चुका है. कुछ वो ग्रामीण भी हैं, जिनके परिवार वाले नक्सल हिंसा में बुरी तरह प्रभावित हुए.

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पीड़ितों ने अमित शाह और राष्ट्रपति को सुनाई कहानी

बस्तर शांति समिति के नेतृत्व में आए इस दल ने 21 सितंबर, 2024 को राष्ट्रपति द्रोपदी मूर्मू से मुलाकात की. इससे पहले 19 सितंबर की सुबह दिल्ली के जन्तर-मन्तर के घरना स्थल पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया. इसी दिन शाम को केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह से उनके शासकीय निवास पर मुलाकात की. 20 सितंबर की सुबह कंस्टीट्यूशन क्लब और शाम को जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) पहुंचे. दल का उद्देश्य नक्सल हिंसा से मिले दर्द की व्यथा जिम्मेदारों को बताना और बस्तर को नक्सल हिंसा से मुक्त कराने की मांग करना था.

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