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This Article is From Dec 07, 2023

SBI Data : चुनावी महीने में जमकर बिके इलेक्टोरल बॉन्ड, 2018 विधानसभा चुनाव के मुकाबले 400% की ग्रोथ

Assembly Election 2023 : एसबीआई के आंकड़ों से पता चला कि 6 नवंबर से 20 नवंबर तक हुई सबसे हालिया बिक्री में 1 हजार 6.03 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड बेचे गए और भुनाए गए हैं. वहीं इस कुल राशि का 99 प्रतिशत हिस्सा 1 करोड़ रुपये मूल्यवर्ग के इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री के माध्यम से जुटाया गया था.

SBI Data : चुनावी महीने में जमकर बिके इलेक्टोरल बॉन्ड, 2018 विधानसभा चुनाव के मुकाबले 400% की ग्रोथ

Electoral Bond Latest Sales : 2017 में केंद्र सरकार द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड योजना (Electoral Bond Scheme) की घोषणा की गई थी. इसके साल यानी 2018 में 29 जनवरी को सरकार ने कानूनी तौर पर इस योजना को लागू कर दिया था. यह एक ऐसा बॉन्ड है जिसके जरिए कोई भी कंपनी, कोई भी कारोबारी और यहां तक कि आम लोग बिना अपनी पहचान उजागर किए राजनीतिक दलों (Political Parties) को चंदा दे सकते हैं. इलेक्टोरल बॉन्ड सामान्यत: एक हजार रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये तक के बेचे जाते हैं. इन बॉन्ड को भारतीय स्टेट बैंक (State Bank of India) यानी एसबीआई (SBI) की अधिकृत शाखाओं से खरीदा जा सकता है. हाल ही में इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के तहत हुई हालिया ब्रिकी के आंकड़े सामने आए हैं जिनमें बताया गया है कि देश के पांच राज्यों मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh), छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh), राजस्थान (Rajasthan), तेलंगाना (Telangana) और मिजोरम (Mizoram) में विधानसभा चुनाव के दौरान कितने के इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे गए हैं. 

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400% का दिखा उछाल

इंडियन एक्सप्रेस ने सूचना के अधिकार (Right to Information) यानी आरटीआई (RTI) के तहत एसबीआई का डाटा एक्सेस किया है. जिसमें इलेक्टोरल बॉन्ड की हालिया बिक्री का खुलासा हुआ है. 

एसबीआई के आंकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान अज्ञात इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए जो राजनीतिक फंडिंग (Political Funding) हुई है, वह 2018 में इन राज्यों में हुए पिछले चुनावों की तुलना में 400% से अधिक रही. .

एसबीआई के आंकड़ों से पता चला कि 6 नवंबर से 20 नवंबर तक हुई सबसे हालिया बिक्री में 1 हजार 6.03 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड बेचे गए और भुनाए गए हैं. वहीं इस कुल राशि का 99 प्रतिशत हिस्सा 1 करोड़ रुपये मूल्यवर्ग के इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री के माध्यम से जुटाया गया था.

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कहां कितने की बिक्री हुई?

इस बार इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम के तहत की गई हालिया बिक्री (29वीं) में सबसे अधिक 359 करोड़ रुपये की बिक्री तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में हुई, इसके बाद बिक्री में मुंबई (259.30 करोड़ रुपये) और दिल्ली (182.75 करोड़ रुपये) का स्थान रहा. जब इलेक्टोरल बॉन्ड को भुनाने की बात आती है तो उसमें नई दिल्ली ब्रांच का नाम में सबसे ऊपर रहता है, इस बार 882.80 करोड़ रुपये की राशि यहां से भुनाई गई, वहीं हैदराबाद 81.50 करोड़ रुपये के साथ दूसरे स्थान पर था.

तेलंगाना के अलावा अन्य राज्यों में जहां चुनाव हुए, उनमें जयपुर (राजस्थान) में 31.50 करोड़ रुपये, रायपुर ( छत्तीसगढ़ ) में 5.75 करोड़ रुपये और भोपाल (मध्य प्रदेश) में 1 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड बेचे गए. हालांकि, इन तीनों राज्यों में से किसी ने भी कोई नकदीकरण या भुनाने की प्रक्रिया दर्ज नहीं की गई. वहीं मिजोरम में इलेक्टोरल बॉन्ड की कोई बिक्री ही दर्ज नहीं की गई.

जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम में बॉन्ड खरीदने वाले का नाम उजागर नहीं होता है, इस पूरी प्रक्रिया में दानकर्ता और प्राप्तकर्ता अज्ञात रहते हैं, लेकिन डेटा यह दर्शा रहे हैं कि सबसे अधिक फंडिंग हैदराबाद, मुंबई और दिल्ली से आई और दिल्ली की पार्टियों में गई. इसका मतलब है कि ये बॉन्ड राष्ट्रीय पार्टियों की ओर गए हैं.

यहां पर यह बताना जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) द्वारा चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखने के ठीक दो दिन बाद 4 नवंबर को सरकार द्वारा नवीनतम बॉन्ड की घोषणा की गई थी.

2018 में हुई थी 184.20 करोड़ रुपये की बिक्री

वहीं एक अन्य आरटीआई जवाब में इंडियन एक्सप्रेस को एसबीआई आंकड़ों से पता चला है कि 2018 में, जब 1 नवंबर से 11 नवंबर तक चुनावी बॉन्ड बेचे गए थे तब कुल बिक्री 184.20 करोड़ रुपये की हुई थी. उस साल नवंबर-दिसंबर में इन पांच राज्यों (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम) में चुनाव हुए थे.

कभी भी नहीं खरीद सकते हैं चुनावी बॉन्ड

इलेक्टोरल बॉन्ड पूरे वर्ष में कभी भी नहीं खरीदा जा सकता है. इसे केवल जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों में 10-दिवसीय विंडो के बीच ही खरीदा जा सकता है.

इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने के लिए अधिकृत एकमात्र बैंक SBI है. 2018 के बाद से 29 चरणों में इस योजना के माध्यम से पार्टियों द्वारा जुटाई गई कुल राशि का आंकड़ा अब 15 हजार 922.42 करोड़ रुपए से अधिक हो गया है.

सरकार कह रही पारदर्शी, ADR बता रही चुनावी भ्राष्टाचार

जहां एक ओर सरकार की तरफ से यह कहा जा रहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू की गई है. वहीं दूसरी ओर इसके विरोध में यह कहा जा रहा है कि यह अपारदर्शी है क्योंकि इसमें दानदाताओं की पहचान गुप्त रखी गई है. एक रिपोर्ट के अनुसार 2017 में दो गैर सरकारी संगठनों (NGO), कॉमन कॉज और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने कुछ याचिकाएं दायर की थीं. जिनमें कहा गया था कि सरकार ने कानून में संशोधन कर असीमित राजनीतिक चंदा, यहां तक विदेशी कंपनियों से भी चंदा लेने के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं. उन याचिका में यह आशंका जताई गई थी कि इससे बड़े पैमाने पर चुनावी भ्रष्टाचार को वैध बनाया जा रहा है.

चुनाव निगरानी संस्था एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2016-17 और 2021-22 के बीच पांच वर्षों में कुल सात राष्ट्रीय दलों और 24 क्षेत्रीय दलों को चुनावी बॉण्ड से कुल 9 हजार 188 करोड़ रुपये मिले. इस 9 हजार 188 करोड़ रुपये में से अकेले BJP की हिस्सेदारी लगभग 5 हजार 272 करोड़ रुपये रही. यानी कुल इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए दिए गए चंदे का करीब 58% बीजेपी को मिला. इसी अवधि में कांग्रेस को इलेक्टोरल बॉन्ड से लगभग 952 करोड़ रुपये मिले, जबकि तृणमूल कांग्रेस (TMC) को 767 करोड़ रुपये मिले.

एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2017-18 और वित्त वर्ष 2021-22 के बीच राष्ट्रीय पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये मिलने वाले चंदे में 743% की बढ़ोतरी हुई. वहीं दूसरी तरफ इसी अवधि में राष्ट्रिय पार्टियों को मिलने वाला कॉर्पोरेट चंदा केवल 48% बढ़ा. एडीआर के मुताबिक 2017-2022 के बीच पांच सालों में से वर्ष 2019-20 में सबसे अधिक 3 हजार 439 करोड़ रुपये का चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये आया था. गौर करने वाली बात है कि 2019-20 लोकसभा चुनाव का वर्ष था. इसी तरह वर्ष 2021-22 में, जिसमें 11 विधानसभा चुनाव हुए, उसमें राजनीतिक पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये लगभग 2 हजार 664 करोड़ रुपये का चंदा मिला.

चुनाव आयोग, आरबीआई और कोर्ट ने क्या कहा?

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट के सामने दायर एक हलफनामे में इलेक्शन कमीशन ने कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता को खत्म कर देंगे और इनका इस्तेमाल भारतीय राजनीति को प्रभावित करने के लिए विदेशी कॉर्पोरेट शक्तियों को आमंत्रण देने जैसा होगा. इलेक्शन कमीशन ने ये भी कहा था कि कई प्रमुख कानूनों में किए गए संशोधनों की वजह से ऐसी शेल कंपनियों (Shell Companies) के खुल जाने की संभावना बढ़ जाएगी, जिन्हें सिर्फ राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के इकलौते मकसद से बनाया जाएगा.

एडीआर की याचिका के अनुसार भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बार-बार चेतावनी दी थी कि इलेक्टोरल बॉन्ड का इस्तेमाल काले धन के प्रसार, मनी लॉन्ड्रिंग और सीमा-पार जालसाजी को बढ़ाने के लिए हो सकता है.

इलेक्टोरल बॉन्ड को एक 'अपारदर्शी वित्तीय उपकरण' कहते हुए रिजर्व बैंक ने कहा था कि चूंकि ये बॉन्ड मुद्रा की तरह कई बार हाथ बदलते हैं, इसलिए उनकी गुमनामी का फ़ायदा मनी-लॉन्ड्रिंग के लिए किया जा सकता है.

यह भी पढ़ें : ADR Report : सुनो, सुनो, सुनो… मध्य प्रदेश की 16वीं विधानसभा में बैठेंगे 205 मालदार और 124 दागदार ‘माननीय'

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