Madhya Pradesh Congress: मध्य प्रदेश में पहले विधानसभा चुनाव में मिली हार और उसके बाद लोकसभा के चुनाव की हार से आहत मध्य प्रदेश कांग्रेस अब अंतर्कलह की आग में झुलसने लगी है और खुले तौर पर संगठन पर उंगलियां उठाई जा रही हैं. इसका जीता-जागता उदाहरणअमरवाड़ा उपचुनाव हैं, जहां एक बार फिर कांग्रेस अपने ही गढ़ में हार आई. इससे मध्य प्रदेश में पार्टी की लोकसभा और विधानसभा के बाद एक बार और फजीहत हुई.
अमरवाड़ा उपचुनाव चुनाव-प्रचार में भी कांग्रेस के अंदर दिखी गुटबाजी
गौरतलब है अमरवाड़ा उपचुनाव में चुनाव प्रचार के दौरान भी पार्टी नेताओं के बीच अंदरूनी गुटबाजी दिखाई दे रही थी. अभी हाल में महिला कांग्रेस की हुई बैठक में राष्ट्रीय अध्यक्ष अलका लांबा और महामंत्री मधु शर्मा के बीच तीखी नोंक-झोंक रिपोर्ट हुई थी. यह नोंक-झोंक इतनी बढ़ गई थी कि मीटिंग में मधु शर्मा जूते मारने तक पर आ गई थीं.
अलका लांबा और मधु शर्मा के बीच हुई नोंक-झोंक जूतमपैजार तक पहुंची
रिपोर्ट के मुताबिक अलका लांबा के साथ तीखी नोंक-झोंक को लेकर पार्टी ने मधु शर्मा को ही नोटिस जारी किया है. कांग्रेस से जुड़े लोगों का कहना है कि पार्टी के भीतर अब भी गुटबाजी खत्म नहीं हुई है. इसी का नतीजा है कि प्रदेश कार्यकारिणी तक नहीं बन पा रही है.
वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं की कार्यशाली से कांग्रेस से छिटके जन आधार वाले नेता
अब कांग्रेस के प्रवक्ता डॉ अमीनुल सूरी ने भी पार्टी में गुटबाजी को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं. कांग्रेस नेता वरिष्ठ नेता कार्यकर्ताओं की बात सुनने को तैयार नहीं हैं और आने वाले समय में कोई बड़ा विस्फोट हो जाए तो आश्चर्य नहीं होगा. माना जा रहा है कि बड़े नेताओं की ही कार्यशैली ही वह वजह है कि बड़ी तादाद में जन आधार वाले नेता कांग्रेस छोड़कर रहे हैं.
पूर्व सीएम कमलनाथ के दौर में थमी थी गुटबाजी और पार्टी सत्ता तक पहुंची
बकौल अमीनुल सूरी, राज्य की कांग्रेस की बड़ी पहचान आपसी गुटबाजी रही है और इसी के चलते कांग्रेस जमीनी स्तर पर कमजोर होती रही है. 2018 विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस की कमान कमल नाथ को सौंपी गई थी तो स्थितियां धीरे-धीरे बदलने लगी थी और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी.
हार के बाद भी नहीं खत्म हो रही मध्य प्रदेश कांग्रेस में अंदरूनी गुटबाजी
राजनीतिक जानकारों के कहना है कि पूर्व सीएम कमलनाथ के नेतृत्व में पार्टी में गुटबाजी में कमी आई थी, लेकिन एक बार फिर गुटबाजी की हवा ने जोर पकड़ा तो कमलनाथ की कुर्सी पलटने में भाजपा को मदद मिली. दिलचस्प यह है कि पार्टी अब सत्ता में नहीं है, लेकिन गुटबाजी और अंतर्कलह थमने का नाम नहीं ले रही है.
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