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ग्वालियर में प्रद्युम्न सिंह तोमर और सुनील शर्मा आमने-सामने, जातिगत समीकरण से मुकाबला हुआ रोचक

ग्वालियर विधानसभा क्षेत्र में क्षत्रिय और ब्राह्मणों की संख्या लगभग बराबर यानी 50 से 60 हजार है. यही वजह है कि सियासत भी इन्ही के आसपास घूमती है. भाजपा से ठाकुर प्रद्युम्न सिंह तोमर और कांग्रेस से सुनील शर्मा ब्राह्मण है.

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ग्वालियर में प्रद्युम्न सिंह तोमर और सुनील शर्मा आमने-सामने, जातिगत समीकरण से मुकाबला हुआ रोचक
ग्वालियर :

Madhya Pradesh Assembly Election 2023 : ग्वालियर सीट, जिले की सबसे पुरानी विधानसभा सीट है. गोपाचल की पहाड़ियों के आसपास सैकड़ों साल पहले जब रिहायश शुरू हुई तो इसी इलाके में हुई और फिर राजा शूरसेन ने इस पहाड़ी पर किले की आधारशिला रखकर अपने साम्राज्य को शुरू किया. इसी किले पर राजा मानसिंह तोमर ने शास्त्रीय संगीत के ध्रुपद की रचना की और इन्हीं के दरबार से निकले सुर सम्राट तानसेन (Tansen) अकबर के नव रत्नों (Akbar Navratn) में शुमार हुए. तानसेन का मकबरा भी आज भी इसी क्षेत्र में है, जहां दुनिया भर के संगीतप्रेमी सजदा करने पहुंचते हैं. यही वजह है कि शास्त्रीय संगीत (Classical Music) का ग्वालियर घराना (Gwalior Gharana) भी है, जिसने देश को अनेक नामी संगीतकार और गायक (Music Composer And Singer) दिए हैं. 

औद्योगिक क्रांति में उभरा ग्वालियर

स्वतंत्रतापूर्व जब दुनिया मे औद्योगिक क्रांति आयी तो इसी दौरान ग्वालियर क्षेत्र उभरा. देश के सबसे बड़ी जयाजीराव कॉटन मिल (Cotton Mill) यही स्थापित हुई, जिसमें हजारों की संख्या में लोग काम करते थे. यही वजह थी कि यहां मजदूर आंदोलन (Laboure Movement) भी खूब फले-फूले. नब्बे के दशक तो इस इलाके का जलवा और रसूख कुछ और ही था. बिड़ला की मिल और उससे जुड़ी अनेक औद्योगिक इकाइयों में लगभग पचास हजार मजदूर यहां काम करते थे और रात भर यह उप नगर दूधिया रोशनी में नहाया रहता था. 

लेकिन नब्बे के दशक में जैसे ही मिल बन्द होने लगे वैसे ही इस इलाके का मानो सूर्य अस्त हो गया. एक-एक कर बाकी उद्योग भी खंडहर में तब्दील हो गए. सबसे अधिक रोजगार देने वाला यह ग्वालियर बेरोजगारों की मंडी में तब्दील हो गया.

ऐसी है ग्वालियर विधानसभा

ग्वालियर विधानसभा आज भी घनी आबादी के कारण जिले में सबसे अधिक संख्या वाली है. इसमें  2 लाख 81 हजार 321 वोटर हैं. इनमें एक लाख 51 हजार 56 पुरुष और एक लाख 30 हजार 265 महिला वोटर हैं.

कभी मजदूरों की शक्ति के रूप में पहचाने जाने  वाले ग्वालियर की सियासत में कम्युनिस्ट और इंटक जैसे मजदूर संगठनों का दबदबा था लेकिन अब यहां जातियों का ही दबदबा है. 

इस विधानसभा क्षेत्र में बीते तीन दशक में कभी एक दल का कब्जा नहीं रहा. मतदाता कभी कांग्रेस (Congress) तो कभी भाजपा (BJP) को जिताते रहे हैं. 2008 में यहां से कांग्रेस जीती तो 2013 में भाजपा, 2018 में फिर कांग्रेस के प्रद्युम्न सिंह तोमर जीते और कमलनाथ की सरकार में मंत्री बने, लेकिन 2020 में उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) के साथ कांग्रेस छोड़ दी और भाजपा से उप चुनाव (By Election) लड़े, जीते और वर्तमान में ऊर्जा मंत्री हैं. इस बार भी उनके मुकाबले में कांग्रेस के सुनील शर्मा को मैदान में उतारा गया है.

क्षत्रिय और ब्राह्मणों की संख्या लगभग बराबर

ग्वालियर विधानसभा क्षेत्र में क्षत्रिय और ब्राह्मणों की संख्या लगभग बराबर यानी 50 से 60 हजार है. यही वजह है कि सियासत भी इन्हीं के आसपास घूमती है. भाजपा से ठाकुर प्रद्युम्न सिंह तोमर और कांग्रेस से सुनील शर्मा ब्राह्मण हैं. लेकिन इनके भाग्य का फैसला यहां बसने वाले 24 हजार मुस्लिम (Muslim Voters), 16 हजार वैश्य, 12 हजार जाटव, 16 हजार कुशवाह-काछी (OBC Voters), 14 हजार बाथम , 9 हजार राठौर, 8 हजार यादव, 10 हजार किरार, 6 हजार प्रजापति, 5 हजार बघेल और 10 हजार कोरी वोटर करेंगे. 

इस विधानसभा क्षेत्र में तोमर ने काफी विकास कार्य कराए हैं. लेकिन टूटी सड़कें और रोड के चौड़ीकरण के नाम पर लोगों के घर और दुकानें तोड़ने से लोगो की नाराजी है. बेरोजगारी और खुलेआम नशीले पदार्थो की बिक्री से बढ़ते अपराध यहां की मुख्य समस्या है. कांग्रेस इसी आधार पर वोट मांग रही है, हालांकि तोमर की लो प्रोफ़ाइल राजनीति उनकी ताकत है इसलिये लोगों का उनका जुड़ाव भी है, लेकिन इस बार जातिगत समीकरण मुकाबले को कड़ा बना रहा है.

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