
Madhya Pradesh Election Results 2023: अपने गृह जिले सीहोर में बीते हफ्ते मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) ने कहा था- मैं मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार फिर से लाऊंगा. 3 तारीख को आप लोग देखेंगे कि फिर से भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) की सरकार बनेगी. इसमें कोई संदेह नहीं है,कोई कांटे-फांटे की टक्कर नहीं है,कार्यकर्ताओं ने मेहनत की है. लाडली बहनों ने सब कांटे निकाल दिए. 3 दिसंबर यानी रविवार को जब EVM खुले तो शिवराज सही साबित हुए. सुबह 11.45 पर मध्यप्रदेश की जनता ने बीजेपी की झोली में 155 सीटें तो कांग्रेस को 72 सीटें ही दीं. मतलब ये है कि मोदी-शाह की रणनीति और शिवराज के चेहरे ने मध्यप्रदेश में कमल खिला ही दिया है. ऐसे में ये जानना दिलचस्प हो जाता है कि बीजेपी की सत्ता में वापसी की पांच अहम वजहें क्या हैं?
1.लाड़ली बहनें बनीं गेम चेंजर
वाकई बीजेपी के लिए 1 करोड़ 31 लाख से ज्यादा लाडली बहनें गेम चेंजर बन गईं.मध्यप्रदेश में आधी आबादी के लिये शिवराज सरकार 'लाडली बहना' योजना लेकर आई और चुनावी साल में इसे शिवराज का मास्टर स्ट्रोक (Shivraj's master stroke) माना गया. कांग्रेस ने फौरन इसकी काट के लिये सरकार बनने पर नारी सम्मान योजना (Nari Samman Yojana)शुरू करने की बात की. जिसमें महिलाओं को 1500 रु.दिये जाने की बात कही गई थी. बीजेपी ने तुरंत पलटवार किया और कहा शुरूआत 1000 रु. से है जो 3000 रु.तक जा सकती है. इसके बाद अगले 100 दिनों में सवा करोड़ से ज्यादा महिलाओं के खाते में लगभग शत प्रतिशत सफलता के साथ पैसे पहुंचाए गए. यहां ये जानना जरूरी हो जाता है कि राज्य में 29 सीटों में महिला वोटरों की तादाद पुरुषों से ज्यादा है, वहीं 34 सीटों पर महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में ज्यादा मतदान किया .
2. आदिवासी वोट
देश की सबसे बड़ी आदिवासी आबादी (tribal population) मध्यप्रदेश में है, सरकार बनाने के लिए भी उनके वोट निर्णायक रहते हैं. 84 सीटों पर आदिवासी वोटर किसी को भी जीताने- हराने का माद्दा रखते हैं. 2018 के चुनावों में आदिवासियों की नाराजगी बीजेपी पर भारी पड़ी थी. इस दफे उसने बीते दो सालों में गोंड रानी कमलापति, दुर्गावती, तांत्या मामा के प्रतीकों के जरिये आदिवासी वोटों को साधने की कोशिश की.खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस मुहिम की अगुवाई की,वहीं कांग्रेस लगातार आदिवासियों पर अत्याचार का मुद्दा उठाती रही. जरा और भी गहराई से देखें तो 2018 में बीजेपी इन 84 सीटों में 34 सीटें जीत पाई थी. 2013 में उसका स्कोर 59 था.राज्य में 47 सीटें आदिवासियों के लिये आरक्षित हैं, 2003 में जब बीजेपी ने कांग्रेस से सरकार छीनी छीनी थी उस वक्त 41 सीटें आरक्षित थी जिसमें बीजेपी ने 37 जीत ली थीं. 2008 में 47 सीटें आरक्षित हो गईं, बीजेपी ने 29 जीतीं कांग्रेस ने 17. 2013 में बीजेपी ने 47 में 31 सीटें जीतें कांग्रेस ने 15. लेकिन 2018 में पासा पलट गया बीजेपी ने मात्र 16 सीटें जीतीं कांग्रेस ने 30 सीटें.
3. शिवराज का रहा राज
इस चुनाव में मध्य प्रदेश में बीजेपी ने मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान नहीं किया था.पहली दो सूचिों में शिवराज का नाम बतौर उम्मीदवार तक घोषित नहीं हुआ तो बहुत से लोगों ने ये तक भविष्यवाणी कर दी कि उन्हें सीएम बनाना तो छोड़िये, पार्टी टिकट भी नहीं देगी लेकिन हकीकत में तीसरी लिस्ट आने पर ये साफ हो गया कि कमान शिवराज सिंह चौहान के हाथ में ही थी. शिवराज बनाम कमलनाथ के बीच जंग में शिवराज कई मायनों में भारी पड़े. बीजेपी के आला नेताओं ने 634 से ज्यादा सभाओं के जरिये चुनाव प्रचार किया तो कांग्रेस के नेताओं ने 350 से ज्यादा. डेढ़ महीने तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पूरे प्रदेश को नाप दिया. सभा और रोड शो में शतक जड़ दिये. इनके अलावा भी बीजेपी के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ,गृह मंत्री अमित शाह,रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत कई बड़े चेहरों ने प्रचार की कमान संभाली. उधर दूसरी तरफ कांग्रेस के लिये पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे,राहुल गांधी,प्रियंका गांधी ,दिग्विजय सिंह जैसे कांग्रेस के बड़े नेताओं ने धुंआधार बैटिंग की लेकिन अकेले शिवराज ने 165 रैलियां, रोड-शो करके माहौल पार्टी के पक्ष में कर दिया. उनकी विनम्रता भी जनता के बीच पॉजिटिव संदेश देने में कामयाब रही.
4. कमजोर सीटों पर पहले बल्लेबाजी
17 अगस्त को बीजेपी ने विधानसभा चुनावों के लिए अपने उम्मीदवारों की पहली सूची की घोषणा की. 39 दिन बाद सत्तारूढ़ पार्टी ने 39 मजबूत उम्मीदवारों की दूसरी सूची का भी ऐलान कर दिया.जिसमें तीन केंद्रीय मंत्रियों,नरसिंहपुर से प्रह्लाद सिंह पटेल, कृषि मंत्री और पार्टी की राज्य चुनाव प्रबंधन समिति के प्रमुख नरेंद्र सिंह तोमर,कैलाश विजयवर्गीय,फग्गन सिंह कुलस्ते जैसे दिग्गजों के नाम शामिल थे. पार्टी ने कमजोर मानी जाने वाली इन सीटों पर महीनों पहले उम्मीदवारों के नाम का ऐलान करके मनोवैज्ञानिक बढ़त तो ली थी. टिकट का पहले ऐलान होने से उम्मीदवारों को अपने दांव जमाने का खूब वक्त मिला. टिकट न मिलने से नाराज नेताओं को भी मनाने में पार्टी कामयाब रही.
5. मोदी-शाह की सियासत
मोदी की गारंटी के नारे के साथ मुख्यमंत्री के बारे में प्रचार के आखिरी ओवरों में प्रधानमंत्री ने खत लिखा. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने अपने खत में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी के कामों से आए बदलावों से लेकर लाडली बहना योजना और लाडली लक्ष्मी योजनाओं का भी जिक्र किया. कहा गया बीजेपी के खिलाफ 18 साल की सत्ता विरोधी लहर है लेकिन ताबड़तोड़ 15 रैलियों से मोदी ने बीजेपी के पक्ष में माहौल बना दिया. अपनी हर सभा में वो कहते थे ‘मोदी की गारंटी'है.दूसरी तरफ केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) ने माइक्रो लेबल पर बूथ मैनेजमेंट किया,नाराज़ नेताओं को समझाया-मनाया और पार्टी के लिये काम करने को तैयार किया. कांग्रेस के ओबीसी कार्ड के खिलाफ ओबीसी मुख्यमंत्री के अलावा दलित और आदिवासियों को मिलाकर सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले पर काम किया.