
Madhya Pradesh Results 2023: इस बार मध्यप्रदेश में विधानसभा के चुनाव परिणाम बड़े ही चौंकाने वाले आये.भाजपा ने मध्यप्रदेश में रिकॉर्ड सीट जीती है. हालांकि इससे पहले 2003 में भाजपा इस बार से भी ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब रही है लेकिन मौजूदा परिणाम इसलिए ज्यादा खास हैं क्योंकि इस बार की आंधी में कांग्रेस के वे किले भी ढह गये जिन्हें 2003 में कांग्रेस विरोधी लहर और 2018 की मोदी लहर भी प्रभावित करने में नाकामयाब रही थी. ऐसी ही सीट है भिण्ड जिले (Bhind district) की लहार सीट(Lahar assembly seat)...जो सात बार से यानी 1990 में लगातार कांग्रेस के कब्जे में थी. इस पर लगातार जीतने वाले डॉ गोविंद सिंह (Dr. Govind Singh) इस बार अपना किला बचा पाने में कामयाब नहीं रहे.
1990 में जनतादल से जीते थे डॉ सिंह
कांग्रेस के इस दिग्गज नेता ने राजनीति एकदम जमीन से शुरू की. उन्होंने अस्सी के दशक में लहार नगर पालिका में पार्षद का चुनाव लड़ा और जीता. इसके बाद वे नगर पालिका अध्यक्ष भी निर्वाचित हुए.
1993 में हो गए कांग्रेस में शामिल
1990 में चुनी गई सुंदर लाल पटवा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को 1992 रामजन्मभूमि मामले को लेकर हुए दंगों के बाद बर्खास्त कर दिया गया. तब पहली बार विधानसभा पहुंचे डॉ गोविंद सिंह इस बीच कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) के संपर्क में आये जो उन्हें लेकर कांग्रेस में गए . गोविंद सिंह ने 1993 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीते.उन्हें बाद में दिग्विजय मंत्रिमंडल में स्थान भी मिला और 2018 में कमलनाथ सरकार (Kamalnath government) में भी उनको केबिनेट मंत्री बनाया गया था.
2003 में सत्ता विरोधी लहर में भी टिके रहे
लगातार दो बार सत्ता में रहने के बाद 2003 के विधानसभा चुनाव आते -आते तत्कालीन सीएम दिग्विजय सिंह के खिलाफ जबरदस्त जनाक्रोश था. सत्ता विरोधी तेज लहर बह रही थी. लेकिन गोविंद सिंह उसमें भी अपनी नैया पार लगा ले गए. वे 2020 में कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद मध्यप्रदेश विधानसभा (Madhya Pradesh Assembly) में नेता प्रतिपक्ष बनाये गए .लेकिन 2023 के इस विधानसभा चुनाव में उनका किला ढह गया।
सिंधिया की सटीक रणनीति आई काम
वैसे तो लहार में भी कांग्रेस की हार की बड़ी वजह वही रही जिसका जिक्र पूरे प्रदेश में हो रहा है. यानी लाडली बहना.लेकिन इसके कुछ और भी कारण है. सबसे बडा कारण है भाजपा की रणनीति. इस बार भाजपा ने कांग्रेस के उन दिग्गजों को हराने की खास रणनीति बनाई थी जो अपराजेय हैं. इनमें डॉ गोविंद सिंह का नाम सबसे ऊपर था.
उन ठाकुरों को एकजुट किया जो डॉ सिंह के आक्रामक व्यवहार से क्षुब्ध और अपमानित महसूस करते थे. ब्राह्मणों को एकजुट करने का काम वैसे तो RSS ने किया लेकिन सिंधिया ने गोविंद सिंह के प्रभाव के कारण निस्तेज हो चुके विभिन्न दलों के ब्राह्मण और गैर क्षत्रीय नेताओं को ग्वालियर बुला-बुलाकर उनमें हौसला भरा. सिंधिया खुद भी अंबरीश शर्मा (Ambrish Sharma)का प्रचार करने गए और मतदान के दिन पूरे प्रशासन को वहां स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के बाध्य किया. यही वजह रहा कि कांग्रेस का लहार जैसा अपराजेय दुर्ग इस बार के विधानसभा चुनावों में ढह गया.
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