कवर्धा जिले में 10 महीने में शुगर मिल का निर्माण कराने और आदिवासी अंचल में पानी की समस्या को ख़त्म करने वाले 2011 बैच के IAS सर्वेश्वर नरेन्द्र भूरे वर्तमान में रायपुर कलेक्टर है. इसके पहले वे भूरे मुंगेली और दुर्ग के कलेक्टर रह चुके है.
डॉ भूरे का जन्म महाराष्ट्र के भंडारा जिले के लखान्दुर गांव में हुआ था, सामान्य शिक्षक परिवार में जन्मे डॉ भूरे की प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही सरकारी स्कूल में हुई. उसके बाद भंडारा से हाई और हायर सेकेंडरी पास करने के बाद पुणे के सरकारी मेडिकल कॉलेज से MBBS की पढाई की. डॉ सर्वेश्वर नरेन्द्र भूरे MBBS करने के बाद UPSC की तैयारी में जुटे और 2010 में इनका चयन IPS के लिए हुआ, लेकिन डॉ भूरे का सपना IAS बनने का था इसीलिए 2011 में उन्होंने दोबारा UPSC का एग्जाम दिया और इस बार IAS में चयन हुआ. डॉ भूरे को छत्तीसगढ़ कैडर मिला और तब से वे छत्तीसगढ़ में प्रशासनिक सेवाएं दे रहे हैं.
IAS में चयन के बाद डॉ सर्वेश्वर नरेन्द्र भूरे की पहली पोस्टिंग ट्रेनी आईएएस के रूप बस्तर में हुई जहां से उन्होंने प्रशासनिक समझ पाई. उसके बाद SDM बिलासपुर , बिलासपुर जिला पंचायत CEO, कवर्धा के जिला पंचायत CEO के रूप में कार्यरत रहे. डॉ भूरे कहते हैं, "कवर्धा में किये गए काम आज भी मुझे याद है. कवर्धा में CEO रहते हुए शुगर मिल निर्माण की जिम्मेदारी मिली थी उसे 12 महीने में तैयार करना था, लेकिन रात दिन मेहनत कर 10 महीने में शुगर मिल तैयार की, जो आज देश की सबसे ज्यादा शुगर उत्पादन करने वाली मिल में एक है इसके अलावा कवर्धा के आदिवासी इलाकों में पानी की बड़ी समस्या थी पानी की समस्या दूर करने के लिए बड़ी संख्या में कुएं खुदवाए जिसके परिणाम आज भी दिख रहे है, वहां के लोगों की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है."
सरकारी विभाग में काम का कल्चर
सरकारी विभाग में काम के कल्चर पर डॉ सर्वेश्वर भूरे का कहना है कि ये सरकारी तंत्र प्रणाली है जहां हर दिन बहुत तेजी से बदलाव हो रहे हैं जब वो 12 साल पहले सर्विस में आए थे तब और अब में बहुत बदलाव हुए हैं, डिजिटलाईजेशन से काम आसान हुआ है और पारदर्शिता बढ़ी है. अब लोग अपने काम को लेकर आते है और उसका फॉलो अप भी करते है. लोगों और अधिकारियों के बीच संवाद बढ़ा है जो एक अच्छा संकेत है.
कैसा रहा जीवन संघर्ष
हर सफल इंसान के जीवन में संघर्ष की एक कहानी होती है. निम्न मध्यम परिवार में आर्थिक तंगी सबसे बड़ी परेशानी होती है. डॉ भूरे बताते हैं, "गांव और शहर की पढाई में एक्स्पोजर का फर्क होता है, मुझमे भी एक्स्पोजर की कमी थी, मेरी पढाई मराठी में हुई और MBBS अंग्रेजी में थी शुरुआत में काफी परेशानी हुई थी जब मैं UPSC की तैयारी कर रहा था".
उस वक्त डॉ भूरे की फाइनेंसियल स्थिति ख़राब थी, मेडिकल कॉलेज में सुबह 10 बजे से 5 बजे तक ट्युशन देते थे फिर 5 बजे घर आने के बाद रात में पढाई करते थे. डॉ भूरे बताते हैं कि उन्हें पढाई के लिए समय कम मिल पाता था. UPSC की तैयारी के दौरान हीं उनकी शादी हो गई. स्थिति ये थी की उनकी पत्नी की सैलरी से पूरे परिवार का खर्च चलता था. उन्होंने बताया, "संघर्ष के दौरान ये जाना की हार्ड वर्क का कोई विकल्प(substitute)नहीं है. हार्ड वर्क से ही सफलता हासिल होती है."
प्रशासनिक करियर के खट्टे मीठे पल
डॉ सर्वेश्वर नरेन्द्र भूरे कोविड काल को अपने जीवन का सबसे चेलेंजिंग और मन को पीड़ा देने वाला समय मानते हैं. उनका कहना है जब वे दुर्ग कलेक्टर थे तब कोविड की दूसरी लहर आई, दुर्ग में सबसे जयादा केस थे. सुबह तक जो ठीक था वो अगले कुछ घंटों में कोविड का शिकार हो रहा था ,बहुत ही दुखद दौर था. डॉ भूरे आगे बताते है कि "प्रशासनिक सेवा में सुखद एहसास ये है की जरुरतमंद लोग जब आपके पास काम लेकर आते है और उनके काम को आप कर पाते है उनकी खुशी देखकर मुझे खुशी मिलती है."
रायपुर जिले के लिए प्लान
डॉ भूरे रायपुर को स्वच्छ और सुन्दर शहर बनाना चाहते है. उनका कहना है कि "जब मैं कलेक्टर बनकर आया उस समय जिले में राजस्व सम्बंधित एक समय मे 17 हज़ार मामले पेंडिंग रहते थे, मामलों के पेंडिंग रहने से कई तरह के आरोप लगते है और लोगों को परेशानी होती है". डॉ भूरे की प्राथमिकता में है की कम से कम केस पेंडिंग रहे. आज राजस्व केस की संख्या घटकर 7 हजार के करीब पहुंच गई है. टाटीबंध ट्रैफिक की समस्या अब लगभग सॉल्व हो गई है. साथ हीं एक नया इनीशिएटिव ' स्टार्ट नवा गुरुकुल' डॉ भूरे के मार्गदर्शन में शुरू होने जा रहा है जिसमे 200 लड़कियों को कोडिंग की एक साल की ट्रेनिंग दी जाएगी और 100 प्रतिशत उनका प्लेसमेंट होगा. जिले में 25 स्वामी आत्मानंद स्कूल बन चुके हैं जो बेहतर तरीके से संचालित हो रहे हैं .
छुट्टी और फुर्सत के पल
डॉ भूरे बताते है की छुट्टियां वैसे कम ही रहती है ,वीकेंड में जब समय मिलता है तो परिवार के साथ समय बिताते है. कभी रायपुर के आसपास बच्चों के साथ घूमने जाते हैं तो कभी जब ज्यादा छुट्टी रहती तो पुणे परिवार के पास जाना होता है.
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