Madhya Pradesh News: बाघ (Tiger) एक ऐसा जानवर है कि जिसके देखकर तो छोड़िए उसका नाम लेने से भी शरीर में सिरहन सी पैदा हो जाती है. लेकिन आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि बांधवगढ़ (Bandhavgarh) और सामान्य वनमण्डल से लगे गांव में बाघ भक्षक नहीं बल्कि रक्षक के रूप में पूजे जाते हैं. जी हां इस इलाके में बाघों को रक्षक के रूप में माना जाता है. यहां हर गांव में बाघ की मूर्ति स्थापित रहती है. सुबह - शाम ग्रामीण खेत - खलिहान से लेकर जंगल में मवेशी चराने के दौरान पहले उनकी पूजा - अर्चना करते हैं, फिर जंगल की तरफ पांव आगे बढ़ाते हैं.
उमारिया जिला चारों तरफ से है वन अच्छादित
आपको बता दें कि मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) का उमरिया जिला (Umaria District) चारों तरफ से वन अच्छादित क्षेत्र है. यहां बांधवगढ़ टाईगर रिजर्व के अलावा सामान्य वन मण्डल तथा वन विकास निगम का जंगल भी है. जनजातीय बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण लोग आज भी वनोपज के सहारे ही जीविकोपार्जन पर निर्भर हैं. फिर चाहे मवेशी पालन हो, खेती-किसानी या सीजन में तेंदूपत्ता, महुआ, चिंरौंजी, दाना जैसे वनोपज के साधन हो. ये आज भी ग्रामीणों के लिए आय का मुख्य साधन है.
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यहां नहीं करते बाघ इंसानों पर हमला
इनकी तलाश में वे ज्यादातर समय जंगल के भीतर ही गुजारते हैं. ग्रामीणों में ऐसी मान्यता है कि जिस गांव में बघेसुर महाराज की स्थापना होती है. वहां बाघ इंसानों पर हमला नहीं करते ना ही गांव की तरफ कभी घुसते हैं. यह आस्था व परंपरा दो चार साल नहीं बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही है. इसी कारण बाघ व इंसान जंगलों में सालों से गुजर बसर करते चले आ रहे हैं.
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