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This Article is From Jul 27, 2023

शाह की हैवीवेट मीटिंग के मायने क्या ? दिग्गी-कमलनाथ क्यों जुटे मिशन-66 पर?

मध्यप्रदेश चुनाव में अब बहुत कम वक्त बचा है. लिहाजा राज्य की दोनों ही पार्टियों ने अपनी-अपनी रणनीतियो को धार देना शुरू कर दिया है. बीजेपी में जहां केन्द्रीय नेतृत्व मोर्चा संभाल रहा है वहीं कांग्रेस ने भी जमीनी स्तर पर अपने दिग्गज नेताओं को उतार दिया है. आइए जानते हैं आखिर दोनों पार्टियों के अंदरखाने में क्या चल रहा है?

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शाह की हैवीवेट मीटिंग के मायने क्या ? दिग्गी-कमलनाथ क्यों जुटे मिशन-66 पर?

मध्यप्रदेश में तीन महीने बाद कभी भी चुनाव हो सकते हैं...ऐसे माहौल में भोपाल में बीजेपी दफ्तर के ठीक बाहर तीन बड़े कटआउट लगे हैं, जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं, गृहमंत्री अमित शाह हैं और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा. ये तस्वीरें अगर प्रतीक हैं तो समझा जा सकता है कि 3 महीने बाद होने वाला चुनाव किसके नेतृत्व में लड़ा जाएगा, हालांकि चंद दिनों पहले वंदेभारत को हरी झंडी दिखाते वक्त ये आदमकद से बड़े कटआउट दो चेहरों के थे-प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान.

अमित शाह ने संभाली है कमान

बहरहाल गृहमंत्री अमित शाह बुधवार रात एक बार फिर भोपाल पहुंचे, 15 दिनों में ये उनका दूसरा भोपाल दौरा है. बुधवार रात वो सत्ता-संगठन के लोगों से मिले 4 घंटे तक मैराथन बैठक हुई  पिछले दौरे में जो काम दिये थे उसकी समीक्षा हुई माना जा रहा है कि महीने के आखिर में वो एक बार फिर मध्यप्रदेश आ सकते हैं लेकिन इस बार यात्रा मालवा की होगी. बुधवार रात 8 बजे गृहमंत्री अमित शाह भोपाल एयरपोर्ट पहुंचे थे, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत प्रदेश के बड़े नेता उनसे मिलने एयरपोर्ट पहुंचे, इसकी तस्वीरें बाहर भी आईं. रात लगभग 8:30 बजे बीजेपी दफ्तर में बैठक शुरू हुई, जो देर रात 12:10 पर ख़त्म हुई इसकी कोई तस्वीर बाहर नहीं आई, बिल्कुल वैसे ही जैसे बीजेपी दफ्तर से आजकल सियासी सुर्खियों सूत्रों के हवाले से भी उतनी ही आती हैं जितनी बतानी हो.

51 फीसदी वोट हासिल करने का लक्ष्य

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शिवराज 16 साल तक मुख्यमंत्री रहे हैं. अब आने वाले चुनाव उनके सामने साख बचाने की चुनौती है.

  

बताया गया कि इस बार अमित शाह ने कोर कमेटी के सदस्यों से अलग-अलग बात की, मालवा-निमाड़ की सीटों पर कैलाश विजयवर्गीय, ग्वालियर-चम्बल की सीटों पर नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया, वहीं विंध्य-बुंदेलखंड-महाकौशल की सीटों पर प्रह्लाद पटेल से बात हुई है. चुनाव प्रबंधन के लिये बनने वाली 14 समितियों के नामों पर मुहर लग लग गई. भूपेन्द्र यादव और नरेन्द्र तोमर ने नाम रखे जिन्हें थोड़े संशोधन के बाद हरी झंडी दिखा दी गई. विजय संकल्प यात्रा का रूट और तारीख भी तय हो गई, यात्रा 15 अगस्त से शुरू हो सकती है. चुनाव में 51% वोट हासिल करने का लक्ष्य दिया गया. कमज़ोर सीटों पर लगातार बड़े नेताओं के दौरे पर ज़ोर देने को कहा गया.

रुठे नेताओं को मनाएंगे शिवराज-कैलाश और उमा

देर रात इंदौर पहुंचने के बाद मालवा दौरे की तैयारियों के लिये बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय ने बैठक ली, बैठक के बाद कहा मैं रात को 2 बजे इंदौर आया, मैंने गृहमंत्री से इजाज़त ली और कहा कि मैं इंदौर निकल जाऊं ... आपको विदा नहीं कर पाऊंगा थोड़ा काम कर लूंगा. ये बयान बीजेपी की तैयारियों की एक बानगी है, दरअसल पिछली मुलाकात में अमित शाह ने पूछा था कि कार्यकर्ता सत्ता-संगठन से खफा क्यों है, इस बार भी नेताओं से दो टूक कह दिया गया, नाराज़ कार्यकर्ताओं को मनाओ, उनतक पहुंचो, एकजुट लड़ने पर ही जीत मिलेगी, सूत्रों के मुताबिक इन नाराज नेताओं को साधने का जिम्मा खुद मुख्यमंत्री,कैलाश विजयवर्गीय और उमा भारती जैसे नेताओं को मिल सकता है.

परिवारवाद से दूर रहने की नसीहत

इस मामले में पार्टी प्रवक्ता नरेन्द्र सलूजा ने कहा बीजेपी में कोई नाराज़ नहीं होता फिर जब हमने सवाल किया कि 15 दिन में गृहमंत्री को दुबारा क्यों आना पड़ा तो सलूजा ने कहा कांग्रेस के नेता पर्यटन पर आते हैं, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी फिर उड़ जाते हैं ... ना संगठन के काम में शामिल होते हैं चुनाव के वक्त विदेश चले जाते हैं, हमारा नेतृत्व हर बात को गंभीरता से लेता है चाहे संगठन की बात हो, बूथ इकाई या कार्ययोजना की लगातार वो आते हैं, घंटों बैठक करते हैं कार्ययोजना को अंतिम रूप दे रहे हैं.  इस बैठक में टिकट बंटवारे में सिफारिश और परिवारवाद से दूर रहने की नसीहत दी गई है, जिन विधायकों-मंत्रियों का रिपोर्ट खराब है उनपर भी चर्चा हुई. कुछ दिनों पहले ही बीजेपी प्रदेश कार्यालय में पूरे विधि विधान के साथ पूजा पाठ करके पार्टी ने अपना चुनाव प्रबंधन कार्यालय शुरू किया था, नेताओं के दौरे बता रहे हैं कि उसी रफ्तार से मैनजमेंट का काम भी शुरू हो गया है.

कमलनाथ और दिग्विजय जुटे मिशन 66 में

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कमलनाथ और दिग्विजय सिंह मिलकर कांग्रेस को उन 66 सीटों पर जीत दिलाने की कोशिश कर रहे हैं जहां पार्टी कमजोर है.

दरअसल सत्तारूढ़ बीजेपी में समीकरण के साथ कांग्रेस का आक्रामक रुख भी फिक्र का सबब है, कुछ दिनों पहले राहुल गांधी ने दिल्ली में दावा किया कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस 150 सीटें जीतेगी. कांग्रेस ने 2018 के चुनाव में 230 में से 114 सीटें जीती थीं, जबकि बीजेपी 109 सीटें जीतकर बहुमत से 7 सीट पीछे रह गई थी. ऐसे में 66 सीटें कांग्रेस के लिये अभेद्य बन गई हैं जिनपर पिछले 5 चुनावों से उसे शिकस्त मिली है. कांग्रेस के दोनों पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह इन सीटों को जीतने के लिए मिशन-66 में लगे हैं, 5 सूत्रीय कार्यक्रम बनाया गया है. इन सीटों के लिये केन्द्रीय पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की गई है उनके ज़िम्मे है स्थानीय मुद्दों को खोजकर उसे घोषणापत्र में शामिल करना, विधायक के ख़िलाफ नाराज़गी को जनता तक ले जाकर माहौल बनाना, जातीय समीकरण के हिसाब से उम्मीदवार चयन, कांग्रेस के 5 ऐलान को इलाके में लोगों तक पहुंचाना.       

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हालांकि बाद में समीकरण बदले. उपचुनावों के परिणाम ने कांग्रेस को और कमजोर कर दिया. जिसमें विधानसभा में बीजेपी की सीटें बढ़कर 127 हो गईं और कांग्रेस की 96 विधायक रह गए. जानकार कहते हैं कि मध्यप्रदेश में 230 सीटों में बीजेपी और कांग्रेस दोनों के पास 80-80 सीटों का बेस है, ऐसे में बहुमत के 116 सीटों के लिये जादुई आंकड़े को हासिल करना 36 सीटों पर निर्भर है. शिवराज सिंह चौथी दफे मुख्यमंत्री बने है. वे 16 साल से ज्यादा वक्त से मुख्यमंत्री रहे हैं जो बतौर बीजेपी नेता एक रिकॉर्ड है. ऐसे में शिवराज की साख के लिये ये चुनाव खासी अहमियत रखता है तो वहीं कांग्रेस के लिये कमलनाथ मुख्यमंत्री का चेहरा हैं और 15 महीने की सरकार गंवाने के बाद उनके लिये पलटवार का ये लगभग आखिरी मौका है.

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