
Vijayadashami Puja: भारत में विजयादशमी का त्योहार रावण दहन का प्रतीक है. हर साल दशहरे पर जगह-जगह रावण के पुतले जलाए जाते हैं. लेकिन मध्य प्रदेश का एक गांव ऐसा भी है, जहां रावण को जलाया नहीं जाता, बल्कि देवता की तरह पूजा जाता है. यह गांव विदिशा जिले की नटेरन तहसील में बसा है और इसका नाम ही है रावण गांव. यहां दशहरे के दिन दहन नहीं, बल्कि भव्य आरती और पूजा होती है. दूर-दराज़ से लोग इस अनोखी परंपरा को देखने यहां पहुंचते हैं. रावण गांव सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि भारत की विविधता और आस्थाओं की गहरी झलक है. यह कहानी बताती है कि जिस रावण को पूरा देश जलाता है, विदिशा का यह गांव उसे बाबा मानकर पूजता है. यही तो भारत की सबसे बड़ी खूबी है, जहां हर परंपरा में अलग रंग और हर आस्था में अलग विश्वास देखने को मिलता है.
अद्भुत रावण मंदिर
रावण गांव में परमार काल का एक प्राचीन मंदिर है, जिसमें रावण की विशाल प्रतिमा लेटी हुई अवस्था में स्थापित है. यह प्रतिमा सदियों पुरानी मानी जाती है. मंदिर की दीवारों पर रावण की आरती भी लिखी हुई है, जिसे रोज़ाना गांववाले श्रद्धा से पढ़ते हैं. गांव के लोग रावण को "रावण बाबा" कहकर पुकारते हैं और हर शुभ कार्य से पहले यहां पूजा अर्चना करते हैं. इतना ही नहीं, गांव में किसी की शादी हो तो पहला निमंत्रण पत्र रावण बाबा को ही भेजा जाता है. परंपरा यह भी है कि प्रतिमा की नाभि में तेल भरकर विवाह की शुरुआत होती है.
रावण वंशज और आस्था की परंपरा
यहां रहने वाले ब्राह्मण परिवार खुद को रावण का वंशज मानते हैं. उनका मानना है कि रावण कोई खलनायक नहीं, बल्कि ज्ञान और शक्ति का प्रतीक था. यही वजह है कि गांव के लोग अपने वाहनों, घरों और दुकानों पर “जय लंकेश”, “जय रावण बाबा” लिखवाते हैं. गांव के कई लोग शरीर पर रावण के नाम के टैटू भी गुदवाते हैं. विवाहित महिलाएं जब रावण बाबा के मंदिर से गुजरती हैं तो घूंघट निकालकर आदर जताती हैं.
रहस्यमयी मान्यताएं और किवदंतियां
इस मंदिर से जुड़ी कई कहानियां आज भी गांववालों की ज़ुबान पर हैं. कहा जाता है कि गांव से तीन किलोमीटर दूर एक बूधे की पहाड़ी है, जहां कभी “बुद्धा राक्षस” नामक असुर रहता था. वह रावण से युद्ध करना चाहता था, लेकिन जब भी लंका पहुंचता तो वहां की भव्यता और रावण की शान देखकर उसका क्रोध शांत हो जाता. किवदंती है कि रावण ने ही उसे सलाह दी कि वह उसकी प्रतिमा बनाकर उसी से युद्ध करे. माना जाता है कि वही प्रतिमा आज भी यहां मौजूद है. इसके अलावा, गांव में बने तालाब को लेकर भी मान्यता है कि उसमें रावण की तलवार आज तक सुरक्षित है.
रावण लोक की मांग
गांव के लोग अब चाहते हैं कि यहां “रावण लोक” विकसित किया जाए. लंकेश्वर समाज कल्याण समिति ने मुख्यमंत्री से मांग भी कर चुके हैं कि इस प्राचीन मंदिर को संस्कृति विभाग से जोड़ा जाए और यहां पर्यटन व विकास कार्य कराए जाएं.
देश की आम परंपरा से बिल्कुल अलग, यहां दशहरा रावण दहन से नहीं, बल्कि रावण आरती और भव्य भंडारे से पूरा होता है. परंपरा के विपरीत रंग विदिशा में देखने मिलते हैं.
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