
Vidisha Government Hospital Bad Condition: विदिशा जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था एक बार फिर कठघरे में है. यहां के सरकारी अस्पताल गरीब और लाचार मरीजों के लिए राहत नहीं, बल्कि परेशानी और लूट का अड्डा बन चुका है. लटेरी से लेकर शमसाबाद तक... हालात ऐसे हैं कि कभी डिलीवरी के नाम पर गरीब परिवारों से खुलेआम वसूली की जाती है, तो कभी अस्पताल बंद मिलने और एंबुलेंस गायब होने के कारण सड़क पर ही बच्चे का जन्म होता है.
सड़क पर डिलीवरी, अस्पताल में ताले
शमसाबाद क्षेत्र का बरखेड़ा जागीर अस्पताल- जहां डिलीवरी कराने आई महिला को ताला लटका मिला. 27 साल की ममता बाई को एंबुलेंस तक नसीब नहीं हुई. मजबूर परिजन महिला को मोटरसाइकिल पर लेकर इधर-उधर भटकते रहे और आखिरकार गिरधर मार्केट में ही सड़क पर बच्चे ने जन्आम दे दिया. नागरिकों की मदद से जच्चा-बच्चा को लोडिंग वाहन में बैठाकर अस्पताल लाया गया. सौभाग्य से दोनों सुरक्षित हैं, लेकिन यह तस्वीर सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की असलियत बयां करती है.
लटेरी अस्पताल में रिश्वत का खेल
उधर, लटेरी स्वास्थ्य केंद्र से और भी शर्मनाक मामला सामने आया. बंजारा समाज की एक महिला को डिलीवरी करानी थी, लेकिन नर्सों और कर्मचारियों ने सीधे 1800 रुपये की मांग कर दी. मजबूरी में परिवार ने चांदी बेचकर पैसे जुटाए और रकम स्टाफ की जेब में चली गई, जबकि सच यह है कि सरकारी अस्पतालों में डिलीवरी पर कोई शुल्क नहीं लिया जाता.

विभाग हरकत में, लेकिन…
एनडीटीवी में खबर छपने के बाद शमसाबाद के बरखेड़ा जागीर अस्पताल में ताले लटके मिलने के मामले में एक डॉक्टर समेत पांच कर्मचारियों को नोटिस थमाया गया. वहीं लटेरी अस्पताल में अवैध वसूली के मामले में नर्सों और कर्मचारियों को शोकाज़ नोटिस जारी किया गया.
बड़ा सवाल अभी बाकी है…
हर बार जब शर्मनाक तस्वीर सामने आती है, तब विभाग नोटिस जारी कर देता है, लेकिन हालात जस के तस रहते हैं. न तो एंबुलेंस की उपलब्धता सुधरती है, न ही अस्पतालों की जवाबदेही तय होती है. ऐसे में लगातार सवाल उठते हैं कि क्या नोटिस के दम पर सिस्टम की लूट और लापरवाही बंद हो पाएगी? क्या हर बार गरीब मांओं को सड़क पर डिलीवरी का दर्द झेलना पड़ेगा? और क्या जिंदगी बचाने वाली सरकारी योजनाएंं केवल नेताओं की तस्वीरों और बजट की घोषणाओं तक सीमित रह जाएंगी?
विदिशा की इन घटनाओं ने यह साबित कर दिया है कि यह केवल हादसे नहीं, बल्कि सिस्टम की नाकामी का खुला सबूत हैं. जब तक कड़ी और ठोस कार्रवाई नहीं होगी, तब तक गरीबों की जिंदगी अस्पतालों की इस लापरवाही और लूट के बीच दांव पर लगती रहेगी.
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