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भिंड में विधायक बनाम अधिकारी की 'जंग' में कलेक्टर ने निकाल ली 'तलवार' !

भिंड में इन दिनों प्रशासनिक कामकाज से ज़्यादा चर्चा इस बात की है कि असली खिलाड़ी कौन है—विधायक या कलेक्टर? जिले की विकास समीक्षा बैठक में हुई कहासुनी अब सीधे तलवार और साफ़े वाले शक्ति प्रदर्शन तक पहुंच चुकी है. लगता है कि मामला यह दिखाने का बनता जा रहा है कि जनता और सिस्टम पर किसकी पकड़ ज़्यादा मज़बूत है.

भिंड में विधायक बनाम अधिकारी की 'जंग' में कलेक्टर ने निकाल ली 'तलवार' !

Bhind Collector Vs MLA: भिंड में इन दिनों प्रशासनिक कामकाज से ज़्यादा चर्चा इस बात की है कि असली खिलाड़ी कौन है—विधायक या कलेक्टर? जिले की विकास समीक्षा बैठक में हुई कहासुनी अब सीधे तलवार और साफ़े वाले शक्ति प्रदर्शन तक पहुंच चुकी है. लगता है कि मामला यह दिखाने का बनता जा रहा है कि जनता और सिस्टम पर किसकी पकड़ ज़्यादा मज़बूत है.

भिंड ज़िले की सियासत और अफसरशाही इन दिनों किसी कुश्ती के दंगल जैसी लग रही है. जहां पहलवान हैं बीजेपी विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाह और कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव. एक तरफ़ जनता की समस्याएं हैं, तो दूसरी तरफ़ इन दोनों की रस्साकशी. गुरुवार को कलेक्टर साहब ने अपने कार्यालय को मानो अखाड़ा बना डाला. समर्थकों को बुलाया गया, साफ़ा बंधवाया गया, वैदिक मंत्रों के बीच स्वागत हुआ और फिर जैसे कहानी अधूरी रह न जाए, उसी मंच पर तलवार भेंट की गई. तलवार को मयान से निकालकर बाकायदा लहराया भी गया. अब सवाल ये कि यह प्रशासनिक गरिमा थी या सत्ता के खेल का नया अध्याय? स्थानीय लोग इसे साफ़ तौर पर शक्ति प्रदर्शन मान रहे हैं.

सूत्र बताते हैं कि कलेक्टर ने एक दर्जन से अधिक समर्थकों को कार्यालय बुलाकर माहौल बनाने की कोशिश की. मानो यह दिखाने की कोशिश हो कि "देखो, मेरा भी जनाधार है". लेकिन दूसरी तरफ़ तस्वीर उतनी रंगीन नहीं है, किसान और संगठन लगातार उनके खिलाफ मोर्चा खोले बैठे हैं. बुधवार को किसान संगठनों ने क्षत्रिय महासभा के साथ मिलकर कलेक्टर के खिलाफ प्रदर्शन किया था. आरोप वही पुराने और भारी- जिले में खाद की किल्लत चरम पर है, किसान का कहना है कि एक तरफ हम घंटों लाइन में लगकर परेशान हो रहे हैं और कलेक्टर साहब स्वागत और तलवार लहराने में व्यस्त हैं.

विधायक और कलेक्टर, दोनों पहले ही कोतवाली थाने में एक-दूसरे के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा चुके हैं. यानी, अब यह विवाद महज़ व्यक्तिगत नहीं रहा, प्रशासनिक कामकाज, राजनीतिक साख और जनता की उम्मीदें, सब इस रस्साकशी की भेंट चढ़ रहे हैं. ज़िले में चर्चा है कि कलेक्टर का यह शक्ति प्रदर्शन कहीं अपने तबादले को रोकने की रणनीति तो नहीं है. संदेश साफ़ है- "मेरे पीछे स्थानीय समर्थन खड़ा है", लेकिन यह शक्ति प्रदर्शन आम किसानों की ज़िंदगी में ज़रा भी राहत नहीं ला रहा. असलियत यही है कि खाद की किल्लत से किसान बेहाल है और जिले का प्रशासनिक तंत्र इस विवाद में फंसा हुआ है. तलवार लहराने और साफ़ा बांधने से किसान की झोली भरने वाली खाद नहीं आएगी. लेकिन शायद कलेक्टर साहब को यह समझाने वाला कोई नहीं, क्योंकि ऐसा लगता है कि वो अभी राजनीति के अखाड़े में हैं, प्रशासन के मैदान में नहीं.

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