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MP की गोटेगांव विधानसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला, कांग्रेस को BJP के साथ निर्दलीय प्रत्याशी से मिल रही टक्कर

इस विधानसभा क्षेत्र में दो लाख के करीब मतदाता हैं. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक इनमें 93,860 महिला मतदाता हैं. सबसे अधिक संख्या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के मतदाताओं की है.

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MP की गोटेगांव विधानसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला, कांग्रेस को BJP के साथ निर्दलीय प्रत्याशी से मिल रही टक्कर
MP की गोटेगांव विधानसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला

MP Assembly Election: कांग्रेस की मध्य प्रदेश इकाई के वरिष्ठ नेता और कमलनाथ के नेतृत्व वाली पिछली सरकार के दौरान राज्य विधानसभा के अध्यक्ष रहे नर्मदा प्रसाद प्रजापति को अपने विधानसभा क्षेत्र गोटेगांव में भाजपा के साथ-साथ एक निर्दलीय उम्मीदवार से कड़ी टक्कर मिलती नजर आ रही है. गोटेगांव से चार बार विधायक रहे प्रजापति की राह में सबसे बड़ा रोड़ा कांग्रेस के बागी उम्मीदवार और पूर्व विधायक शेखर चौधरी हैं. वह बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं. कांग्रेस ने पहले उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित किया था, लेकिन नामांकन से ठीक पहले उन्हें बदलकर प्रजापति को टिकट दे दिया.

अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित जिले की इस एकमात्र सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने एक नए चेहरे महेन्द्र नागेश पर दांव लगाया है. वह 2005 से 2010 तक जिला पंचायत नरसिंहपुर के प्रमुख रह चुके हैं. उन्हें केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल का करीबी माना जाता है. गोटेगांव प्रह्लाद पटेल की जन्म भूमि है. इस लिहाज से नागेश की जीत सुनिश्चित करना उनके लिए 'प्रतिष्ठा' का प्रश्न भी बन गया है.

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हर चुनाव में प्रतिनिधि बदल देने वाला क्षेत्र

हर विधानसभा चुनाव में अपना प्रतिनिधि बदल देने की विशेष पहचान रखने वाले इस क्षेत्र में एक ही बार वह मौका आया, जब किसी एक दल ने यहां से लगातार दो बार चुनाव जीता. कांग्रेस के प्रजापति ने 1993 में यहां से जीत दर्ज की, लेकिन अगले चुनाव में पार्टी ने प्रजापति का टिकट काट दिया और शेखर चौधरी को अपना उम्मीदवार बना दिया. साल 1998 में चौधरी ने यहां से जीत दर्ज की थी. प्रजापति यहां से चार बार विधायक रहे हैं, लेकिन वह कभी भी लगातार दो बार विधायक नहीं चुने गए. प्रजापति कमलनाथ के नेतृत्व में 2018 में बनी कांग्रेस सरकार के 15 महीने के कार्यकाल के दौरान राज्य विधानसभा अध्यक्ष रहे थे. वह दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली पहली सरकार (1993-98)में राज्य के ऊर्जा मंत्री भी रह चुके हैं.

पार्टियां भी बदल देती हैं उम्मीदवार

मतदाताओं का रुख देखते हुए पार्टियां भी यहां हर चुनाव में अपना उम्मीदवार बदल देती हैं. साल 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के हाकम सिंह मेहरा ने प्रजापति को हराया था. इस चुनाव में कांग्रेस ने अपने तत्कालीन विधायक शेखर चौधरी का टिकट काट दिया था. इससे नाराज होकर शेखर चौधरी भाजपा में शामिल हो गए, तो अगले विधानसभा चुनाव (2008) में भाजपा ने हाकम सिंह का टिकट काटकर शेखर चौधरी को टिकट दे दिया.

निर्दलीय प्रत्याशी ने मुकाबले को बनाया त्रिकोणीय

इस चुनाव में मुकाबला प्रजापति और चौधरी में हुआ, लेकिन जीत प्रजापति की हुई. इस बार के चुनाव में दोनों फिर से आमने-सामने हैं. बस अंतर यह है वह इस दफे निर्दलीय मैदान में हैं. गोटेगांव सीट पर परंपरागत रूप से भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला रहता है, लेकिन यहां इस बार के विधानसभा चुनाव को शेखर चौधरी ने त्रिकोणीय बना दिया है. गोटेगांव के न्यू बस स्टैंड पर मिले 55 वर्षीय एक किसान श्याम सिंह पटेल ने चुनावी माहौल के बारे में पूछे जाने पर कहा कि यहां इस बार मुख्य लड़ाई भाजपा और निर्दलीय शेखर चौधरी के बीच है.

किसानों के लिए सिंचाई की व्यवस्था बड़ी परेशानी

उन्होंने कहा, 'कांग्रेस के उम्मीदवार चुनाव जीतने के बाद यहां दिखाई ही नहीं पड़ते हैं. वह अधिकांश समय या तो दिल्ली या फिर भोपाल और जबलपुर में रहते हैं.' कृषि की दृष्टि से यह क्षेत्र समृद्ध है. यहां के किसान बड़ी संख्या में गन्ने व दलहन की खेती करते हैं. यहां गुड़ का उत्पादन होता है और क्षेत्र में चीनी की कुछ मिलें भी हैं. श्याम सिंह पटेल बताते हैं कि किसानों के लिए सिंचाई व्यवस्था परेशानी का सबब है, क्योंकि उन्हें भूमिगत जल स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है. उन्होंने कहा कि बिजली छह से सात घंटे ही आती है और वह महंगी भी है.

विधानसभा क्षेत्र में 93,860 महिला मतदाता

इस विधानसभा क्षेत्र में दो लाख के करीब मतदाता हैं. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक इनमें 93,860 महिला मतदाता हैं. सबसे अधिक संख्या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के मतदाताओं की है. क्षेत्र में कुर्मी, लोधी और कोटवार मतदाताओं की भी अच्छी खासी मौजूदगी है, जो किसी भी उम्मीदवार का खेल बना और बिगाड़ सकते हैं. यहां के मतदाताओं में प्रजापति के प्रति नाराजगी भी दिखी. राईखेड़ा इलाके में रहने वाले घनश्याम सिंह नाम के एक युवक ने कहा कि प्रजापति जनता के बीच रहते ही नहीं हैं और ना ही उन्होंने कोई काम किया है.

क्या हैं जनता की समस्याएं?

उन्होंने कहा, 'शेखर चौधरी लोगों के बीच रहते हैं और उन्होंने कोरोना के समय जो काम किए हैं, उसे कोई भूल नहीं सकता.' निजी व्यवसाय करने वाले सोनू विश्वकर्मा (32 साल) ने कहा कि इस क्षेत्र से दो-दो केंद्रीय मंत्री हैं, फिर भी यह क्षेत्र उपेक्षित है. उन्होंने कहा, 'महंगाई और बेरोजगारी तो है ही, हमारी अपनी समस्याएं कम नहीं हैं. ना कोई बड़ा कॉलेज है और ना ही अस्पताल. छोटी से छोटी चीजों के लिए जबलपुर नहीं, तो नरसिंहपुर जाना पड़ता है. गोटेगांव, नरसिंहपुर जिले में आता है, लेकिन मंडला संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है. यहां के लोग सांसद जी को ढूंढते रहते हैं.' केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते मंडला से सांसद हैं, जबकि गोटेगांव प्रह्लाद पटेल की जन्मस्थली है.

क्षेत्र में शेखर चौधरी लोकप्रिय उम्मीदवार

लोगों से बातचीत के दौरान दिखा कि चौधरी की क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान है और वह लोगों के सुख-दुख में साझेदार भी रहे हैं. नामांकन से ठीक पहले चौधरी का टिकट काटे जाने के चलते लोगों में उनके प्रति सहानुभूति भी दिखी. हालांकि, कांग्रेस और व्यक्तिगत तौर पर प्रजापति का भी अपना एक समर्पित वोट बैंक है. प्रजापति के अलावा उनकी पत्नी और पुत्र नीर प्रजापति भी पूरे क्षेत्र में जोर-शोर से प्रचार कर रहे हैं. भाजपा प्रत्याशी नागेश पहली बार चुनाव मैदान हैं. प्रह्लाद पटेल और नरसिंहपुर से विधायक व उनके भाई जालम सिंह पटेल ने नागेश की जीत सुनिश्चित करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. प्रचार के दौरान वह केंद्र व राज्य सरकार की योजनाएं तो गिनाते ही हैं, प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी की उपलब्धियों का जिक्र करना भी नहीं भूलते.

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'त्रिकोणीय मुकाबले में तीनों प्रत्याशी वजनदार'

गोटेगांव के रहने वाले 65 वर्षीय सुरेश कुमार ने कहा, 'मुकाबला त्रिकोणीय है, क्योंकि तीनों ही वजनदार हैं. भाजपा का अपना एक वोटबैंक है. उसके पास केंद्र सरकार की किसान सम्मान निधि, तो राज्य सरकार की लाडली बहना जैसी योजनाएं हैं. कांग्रेस में आपसी लड़ाई दिख ही रही है. वहां तो लड़ाई असली और नकली कांग्रेस की है. ऐसे में फायदा किसे मिलेगा, आप समझ सकते हैं.' उम्मीदवारों के अपने-अपने दावे और वादे हैं, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि हर बार की तरह अपना प्रतिनिधि बदलने वाली यहां की जनता इस चुनाव में क्या रुख अपनाती है. नजरें इस बात पर भी होंगी कि प्रह्लाद पटेल इस चुनाव में कितनी छाप छोड़ते हैं.

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