
Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश के सतना जिले के नारायण तालाब सौंदर्यीकरण के नाम पर बड़ा गोलमाल हुआ है. इसका खुलासा खुद मंत्री के निरीक्षण के दौरान भी हुआ था. इस निर्माण काम करने वाली कंपनी को ब्लैक लिस्टेड किया. जमानत राशि सीज और टेंडर निरस्त हो गया. लेकिन बड़ी बात ये है कि प्रोजेक्ट इंजीनियर पर अफसरों ने मेहरबानी दिखा दी और वे बेदाग बच गए.
ये है मामला
सतना में स्मार्ट सिटी डेवलेपमेंट कार्पोरेशन ने नारायण तालाब के सौंदर्यीकरण का काम भोपाल की ठेका कंपनी केएन नारंग से कराया गया. प्रोजेक्ट पर कुल 10 करोड़ तीन लाख रुपए खर्च कर तालाब का घाट एवं बंड, एडवेंचर जोन, सिटिंग एरिया, इवेंट एरिया, फूड कोर्ट ,पाथवे, पार्किंग और टॉयलेट का निर्माण कराया जा रहा था. तालाब का काम चल ही रहा था तभी अचानक से पूर्व भाग की मेड़ ब्रेक हो गई और निचली बस्ती शारदा नगर उतैली के कई घर जलमग्न हो गए. लोगों को लाखों का नुकसान हुआ. अफसर से लेकर नेता तक अफसोस के आंसू बहाने पहुंचे.

ठेका कंपनी पर न तो एफआईआर हुई और न ही उन लोगों की जिम्मेदारी तय की जा सकी जो तालाब के सौंदर्यीकरण की निगरानी कर रहे थे. प्रोजेक्ट इंजीनियरों पर कार्यवाही नहीं होने से हैरानी इसलिए भी है क्योंकि जुलाई महीने की दस तारीख को एक प्रगति रिपोर्ट तैयार की गई जिसमें यह बताया जा रहा है कि ठेकेदार ने 75 फीसदी काम पूरा कर चुका है.

इस हाल पर है सौंदर्यीकरण
नारायण तालाब के सौंदर्यीकरण में कागजी 75 फीसदी प्रगति जानने के लिए जब NDTV की टीम साइट पर पहुंची तो एक-एक काम का जायजा लिया. सबसे पहले यहां पर तैयार किये गए टॉयलेट को देखा गया. टॉयलेट के नाम पर केवल ढांचा खड़ा है. उसके यूरिनल, सीट, दरवाजे और वॉटर सप्लाई सिस्टम का कहीं भी पता नहीं था. इसके अलावा दूसरी सबसे हैरान करने वाली जानकारी यह थी कि जिस प्रकार से निर्माण हुआ है वह बेहद घटिया है.
सौंदर्यीकरण प्रोजेक्ट में शामिल एक ईकाई पाथवे निर्माण भी है. इस इकाई की जमीन सच्चाई यह है कि तालाब के एंट्री गेट के पास कुछ स्थान पर पेर्वस लगा दिए गए हैं. बीच-बीच में कई ऐसे पैच है जहां पर केवल छोटी गिट्टी बिछी हुई है. पेवर्स का पता नहीं है. इसके अलावा अधिक भूभाग ऐसा है जहां पर अभी तक गिट्टी तक नहीं डाली गई. मौके पर केवल मिट्टी है.
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अदृश्य हैं ये काम
नारायण तालाब के चारों ओर का जायजा लेने के बाद भी फूड कोर्ट, एडवेंचर जोन, इवेंट एरिया जैसे अंग्रेजी नाम से मिलती जुलते स्ट्रक्चर दिखाई नहीं दिए. इंट्री गेट से दायें भाग में चार पिलर और, उसके कुछ आगे टूटी-फूटी संरचना जरुर दिखाई दी. इसके अलावा मौके पर केवल बंड का निर्माण मिला. नगर निगम के इंजीनियरों ने बंड और घाट को ही सौंदर्यीकरण का सबसे बड़ा काम मानकर उसकी प्रगति 75 फीसदी मान ली और उसका 55 फीसदी भुगतान कंपनी को करवा दिया.
इंजीनियरों पर भी तय हो जिम्मेदारी
स्मार्ट सिटी का पैसा आम जनता के टैक्स का पैसा है. सौंदर्यीकरण के नाम पर जिसे पानी की तरह बहाया गया. उसकी रिकवरी ठेकेदार और प्रोजेक्ट से जुड़े इंजीनियरों से की जानी चाहिए. कंपनी को अब तक चार करोड़ 75 लाख और 75 हजार का भुगतान किया गया है. जबकि मौके पर काम आधा भी नहीं किया गया. ऐसे में यह ठेकेदार को केवल ब्लैकलिस्ट कर बैंक गारंटी राजसात की गई तो यह उसके लिए दंड से कहीं ज्यादा वरदान साबित होगी. इस मामले में जो भी पैसा दिया गया है उसका हिसाब किताब किया जाना चाहिए. इस मामले में आर्थिक चोंट के साथ ही ठेकेदार और इंजीनियरों पर आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए.
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