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This Article is From Sep 07, 2023

सागर : भगवान कृष्ण का प्रिय पेड़ "कृष्ण वट" हरिसिंह गौर वनस्पति गार्डन में है 65 साल से संरक्षित !

ये पेड़ बेहद दुर्लभ है. धार्मिक मान्यताओं में इसको लेकर अलग-अलग किवदंतियां हैं, जिसके चलते इसका नाम कृष्ण बट भी है. इसका नाम कृष्ण बट इसलिए है क्योंकि भगवान ने इस पर बैठकर माखन खाया था. ये आयुर्वेद की दृष्टि से भी काफी उपयोगी है.

सागर : भगवान कृष्ण का प्रिय पेड़ "कृष्ण वट" हरिसिंह गौर वनस्पति गार्डन में है 65 साल से संरक्षित !
भगवान के स्पर्श से इस पेड़ के पत्ते कटोरी-चम्मच की तरह ही उगते हैं. यह पेड़ आज भी भगवान कृष्ण के द्वारा  द्वापर युग में की गई बाल लीलाओं का प्रत्यक्ष प्रमाण है इसका पत्ता-पत्ता आज भी भगवान के लिए समर्पित है
सागर:

सागर के हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय के वनस्पति गार्डन में ब्रज में पाए जाने वाला अनोखा पेड़ "कृष्ण वट" भी है. 65 सालों से सागर विश्वविद्यालय के वनस्पति गार्डन में इसे संरक्षित किया गया है. कृष्नाई वटवृक्ष का वैज्ञानिक नाम भी फाइकस कृष्नाई हैं. इसके पत्ते कटोरीनुमा और पीछे की तरफ चम्मचनुमा होते हैं. इसलिए इसे माखन दोना वृक्ष भी कहा जाता है. 

 पेड़ का पत्ता - पत्ता है भगवान के लिए समर्पित

ऐसा माना जाता है कि द्वापर युग में की गई बाल लीलाओं का प्रत्यक्ष प्रमाण इस पेड़ में मिलता है. मान्यता है कि माखन चोरी की लीलाओं के दौरान माता यशोदा की डांट से बचने, गोपियों का माखन चुराकर बाल कृष्ण ने इसी वटवृक्ष के पत्तों में माखन रखकर उन्हें लपेट दिया था. जिसके बाद से इसके पत्ते भगवान के स्पर्श से कटोरी-चम्मच की तरह ही उगते हैं.  

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ये पेड़ हमें द्वापर युग की याद दिला देता है, इस पेड़ को देखकर अपने आप भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण होने लगता है

आसानी से नहीं लगाया जा सकता ये पेड़

सागर विश्वविद्यालय के वानस्पतिक शास्त्र के विभाग अध्यक्ष प्रोफ़ेसर दीपक व्यास बताते हैं कि यह बेहद दुर्लभ वृक्ष है धार्मिक मान्यताओं में इसको लेकर अलग-अलग किवदंतियां है जिसके चलते इसका नाम कृष्ण वट भी है. इसका नाम कृष्ण वट इसलिए है क्योंकि भगवान ने इस पर बैठकर माखन खाया था. इस पेड़ को आसानी से लगाया नहीं जा सकता है वानस्पतिक शास्त्र में इस वृक्ष को फाइकस बेंगालेंसिस नाम के सोलानासि परिवार की श्रेणी में रखा गया है ऐसा माना जाता है कि यह भारतीय उपमहाद्वीप का पौधा है लेकिन यह है श्रीलंका और दक्षिणी अफ्रीकी देशों में भी देखा गया है.

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आयुर्वेद की दृष्टि से भी है बेहद उपयोगी

आयुर्वेद की दृष्टि से भी यह बेहद ही महत्वपूर्ण पौधा है क्योंकि विभिन्न रोग ,बुखार ,डायरिया ,अल्सर सर्दी जुकाम ,उल्टी दस्त में इसके उपयोग का वर्णन है. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि ऑक्सीजन देने वाले तमाम वृक्षों में यह वृक्ष सबसे ज्यादा ऑक्सीजन छोड़ता है. 
 

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