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‘हिंदुत्व के मूल में ही है विश्व कल्याण’, जबलपुर में बोले RSS प्रमुख मोहन भागवत

RSS chief Mohan Bhagwat in Jabalpur- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने कहा कि हमारे यहां धर्म की अवधारणा सत्य ,करुणा, शुचिता एवम तपस  है इसलिए यही धर्म दर्शन विश्व को कल्याण के लिए देना है. यही हिंदुत्व की आत्मा एवं विविधताओं के साथ एक होकर रहना ही हिंदू है.

‘हिंदुत्व के मूल में ही है विश्व कल्याण’, जबलपुर में बोले RSS प्रमुख मोहन भागवत

RSS chief Mohan Bhagwat in Jabalpur- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने कहा कि हमारे यहां धर्म की अवधारणा सत्य ,करुणा, शुचिता एवम तपस  है इसलिए यही धर्म दर्शन विश्व को कल्याण के लिए देना है. यही हिंदुत्व की आत्मा एवं विविधताओं के साथ एक होकर रहना ही हिंदू है.

योगमणि ट्रस्ट जबलपुर के तत्वावधान में स्वर्गीय डॉक्टर उर्मिला ताई जामदार स्मृति प्रसंग के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक के सरसंघचालक ने वर्तमान में विश्व कल्याण के लिए हिंदुत्व की प्रासंगिकता के विषय को प्रवर्तित करते हुए अपने विचार रखे.

उन्होंने सबसे पहले यह स्पष्ट किया कि क्या विश्व को कल्याण की आवश्यकता है? सारा विश्व भारत की ओर देख रहा है उन्होंने विश्व के संदर्भ में पाश्चात्य विचारधारा पर प्रकाश डालते हुए बताया कि जो भी विकास हुआ था अधूरा ही रहा वस्तुत: धर्म और राजनीति को लेकर भी धर्म की और राजनीति की अवधारणा को व्यवसाय बना लिया, बाद में वैज्ञानिक युग आने के बाद वह भी शस्त्रों का व्यापार बनकर रह गया और फिर दो विश्व युद्ध हुए इस दृष्टि से सुख समृद्धि नहीं वरन् विनाश ज्यादा हुआ संपूर्ण विश्व दो विचारधारा में बंट गया.

उन्होंने कहा कि नास्तिक और आस्तिक और आगे चलकर यह संघर्ष का विषय भी बन गया जो बलवान है वह जियेंगे और दुर्बल मरेंगे समूहों की सत्ता का विचार भी सामने आया था और साथ ही संघर्ष आरंभ हुआ साधन तो असीमित हो गए पर मार्ग नहीं मिला. इसीलिए विश्व आत्मिक शांति हेतु भारत की ओर आशापूर्ण दृष्टि से देख रहा है. 

‘भारत ने अपने ज्ञान को विस्मृत कर दिया'

सरसंघचालक ने आगे कहा कि आज विश्व की स्थिति साधन संपन्न है, असीमित ज्ञान है पर उसके पास मानवता के कल्याण मार्ग नहीं है. भारत इस दृष्टि से संपन्न है. परन्तु वर्तमान परिपेक्ष्य में भारत ने अपने ज्ञान को विस्मृत कर दिया. लंबी सुख सुविधाओं और शांतिपूर्ण जीवन उसका मुख्य कारण रहा. और यह याद करना शेष है कि हमें विस्मृति के गर्त से बाहर निकलना है. भारतीय जीवन दर्शन में अविद्या और विद्या दोनों का महत्व है, भौतिक और आध्यात्मिक जीवन में संतुलन बना रहे इसीलिए दोनों का सहसंबंध आवश्यक है. 

‘हिंदू धर्म अतिवादी और कट्टर नहीं'

आरएसएस प्रमुख ने कहा कि हिंदू धर्म में इसे स्वीकार किया गया है इसीलिए हिंदू धर्म अविद्या  और विद्या दोनों के मार्ग से होकर चलता है, इसीलिए अतिवादी और  कट्टर नहीं है. जबकि पश्चिम की अवधारणा में अतिवादिता तथा कट्टरपन दिखता है क्योंकि उन्हें अपने स्वार्थ की हानि का डर है इस कारण से यह उनकी दृष्टि अधूरी है. मोहन भागवत ने यह भी इंगित किया कि सृष्टि के पीछे एक ही सत्य है तथा उसका प्रस्थान बिंदु भी एक ही है. एवं यह भी स्पष्ट किया कि मानव धर्म ही सनातन धर्म है और सनातन धर्म ही हिंदू धर्म है. जो सभी विषयों को एकाकार स्वरूप में देखता है. विविधता में एकता का विश्वव्यापी संदेश देता है. जन मानस में हिंदू शब्द बहुत पहले से प्रचलित था, बाद में इसका उल्लेख ग्रंथों में भी हुआ है, परंतु जनवाणी के रूप में गुरु नानक देव ने सर्वप्रथम इसका प्रयोग किया. हमारे यहां धर्म की अवधारणा सत्य ,करुणा, शुचिता एवम तपस है इसलिए यही धर्म दर्शन विश्व को कल्याण के लिए देना है. यही हिंदुत्व की आत्मा एवं विविधताओं के साथ एक होकर रहना ही हिंदू है. 

इस अवसर पर मंच पर प्रान्त संघचालक डॉ प्रदीप दुबे, योगमणि ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ जितेन्द्र जामदार,  मध्यप्रदेश शासन के मंत्री प्रह्लाद पटेल, राकेश सिंह सहित नगर के गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे. 

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