Republic Day National Flag Hoisting: इस समय पूरा देश गणतंत्र दिवस के जश्न में डूबा हुआ है. गणतंत्र दिवस समारोह (Republic Day Celebration) में सबसे महत्वपूर्ण आयोजन ध्वजारोहण का होता है. राष्ट्रीय पर्व पर दिल्ली के साथ ही देशभर में तिरंगा झंडा फहराया जाता है. देश के स्वतंत्रता आंदोलन में तिरंगा का बहुत बड़ा योगदान रहा है और इसने एक अस्त्र के रूप में काम किया. यही वजह रही कि स्वतंत्रता के बाद देश के संविधान ने इसे देश के राष्ट्रीय ध्वज (National Flag) के रूप में स्वीकार किया. गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) इसे फहराकर ही देश गौरवांवित होता है और अपनी स्वतंत्रता की रक्षा की शपथ दोहराता है.
देश में सिर्फ दो जगह बनते हैं तिरंगे
राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा के निर्माण की प्रक्रिया भी ध्वज संहिता में वर्णित है. हर कोई इसको नहीं बना सकता है. सरकार ने देश की दो संस्थाओं को ही इसके निर्माण का अधिकार दिया है और यही संस्था देशभर में झंडे सप्लाई करने के लिए अधिकृत है. इनमें से एक संस्था है ग्वालियर की मध्यभारत खादी संघ. उत्तर भारत में यह इकलौती संस्था है. स्वतंत्रता दिवस पर शासकीय और अशासकीय संस्थाओं पर जितने भी ध्वजारोहण होते हैं वे ग्वालियर से ही बनकर जाते हैं. इस बार देश के 16 राज्यों में ग्वालियर में बनाए गए राष्ट्रीय ध्वज का ही ध्वजारोहण किया गया है.
तिरंगा बनने में लगते है पांच से छह दिन
मध्य भारत खादी संघ संस्था के राजकुमार शर्मा का कहना है कि किसी भी आकार के तिरंगे को तैयार करने में उनकी टीम को 5 से 6 दिन का समय लगता है. इन दिनों हमारी यूनिट में 26 जनवरी के लिए राष्ट्रीय ध्वज तैयार किए जा रहे हैं. इस समय रात और दिन यह काम चल रहा है. हालात ये है कि संस्था डिमांड करने वाले सभी को राष्ट्रीय ध्वज सप्लाई नहीं कर पा रही है, क्योंकि डिमांड के अनुसार हम निर्माण नहीं कर पा रहे है. राष्ट्रीय ध्वज के निर्माण को लंबी प्रक्रिया से गुजरना होता है. धागा बनाने से लेकर हर काम हाथों से ही होता है. शर्मा कहते हैं कि अब तक लगभग 23 हजार राष्ट्रीय ध्वज तैयार करके हम भेज चुके हैं. अभी भी काम जारी है.
इन जांचों से गुजरना पड़ता है
मध्यभारत खादी संघ की ध्वज निर्माण इकाई की प्रबंधक नीलू बताती हैं कि ध्वज निर्माण की प्रक्रिया यहां 25 साल से चल रही है. केंद्र सरकार से 2016 में हमें आईएसआई का दर्जा दिया गया है. ध्वज निर्माण प्रक्रिया की बारीकी को बताते हुए नीलू बताती हैं कि इसको यार्न से लेकर फिनिश तक अनेक टेस्टिंग से गुजरना पड़ता है. पहले यार्न की टेस्टिंग करते हैं. फिर बुनाई के बाद टेस्टिंग करवाते है. इसके बाद तीन कलर में इसकी डाई करवाई जाती है. स्टिचिंग के बाद भी डायमेंशन की कड़ी चेकिंग की जाती है कि ध्वज संहिता के सभी मानक पूरे रहें कि नहीं. 20 से 25 साइज की चेकिंग से गुजरने के बाद ही उसे आईएसआई टैग दिया जाता है.
इतनी कैटेगरी के झंडे होते हैं तैयार
नीलू बताती हैं कि अभी मध्यभारत खादी संघ ग्वालियर 9 से 10 साइज के राष्ट्रीय ध्वज निर्माण कर देश को उपलब्ध कराता है. लेकिन मुख्य डिमांड तीन साइज के ध्वजों की रहती है, जिनका सबसे ज्यादा निर्माण हो रहा है. इनमें 2X3 से 6X4 तक के झंडे बनाए जा रहे हैं. ध्वजारोहण में सबसे ज्यादा इन्हीं आकर वाले झंडों का उपयोग किया जाता है.
हर साल इतने ध्वज होते हैं तैयार
इस केंद्र में पहले एक साल में केवल 10 से 12 हजार झंडे तैयार होते थे, लेकिन अब लगभग 20 से 23 हजार खादी के झंडे तैयार किए जाते हैं. खादी केंद्र के पदाधिकारी बताते हैं कि इस केंद्र की स्थापना साल 1925 में चरखा संघ के तौर पर हुई थी. साल 1956 में मध्य भारत खादी संघ को आयोग का दर्जा मिला. इस संस्था से मध्य भारत के कई प्रमुख राजनीतिक हस्तियां भी जुड़ी रही हैं. उनका मानना है कि किसी भी खादी संघ के लिए तिरंगे तैयार करना बड़ी मुश्किल का काम होता है, क्योंकि सरकार की अपनी गाइडलाइन है. उसी के अनुसार तिरंगे तैयार करने होते हैं. यही कारण है कि जब यहां तिरंगे तैयार किए जाते हैं तो उनकी कई बार बारीकी से मॉनिटरिंग करनी पड़ती है.
इन 16 राज्यों में फहराए गए ग्वालियर में बने राष्ट्रीय ध्वज
मध्यभारत खादी संघ की ध्वज निर्माण इकाई की प्रबंधक नीलू बताती हैं कि यहां बनने वाले तिरंगे मध्य प्रदेश के अलावा बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात सहित 16 राज्यों में पहुंचाए जाते हैं, हमारे लिए गौरव की बात तो यह है कि देश के अलग-अलग शहरों में स्थित आर्मी की सभी इमारतों पर ग्वालियर में बने तिरंगे देश की शान बढ़ाते हैं. साथ ही उनका कहना है कि यहां जो तिरंगे तैयार किए जाते हैं उसका धागा भी हाथों से इसी केंद्र में तैयार किया जाता है.
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