Madhya Pradesh News: फर्ज कीजिए- आप किसी बीमारी की चपेट में आ गए तो आप क्या करेंगे? जवाब सीधा सा है- आप डॉक्टर के पास जाएंगे. जिसके बाद डॉक्टर आपको दवाएं लिख कर देगा. आप वो दवाएं खाएंगे और ये सोचेंगे कि अब आप ठीक हो जाएंगे. लेकिन तब क्या होगा जब दवाओं का कोर्स पूरा होने के बाद भी आप ठीक न हों और डॉक्टर भी समझ न पाए कि ये हो क्या रहा है? दरअसल इस खतरनाक स्थिति की तस्वीर आपको बताने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि मध्य प्रदेश पब्लिक हेल्थ सर्विस कॉरपोरेशन लिमिटेड (MPPHSCL) की सप्लाई की गई दवाओं (Medicines in Madhya Pradesh) में बड़ी अनियमितता का खुलासा हुआ है. इंदौर के सुपर स्पेशलिटी अस्पताल (Super Specialty Hospital) के डॉक्टरों ने नौ से अधिक दवाओं और इंजेक्शनों में कमी पाई, जो ऑपरेशन के बाद मरीजों के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं. इस खुलासे के बाद राज्य में 9 दवाओं के बड़े लॉट को प्रतिबंधित कर दिया गया है.
दरअसल इंदौर के अस्पताल के अधीक्षक सुमित शुक्ला ने बताया कि ऑपरेशन के बाद दी जाने वाली जीवन रक्षक दवाओं में गंभीर लापरवाही देखी गई है.इन दवाओं की जांच के लिए शासकीय ड्रग इंस्पेक्टर को बुलाया गया, जिसमें इंजेक्शनों में निर्धारित मात्रा से कम दवा पाई गई और उनका इफेक्ट भी कम मिला. इस जांच के आधार पर, इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज ने अपनी रिपोर्ट तैयार की, जिसके बाद राज्य में 9 दवाओं के बड़े लॉट को प्रतिबंधित कर दिया गया है. इन दवाओं में जीवन रक्षक दवाएं, एंटीबायोटिक्स और मल्टी विटामिन्स शामिल हैं, जो अब राज्य के किसी भी अस्पताल में उपयोग नहीं की जा सकतीं. MPPHSCL ने सभी जिलों के डीन, सीएमएचओ, और अस्पताल अधीक्षकों को पत्र जारी कर इन दवाओं के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है.
जीवन रक्षक दवा एट्रोपिन की गुणवत्ता खराब मिली
सूत्रों के मुताबिक एक बड़े अस्पताल ने डॉक्टरों की शिकायत पर एक महत्वपूर्ण जीवन रक्षक दवा एट्रोपिन को परीक्षण के लिए प्रयोगशाला में भेजा। जांच के बाद यह पाया गया कि यह दवा मानक के अनुरूप नहीं थी और उसमें गंभीर कमी थी.
डॉक्टरों की इस चिंता को ध्यान में रखते हुए, अस्पताल ने तत्काल कार्रवाई करते हुए दवा के नमूने को परीक्षण के लिए प्रयोगशाला भेजा. जांच में यह स्पष्ट हुआ कि एट्रोपिन दवा की गुणवत्ता मानक के अनुरूप नहीं थी। दवा में सक्रिय तत्व की मात्रा कम पाई गई, जो इसे प्रभावहीन बना रही थी.इस खुलासे के बाद दवाओं की सप्लाई और उनके गुणवत्ता नियंत्रण को लेकर सवाल उठने लगे हैं.
पहले भी दवाओं की गुणवत्ता पर उठे सवाल
सूत्रों के मुताबिक दवाओं की गुणवत्ता को लेकर ये पहली बार नहीं हुआ है.कोविड के समय से ही MPPHSCL द्वारा सप्लाई की गई कई दवाओं की गुणवत्ता संदेहास्पद पाई गई है, परंतु इस बार मामला जीवन रक्षक दवाओं का है, जो गंभीर चिंता का विषय है. MPPHSCL द्वारा जारी किए गए टेंडर के माध्यम से दवा कंपनियों से ये दवाएं बनवाई जाती हैं। पिछले तीन वर्षों में कई बार अस्पतालों को भेजी गई दवाओं की गुणवत्ता पर सवाल उठाए गए हैं. वर्तमान स्थिति में, राज्य के 90% से अधिक अस्पतालों में आवश्यक दवाओं की कमी देखी गई है,और जिन दवाओं की सप्लाई हुई है, उनमें से कई को मानक से कम पाया गया है.
हमारा सिस्टम अच्छा है: नरेन्द्र शिवाजी पटेल
हालांकि राज्य सरकार में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा मंत्री नरेन्द्र शिवाजी पटेल ने इस पूरे मामले पर सफाई दी है. उन्होंने NDTV से बताया कि हमारे यहाँ पर जिन भी दवाइयों का प्रोक्योरमेंट होता है या जो भी दवाइयां मार्केट में बिकती है उसको जांचने के लिए पूरी प्रक्रिया है. इसके लिए पूरा एक विभाग है और हमारे पास लैब हैं. दवाइयों को ख़रीदते समय हम उनके सर्टिफ़िकेट देखते हैं. इसके बाद दवाइयां जब आ जाती हैं फिर उसके सैंपल कलेक्ट कर हम प्रयोगशाला में भेजते हैं. उसी का परिणाम है कि जिन सप्लायर ने या फिर जिस फ़ैक्ट्री में ऐसी दवाएं बनायीं थीं उनको हमारे डॉक्टरों ने आइडेंटिफाई किया है. स्वास्थ्य मंत्री ने के मुताबिक ये एक पारदर्शी व्यवस्था है. उन्होंने कहा कि अभी भी हमारा सिस्टम पारदर्शी है और डॉक्टर और लैब अच्छा काम कर रहे हैं. सप्लायर ने अगर कोई ग़लत दवाएं सप्लाई करने का प्रयास किया है तो उन पर प्रतिबंध लगाएंगे और उन्हें ब्लैकलिस्ट करेंगे. इसके अलावा उनके खिलाफ़ जो सख़्त क़ानूनी कार्रवाई हो सकती है वो भी करेंगे.
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