Madhya Pradesh Police News: इसमें कोई शक नहीं कि देश में कानून व्यवस्था में सुधार के लिए भारतीय न्याय संहिता यानि BNS का लागू होना बड़ा कदम है. लेकिन इसी की वजह से मध्य प्रदेश के पुलिस थानों पर अनोखा वित्तीय बोझ पड़ा है वो भी 100, 200 या 1000 नहीं बल्कि लाखों रुपये का. एक मोटा-मोटी अनुमान के मुताबिक पूरे राज्य पर महीने में ये खर्च 25 लाख रुपये तक हो सकता है. आप ये जानकर चौंक सकते हैं कि ये सब बस एक पेन ड्राइव की वजह से हो रहा है.
दरअसल नए कानून में डिजिटलीकरण की बात की गई है.भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत नया कानून, जो सभी केस से जुड़े सबूत—बयानों, अपराध स्थल की रिकॉर्डिंग और फॉरेंसिक डेटा को पेन ड्राइव में जमा कर अदालत में पेश करने की अनिवार्यता तय करता है. इसका सीधा असर पुलिसकर्मियों पर पड़ा है क्योंकि उन्हें अक्सर अपनी जेब से पेन ड्राइव खरीदनी पड़ रही है. एक 8GB की पेन ड्राइव की कीमत करीब ₹300 है और हर केस में 3-3 पेन ड्राइव की जरूरत पड़ने से थानों के मासिक बजट गड़बड़ा रहे हैं. अब इसे आंकड़ों के जरिए भी समझ लीजिए.
'करना तो पड़ेगा, सर!'
इसी मसले पर NDTV ने ग्राउंड पर जाकर पड़ताल भी. हमारी पहली मुलाकात हुई भोपाल के कोतवाली थाने के सब-इंस्पेक्टर बीएस कलपुरिया से. वे र्षों से सेवा दे रहे हैं और नए कानून के तहत रोज़ाना कई मामलों की जांच कर रहे हैं.लेकिन पेपरलेस प्रक्रिया उनके लिए महंगी साबित हो रही है. वे बताते हैं कि एक केस में कम से कम तीन पेन ड्राइव लगती हैं. जब हमने आगे पूछा तो वह हंसते हुए कहते हैं- "करना तो पड़ेगा, सर!"
महंगी पड़ रही डिजिटल शिफ्टिंग
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65B(4) के तहत,किसी भी इलेक्ट्रॉनिक प्रमाण (जैसे पेन ड्राइव या सीडी) को कोर्ट में प्रस्तुत करने के लिए प्रमाणपत्र अनिवार्य है. पहले सीडी का इस्तेमाल होता था,लेकिन अब ये चलाने में कठिनाई हो गई है.जिससे पुलिस को पेन ड्राइव पर निर्भर होना पड़ रहा है. कांस्टेबल पुष्पेंद्र प्रजापति ने बताया-“पहले सीडी से काम चल जाता था, लेकिन अब पेन ड्राइव खरीदनी पड़ रही है. कभी-कभी अपनी जेब से पैसा लगाना पड़ता है.”
इसी तरह कांस्टेबल जोगिंदर सिंह का कहना है- “हर केस में कम से कम तीन पेन ड्राइव लगती हैं, जिसकी कीमत ₹500-₹600 तक आती है. अभी तो हम खुद ही खरीद रहे हैं. ये पेन ड्राइव 8GB से लेकर 28 GB तक की हो सकती है
केस फाइल्स में पेन ड्राइव: एक महंगा बदलाव
हमसे बातचीत में 30 साल से सेवा में कार्यरत सब-इंस्पेक्टर प्रेम नारायण प्रशासनिक बोझ को स्वीकारते हैं. वे बताते हैं कि हर केस के लिए कम से कम दो पेन ड्राइव जरूरी होती हैं. एक कोर्ट के लिए और एक हमारे रिकॉर्ड के लिए. अगर आरोपी का वकील मांगता है, तो तीसरी भी देनी पड़ती है. हमें खुद ही खरीदनी पड़ती है क्योंकि जांच अधिकारी के रूप में सबूत जुटाना हमारी जिम्मेदारी है. 1 जुलाई 2024 से, हर पुलिस स्टेशन को अपनी पेन ड्राइव खुद खरीदनी पड़ रही है.केस दर्ज होते ही पीड़ित और गवाहों के बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग बनाई जाती है और इसे पेन ड्राइव में सेव कर कोर्ट में पेश करना होता है.
अधिकारियों ने माना संसाधनों की कमी
भोपाल पुलिस कमिश्नर हरिनारायणचारी मिश्रा ने स्वीकार किया कि पुलिस के पास संसाधनों की कमी है. उन्होंने कहा- “संसाधनों की व्यवस्था की जा रही है, लेकिन प्रारंभ में कुछ थानों में दिक्कत हो सकती है। पुलिस ने तैयारी कर ली है, जरूरत को पूरा किया जा रहा है”. हालांकि जमीनी हकीकत ये है कि अभी भी जांच अधिकारी अपनी जेब से खर्च कर रहे हैं, क्योंकि सरकार से औपचारिक बजट मिलने की कोई गारंटी नहीं है.
वहीं सेवानिवृत्त डीजीपी एससी त्रिपाठी ने सरकार की योजना पर सवाल उठाया: “अगर पेन ड्राइव अनिवार्य की गई है, तो इसके लिए पहले से व्यवस्था होनी चाहिए थी. सरकार ‘लाड़ली बहना' जैसी योजनाओं पर करोड़ों खर्च कर रही है, लेकिन पुलिस स्टेशनों को ₹300 की पेन ड्राइव नहीं मिल रही. डिजिटल व्यवस्था ने कानूनी प्रक्रिया को पारदर्शी और सुगम बनाया है, लेकिन इसका खर्च पुलिसकर्मियों की जेब पर भारी पड़ रहा है। जब तक सरकार इस पर आधिकारिक बजट आवंटित नहीं करती, पुलिसकर्मी खुद अपने पैसों से जांच करेंगे—एक पेन ड्राइव के साथ.