Vidisha News: लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान जनप्रतिनिधियों ने मंचों से विदिशा (Vidisha) जिले में विकास की गंगा के कसीदे खूब कसे. इतना ही नहीं इसका बखान कागजों पर भी किया गया है. विदिशा विकास की एक ऐसी ही तस्वीर सामने आई है, जिसमें विकास का पहिया थमा हुआ है. इस विकास के पहिए के थमने से हर महीने तीन से चार लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ रहा है.
अधर में लटका पीतल मील अंडर ब्रिज का निर्माण
दरअसल, विदिशा के पीतल मील इलाके में बन रहे अंडर ब्रिज की आधार शिला आज से तीन साल पहले रखी गई थी. अंडर ब्रिज की सौगात देते हुए जनप्रतिनिधियों ने खूब वाहवाही भी बटोरी. करोड़ों रुपये की लागत से अंडर ब्रिज का काम की जोरों शोरों से शुरु की गई, लेकिन आज तीन साल बीत जाने के बाद भी यह अंडर ब्रिज का कार्य पूरा नहीं हो सका. अब हालात ये हैं कि मजबूरन लोग अपने को जान जोखिम में डालकर रेलवे ट्रैक पार कर रहे हैं. इस दौरान कई लोग हादसे भी का शिकार हो रहे हैं. स्थानीय निवासी के अनुसार, हर महीने करीब तीन से चार लोगों को अपनी जान रेल हादसे में गंवानी पड़ रही है.
जान को जोखिम में डालकर पार कर रहे रेलवे ट्रैक
यहां छोटे छोटे बच्चों को लेकर महिला-पुरुष रेलवे ट्रैक पार कर रहे हैं. अगर ट्रेन भी निकलती है तो लोगों में कोई डर नहीं, लोग ट्रेन के पास जाकर खड़े हो जाते हैं. पहले ट्रेन निकलने का इंतजार करते हैं और फिर खुद रेलवे ट्रैक पार करते हैं. यह सब कुछ आज से नहीं बल्कि तीन सालों से इसी तरह चल रहा है. आम जन खुद अपनी जान जोखिम में डाल रहे है, जबकि इन्हें मालूम है कि इस ट्रैक को पार करने से कई लोगों की जान जा चुकी हैं.
जब इस पूरे मामले में हम यहां के वाशिंदों की नब्ज टटोली तो लोगों का कहना है कि रेलवे ट्रैक पार करना मजबूरी है. यह अंडर ब्रिज पूरा हो जाए तो लोगों को इस तरह का कदम नहीं उठाना पड़ेगा. अंडर ब्रिज नहीं होने से व्यापार में भी काफी फर्क पड़ रहा है.
अलग-अलग दलील क्यों दे रहे हैं प्रशासनिक अधिकारी?
यहां रहने वाले स्थानीय निवासी कहते हैं कि अंडर ब्रिज के लिए कई बार शासन प्रशासन को आवेदन दे चुके हैं. नगर पालिका कहती हैं कि रेलवे प्रशासन यह अंडर ब्रिज का काम कराएगा और रेलवे प्रशासन कहता है कि नगर पालिका द्वारा इस ब्रिज का निर्माण कराया जाएगा. इतना ही नहीं सीएम हेल्प लाइन पर भी शिकायत दर्ज करा चुके हैं, लेकिन निराकरण आज तक नहीं हो सका. इन सबके बाद प्रशासनिक अधिकारियों की अपनी अलग-अलग दलील है.
टेक्निकल दिक्कत थी तो अधूरे ब्रिज में क्यों खर्च किए गए करोड़ों रुपये
तहसीलदार बताते हैं कि उस ब्रिज को लेकर बात चल रही है. उस ब्रिज में टेक्निकल दिक्कत के चलते कार्य रोका गया है. यह भी पता चला है जो ठेकेदार कार्य कर रहा था वो काम अधुरा छोड़कर चला गया. जल्द ही दोबारा टेंडर लगाकर कार्य प्रारंभ किया जाएगा.
रहनवासी और प्रशासन की अपनी-अपनी दलील है. प्रशासन टेक्निकल फॉल्ट बता रहा है. रहनवासी प्रशासन की बड़ी लापरवाही पर यहां सवाल यह उठता है. जब टेक्निकल फॉल्ट था तो अधूरे ब्रिज में करोड़ों रुपये खर्च क्यों किए गए?
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