
No confidence Motion: विदिशा नगर पालिका की राजनीति में एक बार फिर बड़ा फेरबदल हुआ है. लगातार बढ़ते विरोध, 38 पार्षदों के अविश्वास प्रस्ताव की तैयारी और रुके हुए विकास कार्यों के बीच नगर पालिका अध्यक्ष प्रीति शर्मा ने ‘बीमारी' का हवाला देते हुए अपने अधिकारों का प्रभार उपाध्यक्ष संजय दिवाकीर्ति को सौंप दिया है. सीएमओ दुर्गेश ठाकुर ने प्रशासनिक प्रक्रिया पूरी करते हुए उपाध्यक्ष को वित्तीय और कार्यकारी प्रभार सौंपने का आदेश जारी किया है. लेकिन अब सवाल उठ रहे हैं, क्या यह बीमारी वाकई शारीरिक थी, या फिर यह एक राजनीतिक बचाव की रणनीति?
38 पार्षदों के विरोध और अविश्वास प्रस्ताव की आहट
नगर पालिका में लंबे समय से अध्यक्ष प्रीति शर्मा के कामकाज को लेकर असंतोष था. 38 पार्षदों ने मिलकर उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी शुरू की थी. ऐसे में अचानक बीमारी का हवाला देकर प्रभार सौंपना राजनीतिक दबाव से बचने और सत्ता पर अप्रत्यक्ष पकड़ बनाए रखने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है.
भाजपा में खुलकर दिखी गुटबाजी; अपने ही पार्षदों ने किया विरोध
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा सवाल यह है कि अध्यक्ष और विरोध करने वाले पार्षद — दोनों ही भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हुए हैं. यानी नगर पालिका में यह विरोध सिर्फ प्रशासनिक नहीं बल्कि स्पष्ट रूप से अंदरूनी गुटबाजी का परिणाम है. भाजपा पार्षद अपनी ही पार्टी की अध्यक्ष के खिलाफ लामबंद हो गए हैं, जिससे न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि प्रदेश नेतृत्व की चिंता भी बढ़ गई. सूत्रों के अनुसार, अगर “खाली कुर्सी-भरी कुर्सी” का औपचारिक चुनाव होता, तो स्थिति प्रदेश स्तर तक पहुंच सकती थी और भाजपा को अपने ही संगठनात्मक अनुशासन और एकजुटता पर सवालों के जवाब देने पड़ते. इसलिए पार्टी और प्रशासन, दोनों ने मिलकर एक ‘नया रास्ता' निकाला ताकि भाजपा की साख भी बची रहे और पार्षदों का विरोध भी अस्थायी रूप से शांत हो जाए.
उपाध्यक्ष का क्या कहना?
प्रभार संभालने के बाद उपाध्यक्ष बोले “शहर का विकास हमारी प्राथमिकता” प्रभार संभालते ही उपाध्यक्ष संजय दिवाकीर्ति ने कहा- “हमारा लक्ष्य नगर का विकास है. सभी पार्षदों के साथ मिलकर पारदर्शी तरीके से काम करेंगे. जो भी कार्य रुके हैं, उन्हें प्राथमिकता से पूरा किया जाएगा.”
राजनीति के ‘प्रभार परिवर्तन' में कई अर्थ छिपे हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अध्यक्ष ने इस कदम से “एक तीर से दो निशाने” साधे हैं. एक तरफ विरोधी पार्षदों का दबाव कम हुआ और दूसरी तरफ अपने भरोसेमंद उपाध्यक्ष को कमान देकर कुर्सी पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण बनाए रखा गया. शहर की जनता के बीच यह चर्चा भी गर्म है कि क्या यह बीमारी वाकई स्वास्थ्य की थी, या फिर सत्ता संतुलन की सर्जरी?
प्रदेश में यह पहला मामला नहीं है
भाजपा शासित नगर पालिकाओं में अंदरूनी असंतोष बढ़ रहा है. विदिशा पहली नगर पालिका नहीं है, जहां भाजपा के अपने ही पार्षद अपने अध्यक्ष के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हों. प्रदेश के कई नगर पालिका परिषदों में भी भाजपा संगठन के भीतर असंतोष और गुटबाजी खुलकर सामने आई है. यह स्थिति पार्टी के लिए संकेत है कि स्थानीय स्तर पर असंतुलन और नेतृत्व संकट गहराता जा रहा है, जिसका असर आने वाले शहरी निकाय चुनावों में देखने को मिल सकता है.
अब असली सवाल; बीमारी या राजनीति?
विदिशा नगर पालिका का यह “प्रभार परिवर्तन” भले ही तात्कालिक रूप से एक शांतिपूर्ण समाधान लग रहा हो, लेकिन यह असल में भाजपा संगठन के भीतर उभरती दरारों और राजनीतिक असंतोष का आईना भी है. अब देखना यह होगा कि
क्या उपाध्यक्ष संजय दिवाकीर्ति वास्तव में विकास के एजेंडे को आगे बढ़ा पाएंगे, या फिर यह कदम भी सिर्फ ‘सियासी बीमारी का इलाज' बनकर रह जाएगा.
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