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This Article is From Apr 23, 2024

NDTV Exclusive: शिक्षा, रोजगार और ओबीसी आरक्षण को लेकर CM मोहन यादव ने कही यह बात, पढ़ें पूरा इंटरव्यू

CM Mohan Yadav Interview: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने NDTV के एडिटर इन चीफ संजय पुगलिया से खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने मध्य प्रदेश की राजनीति, उनके कार्यकाल और विभिन्न मुद्दों पर बात की.

NDTV Exclusive: शिक्षा, रोजगार और ओबीसी आरक्षण को लेकर CM मोहन यादव ने कही यह बात, पढ़ें पूरा इंटरव्यू

Mohan Yadav Exclusive Interview: लोकसभा चुनाव के बीच NDTV की टीम देशभर में घूम के नेताओं और जनता से बात कर रही है. इसी बीच सोमवार को एनडीटीवी का इलेक्शन कार्निवल मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल पहुंचा. जहां NDTV के एडिटर इन चीफ संजय पुगलिया (Sanjay Pugalia) ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव (Chief Minister Mohan Yadav) से बातचीत की. इस दौरान सीएम मोहन यादव ने कई सवालों के जवाब दिए और उनपर विस्तार से चर्चा की. हम आपको उन्हीं सवालों और जवाबों से हूबहू रूबरू करा रहे हैं.

सवाल - आपके लिए बहुत ही नया अनुभव है कि अभी-अभी सेटल होकर राज्य चलाना है और फिर एक बड़े चुनाव प्रचार में आप लगे हुए हैं तो उसमें जो सबसे बड़ा चैलेंज आपके लिए है कि मोदी की गारंटी तो हो गई. लेकिन, अब आपको मोदी को गारंटी देनी है कि 29 में से 29.

जवाब - निश्चित रूप से और मुझे इस बात का पूरा भरोसा है. प्रदेश की जनता ने माननीय मोदी जी के दस साल के कार्यकाल को देखा है. वैसे भी हमारे प्रदेश में 2014 में हम सत्ताईस सीट जीते थे, 2019 में हम गुना भी जीते थे. अब सिंधिया जी भी हमारे साथ आ गए हैं तो इस रूप से अट्ठाईस सीटें हो चुकी हैं. 29वीं केवल छिंदवाड़ा लोकसभा सीट बची थी तो हमने कैंपेन किया है और जनता का जो साथ मिला है, मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूं कि छिंदवाड़ा भी हम जीत रहे हैं. 

सवाल - छिंदवाड़ा जीतेंगे तो एक बहुत ही बड़ा रिकॉर्ड बनेगा, लेकिन क्योंकि ये तीसरे बार की इनकम्बेंसी है तो ऐसा हो सकता है कि एकाध सीटें चुनौती आगे पीछे और कहीं अट्ठाईस का सत्ताईस, छब्बीस या पच्चीस तो नहीं हो जाएगा?

जवाब -  नहीं, ये तो कहीं संभव ही नहीं है. मोदी जी के काम से जनता जिस ढंग से आनंदित है, आपको एक उदाहरण देता हूं. मोदी जी ने इस विधानसभा चुनाव में, जिसमें हम लोग जीत करके आए हैं. एक स्लोगन चला 'एमपी के मन में मोदी, मोदी के मन में एमपी.' यह इतना हिट हुआ, आपके सब के बड़े-बड़े राजनीतिक पंडितों के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त हो गए, जो कहा कि सरकार बीजेपी की नहीं बन रही है. तो लगातार हम 2003 से बीजेपी यहां सरकार में है. एक सवा साल कांग्रेस का छोड़ दें तो लगातार बीजेपी रही है. तो मोदी जी के उस भाव के कारण से राजस्थान भी जीते हैं. मध्यदेश भी जीते हैं. और छत्तीसगढ़ भी जीते है. तो इसलिए मोदी जी का कोई एंटी इनकम्बेंसी वाला मामला नहीं है, मोदी जी को तो और इसका लाभ मिल रहा है और हमको भी लाभ मिल रहा है. 

सवाल - इन्फैक्ट आप सही कह रहे हैं कि विधानसभा में जो मोदी प्रीमियम है वो लोकसभा में उससे ज्यादा हो जाता है. तो इस बार वोट शेयर का नंबर आपके दिमाग में क्या है?

जवाब - देखिए, बहुत स्पष्ट है. पिछली बार अभी लेटेस्ट अगर स्टेट में देखा जाए तो हम लास्ट चुनाव में चवालीस थे. लेकिन इस बार विधानसभा में 48 प्रतिशत पर गए. और बिफोर लास्ट ईयर का कंपैरिजन करें तो लास्ट इयर हम 58 प्रतिशत वोट शेयर मोदी जी के नाम पर गए थे. निश्चित रूप से अप करने वाला है. हम 100 प्रतिशत 58 से ऊपर जाएंगे. क्योंकि जिस तरह से कांग्रेस लगातार डाउन होती जा रही है. पहली बार कांग्रेस ने मैदान छोड़ा, खजुराहो सीट उन्होंने सपा को दे दी. सपा ने वापस गले डाली कांग्रेस के, कुल मिलाकर यह रहा कि अब वहां कैंडिडेट ही नहीं है. तो आखिर ये सब चीजें लक्षण दिखाई देते हैं. छिंदवाड़ा और राजगढ़ सीट से दोनों कांग्रेस के स्टार प्रचारक हैं, लेकिन दोनों अपनी सीट छोड़कर बाहर नहीं जा पा रहे हैं. इसके प्रदेश अध्यक्ष हैं, कांग्रेस ने कहा कि सबको चुनाव लड़ना चाहिए, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया. ये कुछ भी कर लें कांग्रेस के लोग सफल नहीं होने वाले हैं.

सवाल - एक बात और एक फेज का चुनाव हो गया, तो जो शुरू में आप अपना एक नैरेटिव लेकर जा रहे थे कि इन मुद्दों पर आप फोकस करेंगे. तो पहले फेस के बाद वही बात आप कह रहे हैं या दूसरे फेस में और आगे चलते हुए आपके नेगेटिव में परिवर्तन है? 

जवाब - नहीं, हमारे नेगेटिव में कोई परिवर्तन नहीं है. हमारी बहुत स्पष्ट नीति है. मोदी जी उनके भाषण में जो बात कहते हैं कि डबल इंजन की सरकार है तो हमारी सरकार अलरेडी बन चुकी है. और राज्य सरकार को केंद्र सरकार से जो भरपूर मदद मिलती है उसी भाव को लेकर हम आगे बढ़ रहे हैं. जैसा आपको उदाहरण देना चाहूंगा कि हमारे यहां नदी जोड़ो अभियान एक बहुत बड़ा, पहला भारत का प्रोजेक्ट है, केन-बेतवा नदी योजना का. उसमें मोदी जी द्वारा 45 हज़ार करोड़ की योजना दी गई है. जिसमें से हमारे बुंदेलखंड के खजुराहो यानी छतरपुर, सागर, पन्ना, बीना, यह पूरा हमारा बेल्ट उससे लाभान्वित होने वाला है. एक नदी जोड़ो योजना पार्वती-कालीसिंध और चंबल, पीकेसी योजना के अंतर्गत राजस्थान और मध्य प्रदेश के बीच 20 साल से उलझा हुआ प्रकरण था. कांग्रेस के टाइम पर इस बार-बार उलझाते थे. लेकिन, हमारी जैसी ही सरकार बनी तुरंत उसमें मोदी जी का लाभ मिला और ये योजना लागू कर दी. 35 हज़ार करोड़ हमको उसमें मिलने वाले हैं. तो पानी का एक-एक बूंद खेती के लिए भी और घर के लिए भी और पानी से यह बात जानते हैं कि खेती आधारित हमारा राज्य है तो उसका बड़े पैमाने पर हमको लाभ मिल रहा है. ऐसे कई प्रोजेक्ट हैं एजुकेशन है, हेल्थ है, टूरिज्म है जहां केंद्र सरकार से लगातार हमको मदद मिल रही है. तो हमारा तो एक मात्र नैरेटिव है कि हम रोजगार परक प्रदेश को बनाना चाहते हैं और किसानों की, दूध उत्पादकों की, सभी प्रकार की जीवन की जो जरूरतें हैं, उनकी पूर्ति करते हुए राज्य को प्रग्रेसिव बनाना है. 

सवाल - इस विषय को थोड़ा और खोलते हैं. जैसा आपने कहा कि रोजगार परक और खेती बुनियाद है, मध्य प्रदेश के लिए बहुत इंपोर्टेंट है. तो सिंचाई, बिजली, खेती ये आपके विकास का आधार बनेगा. लेकिन, आप एक नए मुख्यमंत्री के रूप में जब काम शुरू कर रहे हैं तो अपना एक विजन कि मेरा फोकस मेरा जोर इस बात पर रहेगा, उसकी कुछ क्लियरिटी आपको आ रही है कि आप किस पर प्राथमिकता देंगे?

जवाब - मेरी क्लियरिटी बहुत क्लियर है. जैसे उदाहरण के लिए, मैं बताना चाहूंगा कि हमारे यहां कृषि विकास दर 25 प्रतिशत चली गई है. अब एग्रीकल्चर में इससे आगे और ले जाना यह एक तरह से अह सेटल हो गया है. तो हमारे पास किसानों की खेती के अलावा आय बढ़ाना है तो दूध उत्पादन हो सकता है. तो दूध उत्पादन के मामले को लेकर के मैं अमूल की डेयरी प्लांट वालों के पास भी गया था. आपने यहां कोऑपरेटिव वालों के साथ भी बात कर रहा हूं. भारत सरकार के पशुपालन विभाग से भी बात कर रहा हूं. कुल मिलाकर के दूध उत्पादन के मामले में क्या-क्या हो सकता है, कैसे कैसे करना चाहिए. अब दो सेक्टर एक कोऑपरेटिव हुई और एक प्राइवेट सेक्टर भी आजकल ये समान रूप से आ रहा है. तो दूध उत्पाद को बढ़ावा देकर के दूध में भी गौशालाओं को गाय का दूध खास कर के बड़े पैमाने पर देशी गाय का दूध मिलना चाहिए. तो इस तरह से कई प्रोजेक्ट में दूध उत्पादन के माध्यम से खेती किसानी के क्षेत्र में होता है. 

लेकिन, भौगोलिक दृष्टि से हमारे प्रदेश में इंडस्ट्री की संभावना भी बहुत है. इंडस्ट्री भी अलग-अलग प्रकार की है. जैसे कई मायने आधारित इंडस्ट्री हैं, जिसमें हम काम कर सकते हैं. कई बड़ी संख्या में आबादी वाले बेल्ट जैसे बुंदेलखंड का बेल्ट है, मालवा का बेल्ट है, जहां हम अपने रेडीमेड गारमेंट्स लगाकर बाकी इंडस्ट्री को प्रोत्साहन दे रहे हैं और खास कर के महिला आधारित उद्योगों को लेकर भी. रोजगार परक बड़ी मशीन से केवल उद्योगपति को लाभ मिले इसके बजाय लोगों को रोजगार मिले. तो सरकार के माध्यम से भी मदद देकर के बड़े पैमाने पर रोजगार आधारित उद्योग प्रारंभ कराना, तो हर जिले का अलग-अलग हमने रीजनल कॉन्क्लेव कराने का प्लान बनाया, जिसमें एक समिट हम कर चुके हैं और पूरे प्रदेश में हमने मैसेज दिया कि केवल एमओयू करने के लिए ये कंपनी नहीं होगी, भूमि पूजन और लोकार्पण होना चाहिए समय सीमा के अंदर. और फिर उसको लाइव सभी प्रदेश में से इंवॉल्व कर रहे हैं. तो इसका लाभ मिल रहा है.

सवाल - तो ये जो जर्नी है भूमि पूजन से लोकार्पण. उसमें देखिए हमारी जानकारी ये बताती है कि इंडस्ट्री आती है, बात करती है, वह लगाना भी चाहती है, लेकिन कई बार वो पॉलिसी या क्लीयरेंस वगैरह का जो एक कंड्यूसिव माहौल जिसको कहते हैं कि परमिशन जल्दी मिले. मध्य प्रदेश ने काफी काम किया है इसमें, लेकिन तब भी थोड़ा गैप है कि उद्यमी वास्तव में आके यहां बड़ी इंडस्ट्री लगाने की सोचें.

जवाब - नहीं, हमने लगातार प्रोत्साहन दिया. मैं आपको जानकारी के लिए बताना चाहूंगा कि मेरे आने के बाद में हमने इसमें एक सब कमेटी भी बनाई मंत्रिमंडल स्तर की. जिसमें इनके पार्टिकुलर जिले के अंदर कौन-कौन से तरीके से उसको बढ़ावा दे सकते हैं. उस कई इंडस्ट्री का निराकरण भी कराया है तो उसका लाभ भी मिल रहा है. फिर बड़े पैमाने पर जैसे हमारे यहां एनर्जी के सेक्टर में सोलर एनर्जी, वाटर हाइड्रो पावर और इस प्रकार से बहुत गुंजाइश है तो इसके भी अलग-अलग प्रोजेक्ट निकाल रहे हैं. इसी प्रकार से माइनिंग नीलामी में तो हमने अभी पुरस्कार जीता. खदान आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने को लेकर के भारत सरकार ने नंबर वन राज्य का हमको एक पुरस्कार भी दिया है और ये जो पारदर्शिता के साथ खदानों की नीलामी कराते हुए उसमें उद्योगों के लिए आमंत्रित करना. ऐसे अलग-अलग सेक्टर में लगातार हम काम कर रहे हैं और उसका लाभ भी मिल रहा है. 

सवाल - तो उद्योग जिसमें की मैं समझता हूं कि एग्रो बेस्ट टेक्सटाइल माइनिंग, ये क्लियर फोकस है आपका?

जवाब - बराबर, और इसी में रेडीमेड गारमेंट्स भी है. कॉटन आधारित उद्योग भी है. फिर इसमें वीविंग वाला सेक्टर भी बड़ा है. साथ ही साथ हमारे यहां अभी हमने कहा कि मैं आपको एक उदाहरण दे रहा हूं कि ग्रामोद्योग, हस्तशिल्प इसमें भी बड़े पैमाने पर रोजगार है. जैसे मैंने अभी शुरू कराया कि महाकाल के महालोक बनने के बाद बड़े पैमाने पर लोग आ रहे हैं. लेकिन, महाकाल के महालोक में एफआरबी की प्रतिमा बन गई. तो वो एक चूंकि बनाने का एक समय सीम के अंदर एक महाकाल का महालोक बताना था तो वो उस समय तो ठीक था, लेकिन काल के प्रवाह में कोई मंदिर में एफआरबी की प्रतिमा नहीं लगनी चाहिए. तो हमने मूर्ति शिल्प का एक कार्यशाला लगा दी और मूर्ति शिल्प की कार्यशाला के बलबूते पर दो-तीन-चार साल में सारी मूर्तियां रिप्लेस कर दी. तो मूर्ति शिल्प केवल जयपुर पर क्यों निर्भर होना चाहिए? हमारे यहां भी प्रदेश में बन सकता हैं. तो उस आधार पर एक नया उद्योग का एक रास्ता खुलता है. 

उसी प्रकार से आमतौर पर महाकाल के महालोक के बाद से या और ओरछा में या चित्रकूट में धार्मिक पर्यटन की बड़ी संभावना है, तो धार्मिक पर्यटन के साथ-साथ उसमें रोजगार खोजने के लिए भी. तो हमने कहा भगवान के वस्त्र बनवाना, उनके ऑर्नामेंट बनाना या इस प्रकार से और कौन-कौन से शिल्प और हो सकते हैं उनको जोड़ने हुए, इसमें भी रोजगार देखना. 

सवाल - तो धार्मिक टूरिज्म तो बहुत बड़ा हो सकता है और आपको लगता है कि महाकाल जो हैं वो तो दरअसल बनारस की बराबरी वो मुकाबला करने का तैयारी आपको करनी चाहिए.

जवाब - आज की स्थिति में आपको जानकर आश्चर्य लगेगा बनारस डबल दर्शनार्थी उज्जैन आ रहे हैं.

सवाल - यहां लेकिन, डॉक्टर मोहन यादव के सामने एक दुविधा है या कहिए कि विकल्प है. और वो क्या चुनेंगे यह जानने में मेरी बड़ी दिलचस्पी है. एक तरफ आप उज्जैन के हैं तो जाहिर है कि भोले शंकर के लिए उनको प्राथमिकता मिलनी चाहिए. लेकिन, कृष्ण भगवान भी उतने ही इंपॉर्टेंट हैं एक यदुवंशी के लिए. तो कृष्ण और शंकर में से आप एक चुनेंगे या आप दोनों पर काम करेंगे? 

जवाब - आपकी बात पर थोड़ा संशोधन कर दूं. चित्रकूट भी हमारे यहां है. तो हमारे यहां जैसे अयोध्या में वर्तमान के दौर में पूरा फोकस हुआ लोगों का, तो भगवान राम के लिए अयोध्या उतनी महत्व कि ग्यारह साल उन्होंने वनवास तो चित्रकूट में निकाले. तो भगवान राम का, भगवान कृष्ण का और इसी प्रकार से आपकी जानकारी के लिए शक्तिपीठ भी है हमारे यहां. जो इक्यावन शक्तिपीठ हैं, उसमें से माता हरसिद्धि का, गढ़कालिका का शक्तिपीठ उज्जैन में है. तो हमने कोशिश की कि सभी धार्मिक पर्यटन के केंद्रों को साथ में लेकर के समान रूप से उन पर काम कर रहे हैं, और खासकर भगवान राम और भगवान कृष्ण के लिए तो स्टेट में जहां-जहां उनकी लीलाएं हुई हैं, वह प्रत्येक स्थान को तीर्थ बनाने के लिए हमने इस पर डिसीजन कर लिया है. और इसी के साथ-साथ ऐसे और स्थान, जहां पर और भी ऐसे महत्व के मंदिर हैं, जैसे नलखेड़ा पीतांबरा माई का मंदिर है, बगलामुखी माता का मंदिर है, ओरछा के राजाराम का मंदिर है बहुत प्रसिद्ध मंदिर है, सलकनपुर माता जी का मंदिर है, कटनी, मैहर की माता जी का मंदिर है. हमने कहा कि भाई मंदिरों के लिए भी केवल धर्मस्व मंत्रालय विचार नहीं करेगा. तो धर्मस्व के अलावा, जैसे मैंने दो मंदिरों के लिए तो घोषणा की है. पर चित्रकूट में विकास प्राधिकरण बना दिया जो वहां के सारे डेवलपमेंट का काम वो खुद करेगा और उसको एग्जीबिशन में भी लिया है. और इसी को आधार पर पैकेज भी दिया तो मंदाकिनी के घाट से लेकर के वहां तीर्थ बनाना. लेकिन अभी हमने प्लान किया कि लगभग तीन हज़ार से बड़े मंदिर उज्जैन सहित पूरे प्रदेश के अंदर हैं जो शासकीय हैं. लेकिन, कोई गांव में है, कोई शहर में है. तो पांच मंत्रियों की मंत्रिमंडलीय उप-समिति बनाते हैं, हमने उसमें एक साथ जोड़ा है कि केवल मंदिर के अंदर निर्माण करने से काम नहीं चलेगा. मंदिर के बाहर सड़क चाहिए, बिजली की व्यवस्था चाहिए. तो नगर निगम है तो नगर निगम को या स्थानीय शासन विभाग को उससे जोड़ रहे हैं. और पंचायत में है तो पंचायत को जोड़ रहे हैं. और राजस्व के माध्यम से उस मंदिर की अगर जमीन है तो उस जमीन से कैसे उस मंदिर का रेवेन्यू बढ़ सकती है, वहां विकास का क्या-क्या प्लान हो सकता है? और आने वाले 25 साल तक हमारे साले देवस्थान पर केवल दर्शन के लिए नहीं होते हुए सामाजिक जन चेतना का केंद्र बने, इसलिए हर साल उसके मेले आयोजित कराना. भगवान के हर त्यौहार अच्छे से मानना. पूजा पद्धति में अगर शुद्ध ऋग्वेदी पद्धति है तो ऋग्वेदी पद्धती में भी जो शुद्ध उच्चारण सहित पूजा करे सके उस तरह की उनकी ट्रेनिंग कराना. ऐसे कई को हाथ में लिया है. आने वाले समय में ये सब बातों का आपको रिजल्ट दिखेगा. 

सवाल - ये जो आ बता रहे हैं, आप डोमेस्टिक टूरिज्म के लिए तो एक बहुत ही व्यापक काम हो जाएगा, लेकिन मुझे लगता है कि उज्जैन की वजह से, जिसको कहते हैं कि ग्लोबल टूरिज्म का मैग्नेट बनाना, वो पोटेंशियल भी है. उसका कोई थॉट?

जवाब - 100 प्रतिशत है. जैसे आपकी जानकारी के लिए जब मैं यूडीए चेयरमैन उज्जैन में था, तब मैंने इस्कॉन इंटरनेशनल को उज्जैन में जमीन दी थी. इस्कॉन का बहुत बड़ा सेंटर बना है. तो इंटरनेशनल लेवल पर भी धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए इस्कॉन इंटरनेशनल को जोड़ा है. अभी हमारे पास ऐसे और भी प्रकार के अंतरराष्ट्रीय ऐसे कई संप्रदाय भी संपर्क में आए हैं, तो हमने कहा कि ऐसे स्थानों को विकसित करने में जो आपसे मैंने बात कही है उसी तरह से हर एक केंद्र को डेवलप करने की योजना बनी है.

सवाल - पढ़ाई का एक दूसरा विषय है जो बड़ा विषय है, हमको लगता है कि उसमें भी मध्य प्रदेश में काफी इंस्टीट्यूशन्स हैं उस तरह के, लेकिन रोजगार और स्किल ये दोनों काम साथ चलें तो, क्योंकि सिर्फ सरकारी नौकरी या नौकरी से हो नहीं सकता, तो शिक्षा पर किस तरह का फोकस रहेगा आपका?

जवाब - देखिए शिक्षा में हमने, मैं पहले शिक्षा मंत्री भी रहा हूं मुख्यमंत्री बनने से पहले. मुझे इस बात की जानकारी है. हमने इसमें कुछ चेंज भी किया बदलाव भी किया, ये हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 मोदी जी के शासन काल में आई है. ये बहुत क्लियर है कि हमारे पास केवल कागज की डिग्री बांटने के लिए शिक्षा नहीं होनी चाहिए, शिक्षा में वास्तव में जो उच्च शिक्षा में आना चाहते हैं, अभी उदाहरण के लिए 20 लाख विद्यार्थी हमारे उच्च शिक्षा में हैं. लेकिन, एक्चुअल में नई शिक्षा नीति जो हमने लागू की है. पूरी क्लास वन से चालू होगी, तो आते-आते किसी भी हालत में हमारे पास 2 लाख से अधिक उच्च शिक्षा में विद्यार्थी नहीं होने चाहिए. बाकी बच्चे जो मिडिल के बाद हाई स्कूल में आते-आते वो रोजगार परक किसी क्षेत्र में जाए, वो आईटीआई में जाए या इस प्रकार के पॉलिटेक्निक में जाए, उनके अपने जीवन की लाइन तय हो जाती है. तो उस प्रकार से रोजगार में हमारा अपना स्किल डेवलपमेंट में ज्यादा ध्यान देने वाला है. इसलिए हमने स्किल मिनिस्ट्री की कल्पना की. हम स्किल मिनिस्ट्री बनाने वाले हैं. पर स्किल मिनिस्ट्री भी एक तरह से उच्च शिक्षा वाला है.

इसी प्रकार से अलग-अलग प्रकार के स्टार्टअप से लेकर मिनिस्ट्रियों के अंदर प्रोत्साहन दे रहे हैं. आखिर में माहौल हमारा रोजगार परक शिक्षा पर ही जाना चाहिए. 

सवाल - जब आप मुख्यमंत्री बने तो उसके बाद आपकी जो एक चर्चा लगातार होती है वह है कि आप बड़े सख्त हैं, अफसरों को भी आप थोड़ा टाइट रखते हैं और बहुत तेजी से फैसले लेते हैं आप. तो उसमें ये अनुभव कैसा रहा, अफसर और प्रशासन अब बिलकुल लाइन पर है, नियंत्रण में है? 

जवाब - अब मैं तो यह नहीं जान सकता, लेकिन मेरी सरकार के आधार पर लोग बता सकेंगे कि वो सरकार कैसे चल रही है. यह सत्य बात है कि मैं वैसे सरकार के निर्णयों के लिए मेरा अपना एक मानना रहता है कि निर्णय अगर कर लिए तो उसका पालन होना चाहिए. कोई भी सरकार हो अगर निर्णय करने में देरी करेगी तो देरी से करने वाले निर्णय भी किसी के लिए लाभ के बजाय नुकसानदायक होगा. तो समय पर फैसले करना और समय पर लागू कराना और मैं इस बात के पक्ष में रहता हूं. जैसे मैं शिक्षा मंत्री था 2-3 साल, भले ही कोविड का समय था, लोगों ने कहा जनरल प्रमोशन दे दो. हमने कहा क्यों दे दें? प्रमोशन हम नहीं देंगे. भले ही ओपन बुक परीक्षा प्रणाली लगा लो, लेकिन बच्चा घर में बैठ के लिखे, लेकिन उसकी आदत पढ़ाई की इससे जुड़ना चाहिए, छूटना नहीं चाहिए. जीपी लिखा रहेगा मार्कशीट में क्या फायदा? किसके लिए काम की? तो ऐसी जो मूल्य आधारित जो व्यवस्थाएं हैं, जिसमें हमको लगे कि सरकार की व्यवस्थाओं के माध्यम से हमने इसमें कोई समाज का भी हित देखा, राज्य का भी हित देखा और एक तरह से सरकार और समाज अलग-अलग नहीं होती. समाज का प्रतिबिंब सरकार में आता है. तो समाज भी जिसको अच्छा समझे, वो सरकार चलाने में तो आनंद है नहीं तो क्या फायदा. 

सवाल - एक किस्सा जिसकी बड़ी चर्चा हुई और जाहिर है कि वो किस्सा मैं गॉसिप के लेवल पर नहीं उठा रहा हूं, क्योंकि इस पर काफी बात हो चुकी है. वो है कि आपने शाजापुर के कलेक्टर को ट्रांसफर कर दिया, तो उसके पीछे मुझे लगता है कि पब्लिक के साथ व्यवहार कैसा हो? सरकार कितनी रिस्पॉन्सिव या संवेदनशील है लोगों को डील करने में, आप संभवतः ये मैसेज देना चाहते थे? फिर भी ये बाबूगिरी तो बहुत होती है. 

जवाब - मैं इससे सहमत हूं. क्या होता है कभी-कभी कि हम अपने संवेदनाओं को एक तरह से निष्ठुर बना लेते हैं. ये मैं इससे थोड़ा इत्तेफाक नहीं रखता हूं, मैं इससे हटके रखता हूं. गरीब आदमी है या कमजोर आदमी है या कोई ड्राइवर है, वो तो वो है जो है. हम अधिकारी हैं ना, हमारी जवाबदारी ज्यादा है. तो मैं शुरू से इस बात का ध्यान रखता हूं कि सम्मान दोगे को सम्मान मिलेगा. और हम सम्मान देने की बात से पहले जवाबदेही भी हमारी है, तो हम चाहे जितने ही बड़े अधिकारी हों उतनी हम सावधानी रखें. बाकी मेरी इसके पीछे कोई दूसरा इंटेंशन नहीं हैं. लेकिन, ये बात सत्य है कि मैं निर्णय करने में थोड़ा सा, मुझे लगता है कि निर्णय समय पर होना चाहिए, सुव्यवस्थित होना चाहिए और निर्णयों को लागू कराने की भी उतनी तत्परता भी होनी चाहिए.

सवाल - एक बहुत इंटरेस्टिंग चीज मैं आपसे समझना चाहता हूं कि आप मुख्यमंत्री हैं और अपेक्षाकृत युवा हैं और आप बहुत सारे वरिष्ठ सहयोगियों के साथ कैबिनेट में काम कर रहे हैं. और ह्यूमन डायनमिक्स बड़ा इंटरेस्टिंग होता है कि इस तरह की लीडरशिप, ये लीडरशिप की क्लास है, बल्कि एक तरीके का पता चलता है कि लोग अपने सीनियर्स को कैसे मैनेज कर रहे हैं? क्या अनुभव है?

जवाब - इसमें एक शब्द भी बोला था कि मैं सीनियर्स के बीच से नहीं बना हूं, मैं सीनियर के साथ बना हूं. मैं उसका पॉजिटिव देखूंगा तो मुझे ये लगता है कि कभी इसकी जरूरत पड़ती है कि मुझे मार्गदर्शन चाहिए तो मैं उनसे बात करता हूं सहजता से. तो मुझे उसका बड़ा अच्छा सकारात्मक उत्तर मिलता है. या क्रिकेट की भाषा में कहें कि मान लो विराट आए तो धोनी भी उनकी टीम में थे. या गावस्कर के टाइम की कल्पना करें जब कपिल देव कप्तान बने थे, तो टीम गेम है राजनीति, और यहां तो हमेशा सीनियर रहेंगे. अब उसमें से आप उनके मान-सम्मान का ध्यान रखते हुए सरकार की दिशा ठीक चल रही है यह आप पर डिपेंड करता है. तो कुल मिलाकर अगर हमारा उद्देश्य अच्छा है, सच्चा है तो सबका सहयोग मिलता है. प्रेम भाव से हम आपस में एक-दूसरे को सम्मान देते हुए सरकार चलाते हैं अच्छे से.

सवाल - यहां बहुत लंबे समय तक शिवराज जी का एक कार्यकाल रहा और उसके बाद जब आपने लिया तो जाहिर है सब लोगों के लिए एक प्रत्याशित सी बात थी. इस पर भी आपने काफी जवाब दिया लेकिन मैं फिर भी इस पर एक बार वापस आपसे सुनना चाहूंगा. और वो ये कि जब इतनी सारी योजना और एक ऐसी छवि बन जाती है वह छवि क्या है? साइकिल वाले, लाडली बहना और मामा. हालांकि बाद में बुलडोजर भी चलाते थे. तो यह डिफाइन क्या करता है? एक व्यक्ति की याद आ जाती है, एक पर्यायवाची शब्द बन जाता है, तो उसको देखते हुए आपकी लर्निंग क्या है, कि आपको हम कैसे आगे डिफाइन करें कि डॉक्टर मोहन यादव के मुख्यमंत्री काल में इनको इस चीज के लिए जाना जाए?

जवाब - मेरे लिए इस प्रश्न का उत्तर दो तरह से देने में मुझे लगता कि पांच साल के लिए सरकार बनती है और एक सौ दिन के अंदर जवाब देना थोड़ा आपके हिसाब से लग रहा है कि जल्दी हो रही. लेकिन फिर भी आपकी जानकारी के लिए डे फर्स्ट से, जिस दिन से मैं बैठा हूं, कुछ ऐसे निर्णय जिसमें कोई लगना ही नहीं था. जैसे उदाहरण के लिए, अब ध्वनि प्रदूषण के लिए माइक का उपयोग करना कोई भी धर्म स्थल हो, अब सुप्रीम कोर्ट का डिसीजन है. हमने एक निर्णय किया कि यह नहीं चलेगा और इसके कारण से 66 हज़ार माइक जमा कराके हमने छोड़वा दिए. अब मटन की दुकान, मछली की दुकान, खुलेआम बेचना अब इसमें क्या पॉलिसी की बात है? हमने कहा ये गलत है ये नहीं होना चाहिए? इसमें बस निर्णय किया और 8 दिन के अंदर रिजल्ट आया कि पूरे प्रदेश के अंदर, हमने कहा कि खाने से मना नहीं है, बेचने से मना नहीं है, इसका मार्केट बनता है उसकी अपनी एक मर्यादा है जो फूड सेफ्टी अधिनियम का पालन करते हुए आप बेचो ना कोई मना नहीं कर रहा. 

इस टाइप से जैसे डीजे है, डीजे बज रहे हैं कान फोड़ू. कोई देख नहीं रहा है तो डीजे बजने से इससे दो हैं, एक तो बैंड वाले, बाजे वाले, ढोल वाले बेचारे सब परेशान थे. दूसरा उसकी ध्वनि इतनी जबरदस्त होती के वृद्ध लोग, जवान लोग, बूढ़े लोग हर कोई उसकी वाइब्रेशन इतना खतरनाक था, तो हमने कहा नहीं ये नहीं चलेगा. जहां-जहां जो-जो जरूरत थी वो सारे निर्णय करते-करते आए हैं. अब जैसे बीआरटीएस भोपाल में है, तो रोड उतने चौड़े है ही नहीं, लेकिन जो है उसमें भी बीआरटीएस आ गया. तो सबसे पूछा इसका क्या करना चाहिए, उन्होंने कहा इसको खत्म करना चाहिए. आठ दिन में खत्म करने का निर्णय किया. फौरन लागू हो गया. डेढ़-दो महीने में बस आनी खत्म हो गई. तो निर्णय को जनता की हित में लेकर अगर बढ़ेंगे आगे तो जनता का प्रतिसाथ भी मिलता है, आनंद भी मिलता है और ऐसे एक मैंने लगभग सौ से ज्यादा निर्णय किए और सारे निर्णय में इसी गति से लगातार उसका लाभ भी मिलता गया. अब आप बताइए जैसे अभी धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने वाली बात हमने कही, तो जैसे अपन केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री में हेलीकॉप्टर सेवा करते हैं, हमारा राज्य भी इतना बड़ा है तो हेलीकॉप्टर सेवा हमारे यहां भी धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने की आवश्यकता है. तो उज्जैन से ओंकारेश्वर, महाकालेश्वर दो घंटे में दोनों ज्योतिर्लिंग हो जाते हैं, इंदौर सेंटर बनाते हैं. ऐसे ओरछा, दतिया, कटनी जो-जो स्थान हैं. फिर रिजर्व फॉरेस्ट भी बहुत हैं हमारे पास तो ये सारे टूरिज्म को बढ़ाने के लिए इनका लाभ क्यों नहीं मिलना चाहिए? एयर टैक्सी क्यों नहीं होना चाहिए? एयर टैक्सी चालू कर दी. फिर हमने एयर एम्बुलेंस भी क्यों नहीं होना चाहिए? फिर हमने आयुष्मान से, लगभग 4 करोड़ लोगों के आयुष्मान कार्ड बने हैं. तो गरीब आदमी, कोई बच्चा, बूढ़ा अस्पताल में भर्ती है, डॉक्टर कह रहा कि इसे बड़े अस्पताल में ले जाना है. अब उसकी क्षमता नहीं है तो कलेक्टर और डॉक्टर डिसाइड करेगा. हमने डिसाइड किया है एयर एंबुलेंस से डॉक्टर की मेडिकल सुविधा भी मिलेगी. तुरंत, उसे शिफ्ट करेंगे कहीं भी. 

सवाल - ये कई इंटरेस्टिंग बातें आपने बताई, लेकिन यह बहुत ही दिलचस्प है क्योंकि यह बहुत कोई हेडलाइन का विषय नहीं दिखता कि ध्वनि प्रदूषण पर एक मुख्यमंत्री इतना ज्यादा ध्यान दे कि उसको बंद कराने का काम करे और आपने नोटिस किया होगा हमारी जो टीम है एनडीटीवी मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ की, वो आपको वीआईपी कल्चर भी नहीं पसंद है. तो हूटर के खिलाफ अभियान चलाया, तो उस पर आपने क्या कुछ निर्देश दिया या देने वाले हैं?

जवाब - मेरे काफिले में हूटर ही नहीं बजता है. और मैंने कहा कि ये अच्छी बात नहीं है. ये बिल्कुल बंद होना चाहिए, इसकी जरूरत नहीं. ये चीजें ऐसी हैं जो आम....

सवाल - लेकिन, हमने धरपकड़ की. बहुत सारे लोग बजा रहे हैं.

जवाब - मैं उन पर कार्रवाई कराता हूं ना. आपके उस अभियान की सराहना भी करता हूं और हमने कहा ये अच्छी बात है. इसमें आखिर हम अपने आप आपको क्यों इस तरह से डालना चाहते हैं कि हम कोई बहुत बड़े आदमी हैं, हम तो जो हैं सामान्य हैं.

सवाल - ऐसे तो जो मध्य प्रदेश के लोग जानते थे वो आपके बड़े में ये सब पहले से जानते ही थे, लेकिन अब हम लोग राष्ट्रीय स्तर पर कई नई चीजें जान रहे हैं और आपके बारे में कहते हैं न कि ये क्या-क्या करते हैं? तो उसमें मैं कह सकता हूं कि आप बड़े अच्छे पौराणिक कथाकार भी हैं. तो वेद, पुराण पढ़कर के उसको सामयिक संदर्भों से जोड़ने पर भी आपने काफी अच्छा कम किया है. 

जवाब - मैं उज्जैन से आता हूं और पारिवारिक पृष्ठभूमि भी ऐसी है और मुझे स्वाध्याय का सुरू भी है. खासकर ऐसा लगता है कि कई सारे मिथक रहते हैं, जिनको हमको तोड़ना चाहिए. जो बिना बात के बन जाते हैं. तो बोलना भी चाहिए और करके भी दिखाना चाहिए. जैसे उज्जैन में बाबा महाकाल के यहां कोई रात नहीं रहेगा, मैंने कहा यह क्या बात हुई भाई. बाबा महाकाल तो जन्मदाता हैं, वो हमारे पालक हैं. वो कोई किसी की जान क्यों लेंगे और अगर उनकी टेढ़ी दृष्टि तो ब्रह्मांड में कोई कहां बचेगा. 

सवाल - ये जब आपने तय किया होगा तो दोनों तरह की राय मिली होगी?

जवाब - मिली ना. बड़े पैमाने पर डरने वाले मिले कि अरे तुम कहां पंगा ले रहे हो, तुम क्यों चक्कर में पड़ रहे हो. हमने कहा ऐसा कुछ नहीं होता रहे हैं.

सवाल - क्या आप ये कह रहे कि आप अंधविश्वास के खिलाफ हैं?

जवाब - निश्चित रूप से. और मैं सहमत हूं इस बात के लिए प्रोग्रेसिव समाज है. आज के समाज में इन सारी बातों में हमको भगवान पर भरोसा भी रखना चाहिए और भगवान की जो सच्ची बात है उसको लाने के लिए प्रयास करना चाहिए. यह इस टाइप के मिथक बन जाएंगे तो कैसे कम चलेगा? 

सवाल - चर्चा के आखिर में मैं आपसे एक बात पूछना चाहता हूं और इसको मैं कंप्लेन के रूप में रख रहा हूं. माना कि संघ की प्रेरणा के कारण बहुत सारे कार्यकर्ता आप जैसे घर, परिवार, त्याग सबकी परिभाषाएं बनाते हैं. लेकिन रिवर्स डिस्क्रिमिनेशन भी नहीं होना चाहिए. वो ये है, यह मुझे पता लगा कि आपके मुख्यमंत्री निवास में आपके परिवार का कोई व्यक्ति नहीं है या नहीं रहेगा. बच्चे भी हॉस्टल में पढ़ेंगे. मुझे एकदम इससे मैं सहमत नहीं हूं.

जवाब - आपका धन्यवाद, यह आपका मत हो सकता है. मैं थोड़ा सा इसको इस ढंग से देखा हूं कि जैसे मेरा बच्चा यहां भोपाल में पढ़ रहा है, हॉस्टल में पढ़ रहा है. उसने एमबीबीएस कर लिया, वो पीजी करने आया है. एमएस कर रहा है. तो अब ये आप बताइए कि अगर इसको यहां के इस आबोहवा का असर पड़ेगा तो वो पढ़ाई में डिस्टर्ब होगा कि नहीं होगा? तो अगर उसको ध्यान से पढ़ना है तो डॉक्टर के लिए पीजी की पढ़ाई तो और ज्यादा गंभीरता के साथ पढ़ने की होती है. तो मैं ऐसा मान के चला हूं कि उसको जब डिग्री पूरी करेगा, उसके बाद उसकी लाइन में उसको विचार करना चाहिए. इसके पहले मेरी बेटी यहां से एमबीबीएस करके गई , वो भी भोपाल में ही पढ़ी. जब मैं उसे समय उज्जैन विकास पर्यटन विकास निगम का प्रदेश का अध्यक्ष था. बाद में मैं विधायक-मंत्री बना, तब भी मैंने कहा बेटा तुमको हॉस्टल में पढ़ना है. तो बच्चे भी इस बात से सहमत हैं. मुझे इस बात से संतोष है कि मेरे परिवार में इस बात को लेकर के पॉजिटिव भाव है.

जैसे मेरे बेटे का विवाह हुआ, तो विवाह में अपने इस कैंपस में लाखों लोगों को लाकर क्यों शादी करना चाहिए? 100 लोगों में भी तो शादी कर सकते हैं. तो प्रतिमान बनाना तो हम कोई ही तो हमारा मन कड़ा करना पड़ेगा. तो हम जब जितने इस पूरे बात को समझेंगे तो वो बात नीचे उतरेगी.

सवाल - ये थोड़ा ज्यादा कड़क नहीं है? क्योंकि परिवार हमारे अस्तित्व का ही तो हिस्सा है. 

जवाब - लेकिन, परिवार को ही मानेंगे तो पूरा हमारा जो जवाबदारी है, उसमें कहीं घालमेल हो जाए. उस भाव को बचाकर चलना भी हमारी जिम्मेदारी है. जो जितना बड़ा बनता है उसको उतना सावधानी रखना चाहिए. ऐसा मेरा मानना है.

सवाल - एक और इंट्रेस्टिंग बात है, मैंने पढ़ा कि आपने तो एमबीबीएस छोड़ा क्योंकि आपको पॉलिटिक्स करनी थी और आपके दोनों बच्चे एमबीबीएस कर रहे हैं. तो वो अपने मन से चुने या आपने भी कुछ हिदायत दी?

जवाब - नहीं, यह बात सत्य थी कि मैं जब गया था बीएससी करने और मैं फर्स्ट ईयर या सेकंड ईयर में मैंने जाने के पहले पीएमटी दी, मेरा सिलेक्शन हो गया, मैं मेडिकल कॉलेज चला गया. लेकिन, उस समय सबने कहा कि नहीं हमको यहां वापस विद्यार्थी परिषद को जिताना है तो आपको प्रेसिडेंट बनना है. तो सेकंड ईयर में प्रेसिडेंट बनो. वो छोड़ के वापस लड़ने आ गया. ये बात सही थी कि मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि ऐसी थी कि मैं इन सब बातों में मैं उस समय एक उत्साह के वातावरण में भी था और ऐसा लगा कि चलो चुनाव लड़ लें ज्यादा अच्छा रहेगा. लेकिन, अब बाद में बच्चों ने इस बात को महसूस किया कि भाई हमको अगर डिग्री करते हैं, डॉक्टर बनते हैं तो क्या बुरा है. बाद में उनको जो करना हो करें. मेरा दामाद भी डॉक्टर है, बेटी डॉक्टर है, बेटा डॉक्टर है, मेरे घर में सब डॉक्टर हैं. एक बच्चा वकील भी है. एलएलएम किया उसने. 

सवाल - आखिरी सवाल एक पॉलिटिकल सवाल से, अब इस इंटरव्यू को हम लोग समापन करते हैं. और वो यह है कि ओबीसी रिजर्वेशन एक बड़ा मुद्दा रहा है और उसपर कुछ सिग्नल सही गए, कुछ गलत गए, कुछ वाद विवाद रहा. अभी दो दिन पहले गृह मंत्री जी से हमारे चैनल ने इंटरव्यू किया तो उन्होंने साफ किया कि बिल्कुल ये रिजर्वेशन रहने वाला है, इस पर आपके थॉट क्या हैं? और बीजेपी इसमें थोड़ा क्लियर है क्या?

जवाब - बीजेपी सब चीज में क्लियर है. बीजेपी पर जानबूझ कर डाले जाते हैं. आप बताइए बीजेपी के बारे में कहते हैं, ये ओबीसी विरोधी हैं. अरे! ओबीसी जो प्रधानमंत्री दे रहे हैं, ओबीसी मुख्यमंत्री दे रहे हैं. ये बीजेपी कहां से ओबीसी विरोधी हो गई? बीजेपी इस बात को नहीं कहती है जो जिस बात को कह कर के लोग वोट लेते हैं. जैसे, यह विषय आना ये गलत बात है. मोदी जी ने बहुत स्पष्ट कहा है कि गरीब, युवा, महिला और किसान ये चार जातियां हमारे पास हैं, उसमें सारी बात आ जाती है. हम अगर लोकतंत्र को बचाना है हमको, समाज में बीते काल की जो कठिनाई थी, जिससे समाज की उन्नति रुकी है, उनसे अगर बाहर आना है तो हमको अपने इस विवेक को विकसित करना पड़ेगा. हमारा दायरा बढ़ाना पड़ेगा.

सवाल - तो क्या ये मैं निष्कर्ष निकाल सकता हूं कि बीजेपी सरकारी नौकरियों से किसी समाज को बढ़ाए, इसके आगे राजनीति में पावर शेयर करने के लिए इन जातियों को आगे बढ़ा रही है. एक उदाहरण सामने बैठा है.

जवाब - अरे मैं बैठा हूं, हरियाणा में सैनी जी बैठे हैं. उधर भजनलाल शर्मा जी बैठे हैं. विष्णुदेव साय जी बैठे हैं. पूरा देश तो हमारा उदाहरण है. और हमारे परिवारों में जिनके नाम बता रहा हूं, किसी के परिवार में कोई सांसद, विधायक, मंत्री नहीं बना. उसके उलट देखो आप पूरे देश में. इनके इंडिया गठबंधन के सारे लोगों के परिवार में ही, वो अपने परिवार में जो मुख्यमंत्री बन गया उसका बेटा ही मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं. अपनी पार्टी के अध्यक्षता भी उनको देना चाहते. पार्लियामेंट्री बोर्ड में भी वही रहना चाहते हैं. कोई का भतीजा, कोई का बेटा, कोई का बेटी, कोई की बुआ, इससे बाहर नहीं आ रहा है. तो ये ऐसे लोकतंत्र के बजाय ये लोकतंत्र जो बीजेपी कहती है वो सच्चे अर्थों में ज्यादा सार्थक है. 

सवाल - आपने चूंकि कांग्रेस के संदर्भ में बेटे-बेटियों का जिक्र किया तो कांग्रेसी बेटे-बेटियों का इम्पोर्ट बीजेपी में चलना चाहिए की बंद होना चाहिए? 

जवाब - दोनों बातें हैं. उसका इम्पोर्ट कैसे चलेगा? लेकिन, यहां आकर के जो बीजेपी की कार्यशाला में आता है, रहता है, जुड़ता है. बीजेपी की अपनी एक ट्रेनिंग होती है, उसके अंदर रहकर के ही बीजेपी में कार्यकर्ता अपने आपको इसके समाहित भी कर पता या उसके लिए वो मानकर चलता है जब समर्पण कर देता तो पार्टी उसका विचार करती है और पार्टी उसका उदाहरण भी बनाती है.

हमारे असम के मुख्यमंत्री, हमारे साथ आए हमने उनको मुख्यमंत्री बनाया. योग्यता है तो मुख्यमंत्री बना रहे. भाजपा ही एकमात्र उदाहरण है. कोई और पार्टी करके बता दे. समाजवादी पार्टी कभी किसी को मुख्यमंत्री बना करके बता दे, बिहार में लालू जी बता दें, कोई भी एक पार्टी का आप नाम बता दें. ममता हिम्मत कर लें, केजरीवाल तो बताओ अंदर होने के बाद में इस डर के मारे कि मेरी उनकी पार्टी पर भी भरोसा नहीं. दूसरे की तो छोड़ दो. तो ऐसे दौर में बीजेपी आशा अपेक्षा के आधार पर सर्वाधिक रूप से लोकतंत्र हिमायती भी है और वो अपनी कथनी-करनी को एक करके जनता के बीच में लोकतंत्र की संवाहक भी है, जो आरक्षण को भी बचाना चाहती है, संविधान के लिए भी जितना चिंता कर सकती है करती है, लोकतंत्र की भी हिमायती है. और खास करके इस दौर में भारत का मान-सम्मान दुनिया में बढ़े. इसलिए देश आगे जाकर के दुनिया के सामने भारत की इमेज बनाना चाहिए.

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