Madhya Pradesh Transportation: देश का दिल कहे जाने वाला मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है, लेकिन इस राज्य के पास अपना कोई सड़क परिवहन निगम (MP Road Transport Corporation) नहीं है. यानी मध्य प्रदेश में सरकारी बसें संचालित ही नहीं होती है. दरअसल, 2005 में मध्य प्रदेश में सड़क परिवहन निगम बंद कर दिया गया था, तब से लेकर आज तक एमपी की सभी सड़कों पर निजी बस ऑपरेटर्स का कब्ज़ा है. प्राइवेट बस संचालक मुनाफा कमाने में लगे हुए हैं. सरकार को इनसे टैक्स मिल रहा है, लेकिन जनता परेशान हो रही है.
सुबह हो या शाम भोपाल के नादरा बस स्टैंड पर मुसाफिरों की भीड़ लगी रहती है. बस में बैठने के लिए भले ही सीटें 40 ही क्यों न हो, लेकिन 70-70 यात्री ठूंस दिए जाते हैं. इसके साथ ही ये बस ऑपरेटर्स मनमाना किराया वसूलते हैं, क्यूंकि कहने वाला कोई नहीं है. भगवान दास टीकमगढ़ के रहने वाले हैं, पर भोपाल में ईंट भट्टे में काम करते हैं. दिनभर में 300 से 400 रुपये कमाते हैं. महीने में एक से दो बार अपने गांव जाना होता है, आने जाने में ही 1000 रुपये से ज़्यादा खर्च हो जाते हैं. वे बताते हैं कि महंगाई बढ़ती जा रही है. बस में भी हालत ये है कि लोग ठूंस ठूंस कर भरे रहते हैं. ऐसे में बस से सफर करने में हम परेशान हो जाते हैं. ऊपर से इतना ज़्यादा किराया वसूला जाता है. वह बताते हैं कि ट्रेन से आ जा नहीं सकते हैं, नहीं तो इसे 125 रुपया लगते हैं. ट्रेन से समय बहुत लगता है. जल्दी जाने के लिए बस का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन यह बहुत महंगा पड़ता है.
सरकारी बसों की उठ रही है मांग
मान सिंह गौर सालों से बस में सफर कर रहे हैं. औबेदुल्लागंज से सीहोर जा रहे थे. वो बताते हैं कि जब सरकारी बस चलती थी, तो किराया कम था. अब तो जिस बस में सफर करते हैं, तो किराया डबल और पूरा देना पड़ता है, लेकिन बस में बैठने तक की जगह नहीं मिलती है. खड़े होकर ही सफर करना पड़ता है. वह बताते हैं कि हम तो सालों से बस में सफ़र कर रहे हैं. पहले जब सरकारी बसें हुआ करती थी, तो किराया थोड़ा कम था, लेकिन अब तो इन बस ऑपरेटरों की मनमानी चल रही है. एक तरफ ज़्यादा किराया वसूला जाता है, ऊपर से टिकट लेने के बाद भी एक पैर पर खड़े होकर सफ़र करना पड़ता है. इन बसों में बहुत भीड़ होती है. इसलिए, सरकारी बसें दोबारा शुरू कर देनी चाहिए. ये हालत सिर्फ भोपाल के बस स्टैंड की ही नहीं है. एनडीटीवी संवाददाता ने दूर दराज इलाकों से बस में सफर कर रहे लोगों के साथ जब सफर किया, तो उनकी परेशानियां भी इस तरह निकल सामने आई.
एमपी की 'सड़कों' से सरकारी 'परिवहन' गायब
- तत्कालीन बाबूलाल गौर सरकार ने लिया था फैसला
- परिवहन निगम 756 करोड़ के घाटे में बताया गया
- देनदारियां 1033 करोड़ रुपये की बताई गई थी
दरअसल, साल 2005 में सड़क परिवहन निगम को घाटे में बताकर बंद कर दिया गया था. इसका गज़ट नोटिफिकेशन आज तक जारी नहीं हो पाया है, लेकिन तब से कमान निजी ऑपरेटरों के हाथ में है, जो धड़ल्ले से नियमों का उल्लंघन कर अपनी मनमानी में जुटे हुए हैं. ये निजी बसें नियम तोड़कर ओवरलोड सवारियां भरकर सड़कों पर फर्राटे भर रहीं हैं. हालत ये है कि इन बसों के परमिट सालों पुराने हो चुके हैं, या है ही नहीं. फिटनेस चेक के नाम पर बस फॉर्मेलिटी निभाई जाती है. ये सब तब हो रहा है, जब राज्य में कई बड़े सड़क हादसे हो चुके हैं.
हादसों के बाद भी नहीं बदले हालात
- 2021 में सीधी बस हादसे में 54 लोगों की मौत हुई
- गुना में हुए भीषण बस हादसे में 13 लोग जिंदा जले
- धार बस हादसे में 13 लोगों की मौत हुई
- बालाघाट,पांढुर्ना,राजगढ़ बस हादसों में दर्जनों घायल हुए
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हालांकि, सरकार सड़क परिवहन व्यवस्था को फिर शुरू करने पर विचार कर रही है. इस पूरे मामले पर परिवहन मंत्री उदय प्रताप सिंह ने कहा है कि लंबे समय से हम लोग इस विषय पर मुख्यमंत्री के निर्देश पर काम कर रहे हैं. मुख्यमंत्री का ये मानना है कि अगर संभावना बनती है, तो ग्रामीण परिवहन को शुरू किया जाना चाहिए. अभी बहुत प्राइमरी स्टेज पर विभाग में डिस्कशन चल रहा है. लोगों की सुविधा के लिए अगर कोई संभावना बनती है, तो हमारी प्राथमिकता होगी कि जो दूर दराज़ में आम आदमी रहता है, वो यात्रा सुविधा के लिए सरकार की तरफ़ देख रहा है, जिस पर हम काम कर रहे हैं. एक परसेंट भी अगर संभावना बनेगी कि वहां बसें चलनी चाहिए, तो हम इसे भविष्य में छोटे स्तर से शुरू करेंगे, लेकिन इस काम को करने के लिए हम लोग जी जान से जुटे हैं.
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