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NDTV Exclusive: पिछली सरकारों में नक्सलियों का समर्थन करने के लिए बेबस थे जनजातीय समुदाय, केंद्रीय मंत्री जुएल ओराम का दावा

केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री और ओडिशा के वरिष्ठ भाजपा नेता जुएल ओराम ने NDTV से Exclusive बातचीत की. इस दौरान बिहार में मतदाता सूची का पुनरीक्षण और ऑपरेशन सिंदूर जैसे मुद्दों पर खुलकर बातें की.

NDTV Exclusive: पिछली सरकारों में नक्सलियों का समर्थन करने के लिए बेबस थे जनजातीय समुदाय, केंद्रीय मंत्री जुएल ओराम का दावा

Jual Oram Interview: केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री और ओडिशा के वरिष्ठ भाजपा नेता जुएल ओराम ने NDTV से Exclusive बातचीत की. इस दौरान बिहार में मतदाता सूची का पुनरीक्षण और ऑपरेशन सिंदूर जैसे मुद्दों पर खुलकर बातें की. वहीं, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जनजातीय समुदाय के लिए होने कामों पर विस्तार से चर्चा की. उन्होंने बताया कि पहले के मुकाबले अब काफी बदलाव आ चुका है. आज भारत की जनजातीय मामलों वाला मंत्रालय पूरी कार्यकुशलता के साथ चल रहा है. इसके साथ ही मंत्रालय का बजट भी बढ़ा दिया गया है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के निर्देश पर बहुत सारे मंत्रालय काफी कुछ कर रहे हैं. इस वक्त धन की कोई कमी नहीं है. सभी क्षेत्रों में परिवर्तन देखा जा रहा है, चाहे वह अर्थव्यवस्था हो, या दूसरे क्षेत्र. यदि हम देखें तो परिवर्तन सभी क्षेत्रों में देखा जा रहा है, जिससे जनजातीय समुदाय का भी विकास हो रहा है.

जुएल ओराम से पूछे गए सवाल और उनके जवाब

सवाल: बिहार में मतदाता सूची का पुनरीक्षण चल रहा है, इसी तरह पूर्वोत्तर क्षेत्र में भी प्रद्योत देब बर्मा जैसे कुछ मंत्री इसकी मांग कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह आदिवासियों के लिए महत्वपूर्ण है. विशेष रूप से स्वदेशी क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए, आप इसे कैसे देखते हैं?

जवाब: मेरी जानकारी के हिसाब से मैं जिस दिन से राजनीति में आया हूं, हर चुनाव से पहले मतदाता सूची संशोधित की जाती है. प्रत्येक चुनाव से पहले मतदाता सूची में संशोधन किया जाता है. अंतर केवल इतना है कि कभी-कभी यह स्वेच्छा से होता है या कभी-कभी यह गहनता से होता है. लेकिन, संशोधन तो होता ही रहता है. मुझे नहीं लगता कि यह किसी की मांग पर हो रहा है. विशेष रूप से पिछले कुछ वर्षों में चुनाव आयोग कुछ कार्यकर्ताओं के साथ ब्लॉक स्तर पर संशोधन का काम जमीनी स्तर पर कर रहा है और इसमें राजनीतिक दलों को भी शामिल कर रहे हैं. यह कोई नई बात नहीं है.

सवाल: अगर हम जनजातियों की बात करें, तो कई जनजातियां नक्सल क्षेत्रों में रहती हैं, तो क्या हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि नक्सलियों ने उन्हें पीड़ित कार्ड के रूप में इस्तेमाल किया है?

जवाब: हां, निश्चित रूप से, एक समय था, जब जनजातियों को नक्सलियों का समर्थन करने के लिए मजबूर होना पड़ा था. लेकिन अब स्थिति बदल गई है और सरकार बहुत सख्त तरीके से इसकी निगरानी कर रही है. खासकर वह क्षेत्र अविकसित था, इसलिए पुलिस वहां तक नहीं पहुंच पाती थी. इसलिए भी नक्सलियों का प्रभाव था.

सवाल: आज संचार बढ़ा है, इसीलिए नक्सलियों का प्रभाव खत्म हो गया है?

जवाब: हां, निश्चित रूप से, आपको पता होगा की केंद्र राज्य बल के साथ समन्वय स्थापित करने का प्रयास कर रहा है. पहले क्या होता था कि एक राज्य में कुछ वारदात कर देते थे और दूसरे राज्य में चले जाते थे. फिर तीसरे राज्य में वारदात कर के और कही चले जाते थे. राज्यों के बीच भी कोई समन्वय नहीं था. अब राज्यों के बीच बेहतर समन्वय है. इसके लिए एक विशेष समूह बनाया गया है. सड़क संचार में सुधार किया गया है. कई पुल बनाए गए हैं. प्रभावित जिलों पर ध्यान देने के लिए भारत सरकार की ओर से सभी पहलुओं पर ध्यान दिया गया है, जिसके परिणामस्वरूप कई सुधार हुए हैं.

सवाल: आप ओडिशा से आते हैं, बालासोर की घटना जिसमें एक लड़की की मौत हो गई और सरकार पर सवाल उठ रहे हैं कि भाजपा कानून व्यवस्था पर सवाल उठती है, लेकिन यह तो बीजेपी शासित राज्य है फिर ऐसा क्यों हो रहा है?

जवाब: हमने बीजू जनता दल और कांग्रेस दोनों का शासन देखा है. कोई भी घटना होना ठीक नहीं है. हम भी दुखी हैं. हमारी सरकार इस मामले को पूरी संवेदनशीलता के साथ संभाल रही है. इसमें जो भी दोषी पाए जाएंगे, उन्हें दंडित किया जाएगा. पहले कोई अधिकारी, प्रोफेसर अगर शामिल होते थे, तो उन्हें निलंबित कर देना ही काफी हो जाता था. हमने तो उससे गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया है. सरकार काम कर रही है, लेकिन घटना का दुःख है. हमारी सरकार पूरी संवेदनशीलता के साथ काम कर रही है.

सवाल: कांग्रेस आप पर असंवेदनशील होने समेत कई आरोप लगाती है ?

जवाब: उनका तो काम ही है आरोप लगाना, उन्हें अपने सत्तारूढ़ राज्यों पर भी नजर रखनी चाहिए. कर्नाटक में क्या हो रहा है और सरकार कैसे चल रहा है? उसके बाद हमसे बात करें.  

सवाल: आप ओडिशा से आते हैं, आप तब भी जीतते थे, जब बीजेपी कभी ओडिशा में सरकार नहीं बना पाई, लेकिन उस समय की चुनाव में और आज के चुनाव में और आप अटल बिहारी वाजपेयी के समय भी कैबिनेट मंत्री थे , तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अटल बिहारी वाजपेयी में क्या अंतर है?

जवाब: अटल जी का समय बीजेपी के विकास का समय था. उस समय हमारी उपस्थिति अखिल भारतीय स्तर पर नहीं थी. आज हम अखिल भारतीय स्तर पर मौजूद हैं. प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूरी गति से काम चल रहा है. उस समय संसाधनों की भी कठिनाई थी. आज ऐसा नहीं है.  पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यह सब चीज़ खास कर के यात्रा, अवसंरचना, को लेकर हमारे पास धन की कोई कमी नहीं है. आज हमारे पास सभी चीज़े मौजूद हैं.

सवाल: आपकी कोई ऐसी बातचीत, जो आपको हमेशा याद रहेगी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ की?

जवाब: हां, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली बार सरकार में आए, तब मैं उनसे मुलाकात करने गया था. तब उन्होंने मुझसे पूछा था कि आप अगर जनजाति के लिए एक काम मांगेंगे, तो क्या मांगेंगे, तो मैंने बोला कि शिक्षा, तो तुरंत Eklavya Model Schools की घोषणा कर दी गई. अभी हम 740 Eklavya Model Schools चल रहा है, जो एक गेम-चेंजर बन गया है. यह एक बड़ा बदलाव साबित हुआ है. अब आदिवासी छात्र अच्छे संस्थानों में प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं. वे न केवल अच्छे अंक प्राप्त कर रहे हैं, बल्कि रैंकिंग में भी आ रहे हैं. चाहे एम्स हो, इसरो हो, हमारे छात्र वहां जाकर पढ़ाई कर सकते हैं. यह एक बड़ा परिवर्तनकारी कदम है. इसके लिए मैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहता हूं.

सवाल: कोई ऐसी योजना, जो आपको लगती है कि अगले एक वर्ष में आपके मंत्रालय की ओर से बहुत बड़ी बदलाव लाएगा, खास तोर से महिलाओं और लड़कियों के लिए?

जवाब: हमारी 3 योजनाएं अच्छी तरह चल रही हैं.

1. प्रधानमंत्री जनजातीय न्याय महाभियान (पीएम-जनमन) - 18 राज्यों और 1 केंद्र शासित प्रदेश में फैले 75 पिछड़े समुदायों को प्रत्यक्ष लाभ. लगभग 28 लाख लोग लाभान्वित होंगे.

2. धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान, जिस पर हम 79 हज़ार करोड़ रुपये खर्च करने जा रहे हैं. इसके लिए 17 मंत्रालयों का विलय किया जाएगा और 25 हस्तक्षेप किए जाएंगे. यह योजना पूरी स्थिति के लिए भी महत्वपूर्ण है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस योजना का शुभारंभ बिरसा मुंडा की जयंती पर किया गया था.

सवाल: पहले आदिवासियों को सम्मान ही नहीं था?

जवाब: दरअसल, पहले मंत्रालय ही नहीं था. आज जनजातियों से 3 कैबिनेट मंत्री हैं. शुरुआत में हमें वेटेज नहीं मिल रहा था. इसकी शुरुआत में हमें महत्व नहीं मिल रहा था. इसकी शुरुआत अटल जी की सरकार से हुई और विशेष रूप से एनडीए सरकार लगातार जनजातियों, एसटी-एससी को विकास के पथ पर आगे बढ़ा रही है और इसके लिए पर्याप्त राजनीतिक समर्थन भी दे रही है.

सवाल: विपक्ष आपको सूट-बूट वाली सरकार कहता है?

जवाब: कहने में क्या जाता है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर क्या है, उनको पता होना चाहिए. सबसे ज़्यादा आदिवासी सांसद बीजेपी के पास है. सबसे ज़्यादा आदिवासी विधायक बीजेपी के पास है. बोलने में क्या है, बोलने में तो बोल देते हैं, लेकिन हकीकत क्या है. आंकड़े क्या बता रहे हैं, उसको भी देख लिया जाए.

सवाल: विपक्ष को लगता है महंगाई बढ़ रही है. भ्रष्टाचार बढ़ रहा है. बीजेपी की सरकार काम नहीं कर रही है. इसलिए बार-बार संसद रोक देते हैं.

जवाब: कहां भ्रष्टाचार है? बिलकुल नहीं, राजनीति से प्रेरित हो कर यह लोग कह रहे हैं. ऐसा कुछ नहीं है. पहले तो हर दिन कुछ न कुछ कोयला घोटाला और न जाने क्या-क्या घोटाला सुनने में आता था, लेकिन अब आज कल इस तरह का एक भी मामला सुनने में नहीं आता है. खाली बोल देने से थोड़ी होगा, परिणाम दीजिए. विपक्ष हमारी सफलता को पचा नहीं पा रहा है. इसीलिए वे इस तरह का व्यवहार कर रहे हैं.

सवाल: वे ऑपरेशन सिंदूर पर सवाल उठा रहे हैं, वे कह रहे हैं कि मोदी सरकार ने जो आंकड़े दिखाए, वो सही नहीं है ?

जवाब: यह तो सवाल उठाते ही हैं, अब यह लोग अपनी सेना पर भी विश्वास नहीं कर के पाकिस्तान के लहजे में बात करते हैं. यह कितने दुर्भाग्य की बात है.  

सवाल:  कौन कर रहा है?

जवाब: विपक्ष, जो अपने देश की सेना पर विश्वास नहीं करते हैं, उनसे खतरनाक चीज़ क्या हो सकती है?

सवाल: जिस तरह से काम हो रहा है. पढाई-लिखाई और भाषाओं पर विवाद हो रहा है, ऐसे में आदिवासियों की अलग-अलग भाषाएं हैं. कई जगह लिपि है क्या? आपको लगता है इस तरह के मुद्दों से ज़मीनी स्तर पर असर पड़ता है?

जवाब: यह कुछ भी नहीं है, वास्तव में ऐसा कुछ नहीं है. दरअसल, कुछ लोग जानबूझकर इसे राजनीतिक मुद्दा बना रहे हैं. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है. सभी जनजातियों की अपनी बोली होती है. यह ठीक है कि कुछ के पास लिपि है, कुछ के पास अभी नहीं है. जिन जनजातियों का शिक्षा अनुपात दूसरों से ज़्यादा है, उनके लिए लिपि तैयार है. राष्ट्रीय जनजाति अनुसंधान संस्थान इसी पर काम कर रहा है और सांस्कृतिक संरक्षण, भाषा आदि पर किताबें प्रकाशित कर रहा है. सरकार ने आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों पर काफ़ी अभियान चलाए हैं.

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