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MP News : 25 साल में 23 बार फेल, अब 55 के पड़ाव पर की एमएससी, इस गार्ड ने पूरी कमाई पढ़ाई में लगाई

राजकरण बरुआ को यह नहीं मालूम था कि उन्होंने जो सपना देख लिया है वह इतना कठिन होगा. वे 1997 में पहली बार गणित विषय के साथ एमएससी की परीक्षा में बैठे और फेल हो गए लेकिन मन में तो एमएससी गणित से करने का संकल्प ले लिया था, इसलिए एक बार फिर परीक्षा दी फिर फेल हो गए, लगातार फेल होते रहे लेकिन धैर्य और साहस नहीं खोया आखिरकार 2020 में कोविड (Covid 19) के दौर में प्रवेश परीक्षा पास की और 2021 में फाइनल कर लिया.

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MP News : 25 साल में 23 बार फेल, अब 55 के पड़ाव पर की एमएससी, इस गार्ड ने पूरी कमाई पढ़ाई में लगाई
जबलपुर:

Madhya Pradesh News : मेहनत करने वालों की हार नहीं होती, धैर्य से की गई मेहनत से सफलता मिलती है ,यह साबित कर दिखाया है जबलपुर (Jabalpur) के राजकरण बरुआ ने. 55 वर्षीय राजकरण बरुआ पेशे से गार्ड (Security guard) की नौकरी करते हैं और एक झोपड़ी में रहते हैं, लेकिन इन्होंने 25 साल के दौरान लगातार फेल होते-होते हुए भी एमएससी मैथ्स (MSc Mathematics) की डिग्री प्राप्त कर ली है. इस सफलता के लिए राजकरण में जीवन में जो कुछ कमाया वह सब कुछ पढ़ाई में ही लगा दिया और पढ़ाई के लिए अपनी कमाई से वे हर महीने 5000-7000 रुपये की फीस भरते रहे और किताबें खरीदते रहे. आइए उनकी सफलता की कहानी पर नजर दौड़ाते हैं.

घर का दृश्य

55 वर्षीय राजकरण बरुआ के घर का दृश्य

23 बार फेल हुए 

एमएससी प्रीलीम्स में राजकारण 23 बार असफल हुए. 2021 में आखिरकार उन्होंने एमएससी प्रीलिम्स की परीक्षा पास कर ली, उसके बाद  एक ही बार में एमएससी फाइनल के एग्जाम को भी क्लियर कर लिया.

राजकरण ने एनडीटीवी को बताया कि प्रलिम्स में कई विदेशी किताबों को भी पढ़ना होता है जो अंग्रेजी में होती हैं, इसलिए उन्हें सफलता नहीं मिल रही थी. धीरे-धीरे डिक्शनरी से समझ कर उन्हें पढ़ता रहा, मैं लगातार वह एक विषय छोड़कर सभी में फेल हो रहा था, लेकिन 2021 में आखिर पास हो गया और फाइनल में भारतीय लेखक की किताब पढ़कर एक बार में ही फ़ाइनल पास कर लिया. 
गार्ड

राजकरण बरुआ

राजकरण के पास हैं कई सारी डिग्री

राजकरण ने सबसे पहले आर्कियोलॉजी (MA in Archeology) में एमए पास किया और संगीत की शिक्षा और डिग्री ली. उसके बाद एक स्कूल में पढाने के लिए जाने लगे तो इनके मैथ्स पढ़ाने के तरीके से प्रभावित होकर शिक्षकों ने सराहना की. तब उनके मन में गणित में एमएससी करने का विचार आ गया और यहां से इसी विचार को लेकर उन्होंने रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय (Rani Durgavati Vishwavidyalaya Jabalpur) में गणित विषय के साथ एमएससी करने के लिए 1996 में दाखिला ले लिया.

आर्कियोलॉजी की डिग्री

आर्कियोलॉजी की डिग्री

धैर्य से गुजारे 25 वर्ष

राजकरण बरुआ को यह नहीं मालूम था कि उन्होंने जो सपना देख लिया है वह इतना कठिन होगा. वे 1997 में पहली बार गणित विषय के साथ एमएससी की परीक्षा में बैठे और फेल हो गए लेकिन मन में तो एमएससी गणित से करने का संकल्प ले लिया था, इसलिए एक बार फिर परीक्षा दी फिर फेल हो गए, लगातार फेल होते रहे लेकिन धैर्य और साहस नहीं खोया आखिरकार 2020 में कोविड (Covid 19) के दौर में प्रवेश परीक्षा पास की और 2021 में फाइनल कर लिया.

राजकरण ने NDTV को बताया कि परीक्षा पास हो जाने के बाद भी इस बारे में उन्होंने किसी को नहीं बताया. क्योंकि वह बंगलों में गार्ड और साफ सफाई का काम करते हैं. कई बार मलिक अपने बच्चों को ताना देते हैं कि राजकरण पढ़-लिख लिया बिना किसी सुविधाओं के और तुम सभी सुविधाओं के साथ भी नहीं पढ़ पा रहे हो. यह सुनकर राजकरण को अच्छा नहीं लगता था.

बेज्जती सह कर पढ़ाई की 

राजकरण बताते हैं कि बंगलों में काम करते हुए और झोपड़ी में रहते हुए उन्हें कई बार बेज्जती का सामना करना पड़ा. मालिक लोग तू-तड़ाक से बात किया करते थे. कुत्ते और बच्चों की पॉटी फेंकने, उल्टी साफ करने और गंदगी की सफाई जैसे काम उनसे कराए जाते थे. कई बार वह बेज्जती भी करते थे. लेकिन राजकरण अपना काम सबकुछ सह कर करते रहे, क्योंकि उन्हें पढ़ाई करनी थी.

राजकरण ने अपनी पढ़ाई के जुनून के बारे में कभी मलिक को नहीं बताया. जब भी खाली समय मिला सीढ़ियों पर रात को पढ़ने बैठ गए और जब मलिक ने बुलाया सेवा में हाजिर हो गए.

लेखक और गायक भी हैं राजकरण

राजकरण ने आकाशवाणी में कई प्रस्तुतियां दी हैं. उनके खुद के लिखे और गाए गानों की एक कैसेट भी आजादी की स्वर्ण जयंती पर तत्कालीन मंत्री चंद्रकांत और तत्कालीन महापौर कल्याणी पांडे द्वारा लोकार्पित की गई थी, लेकिन पैसों के अभाव में संगीत का शौक संगीत की शिक्षा और डिग्री लेने के बाद आगे नहीं बढ़ सका.


गरीब बच्चों के लिए स्कूल बनाना चाहते हैं राजकरण

राजकरण अपना घर तो बना नहीं पा रहे हैं, मां भाई के साथ रहती है और राजकरण अविवाहित एक झोपड़ी में रहते हैं. लेकिन उनकी इच्छा है कि यदि सरकारी सहायता मिल जाए या कोई दानदाता सामने आ जाए तो वह एक स्कूल खोलना चाहते हैं. वे उन गरीब बच्चों के लिए जो असफलता के कारण आगे नहीं बढ़ते उनको अपना उदाहरण देकर मोटिवेट करना चाहते हैं. वे ये संदेश देना चाहते हैं कि अभाव और असफलता से घबराना नहीं चाहिए. बल्कि उसका मुकाबला करना चाहिए.

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