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बसों के अस्थायी परमिट पर MP हाईकोर्ट का रवैया सख्त ! STA पर उठाए बड़े सवाल

Gwalior News Madhya Pradesh : बस ऑपरेटरों को अस्थायी परमिट देने के मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने स्टेट ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी (State Transport Authority) की कार्यशैली पर कड़ी टिप्पणी की है.

बसों के अस्थायी परमिट पर MP हाईकोर्ट का रवैया सख्त ! STA पर उठाए बड़े सवाल
बसों के अस्थायी परमिट पर MP हाईकोर्ट का रवैया सख्त ! STA पर उठाए बड़े सवाल

MP High Court on Temporary Bus Permit : बस ऑपरेटरों को अस्थायी परमिट देने के मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने स्टेट ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी (State Transport Authority) की कार्यशैली पर कड़ी टिप्पणी की है. हाईकोर्ट ने कहा कि अस्थायी परमिट देना अब मानो नियम बन गया है, जिसमें पूरे सिस्टम में भ्रष्टाचार की बू आ रही है. दरअसल, चंद्रदीप मौर्य ने STA के 17 जुलाई 2024 के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें बताया गया कि छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर से बैढन, मप्र तक बस चलाने के लिए अस्थायी परमिट के लिए आवेदन दिया था. उस समय मृगेंद्र मिश्रा ने परिवहन विभाग की बकाया राशि जमा नहीं की थी, उसके बावजूद उसे 175 किमी लंबे रूट पर परमिट दिया गया. कोर्ट ने STA की तरफ से जारी परमिट रद्द कर दिया.

जानिए हाईकोर्ट ने क्या कहा ?

इस मामले में सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों के तर्क सुनने के बाद जस्टिस पाठक ने काफी तल्ख टिप्पणियां कीं. उन्होंने कहा कि कोर्ट कुछ वर्षों से यह देख रही है कि प्रमुख सचिव परिवहन और STA ने आपस में मिलकर एक ऐसा मैकेनिज्म तैयार कर लिया है, जिसमें स्थायी की जगह अस्थायी परमिट दिए जा रहे हैं. कभी उनके लिए त्योहार महत्वपूर्ण हो जाते हैं और वे अस्थायी परमिट जारी कर देते हैं, कभी त्योहार महत्वपूर्ण नहीं होते और आवेदन निरस्त कर देते हैं.

".... सिस्टम में भाई-भतीजावाद"

जस्टिस पाठक ने कहा कि मोटरयान अधिनियम के सेक्शन 87 में स्पष्ट लिखा है कि आरटीओ और STA अधिकतम 4 माह के लिए अस्थायी परमिट जारी कर सकते हैं. यह मैकेनिज्म इसलिए बनाया गया ताकि त्योहार, मेले आदि में उन रूटों पर भीड़ को देखते हुए अतिरिक्त बसों से परिवहन किया जा सके. लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि अस्थायी परमिट मानो नियम ही बन गया है. पूरे सिस्टम में भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार की बू आ रही है. राज्य सरकार को तत्काल इसे देखना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि यह जिम्मेदारी प्रमुख सचिव और मुख्य सचिव की है कि वे इसे देखें और सिस्टम में व्याप्त हो चुकी विसंगतियों को दूर करें जो भ्रष्टाचार को पोषित कर रही हैं.

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यात्रियों की पीड़ा पर जताई चिंता

कोर्ट ने यात्रियों की पीड़ा पर भी चिंता जाहिर की. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि मध्यप्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम भंग हो चुका है. इसके बाद से यात्री या तो अनुबंधित या निजी ट्रांसपोर्ट की दया पर निर्भर हैं. मध्य प्रदेश बड़ा भू-भाग वाला राज्य है, जहां अनेक दुर्गम इलाके भी हैं, जहां जाने के लिए नियमित परिवहन सेवा के अभाव में महिलाएं, बुजुर्ग और अन्य असाध्य लोग रोज़ परेशानी झेलते हैं. ऐसे रूटों पर नियमित - अनियमित परमिट दिए जाएं ताकि आमजन आसानी से आवागमन कर सकें.

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