
Caste Based Census: देश में जाति जनगणना पर जारी राजनीतिक के बीच केंद्र सरकार ने बुधवार को बड़ी घोषणा की. दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीपीए) की उच्च स्तरीय बैठक में जाति जनगणना अगली जनसंख्या जनगणना के साथ ही कराने का फैसला लिया गया. केंद्र सरकार ने बुधवार को घोषणा की कि जाति जनगणना अगली जनसंख्या जनगणना के साथ ही की जाएगी.
केंद्र सरकार के फैसले की जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति ने बुधवार को फैसला किया है कि आगामी जनगणना में जाति गणना को भी शामिल किया जाएगा.
#WATCH | Delhi | "Cabinet Committee on Political Affairs has decided today that Caste enumeration should be included in the forthcoming census," says Union Minister Ashiwini Vaishnaw on Union Cabinet decisions. pic.twitter.com/0FtK0lg9q7
— ANI (@ANI) April 30, 2025
इंडिया ब्लॉक का था मुख्य चुनावी मुद्दा
यह कदम इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि जाति जनगणना कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया ब्लॉक के मुख्य चुनावी मुद्दों में से एक रही है. इसके जरिए विपक्षी पार्टियों ने जनता के बीच अपनी गहरी पैठ बनाई थी. ऐसे में राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि केंद्र का यह 'अप्रत्याशित' कदम सामाजिक समीकरणों को फिर से संतुलित करने और जनता की भावनाओं को भी काफी हद तक प्रभावित करने वाला है.
सरकार ने विपक्ष से छीन लिया बड़ा मुद्दा
गौरतलब है कि अब सत्ता पक्ष की ओर से जाति जनगणना करने की कवायद से परहेज किया जा रहा था. दरअसल, ऐसी आशंका है कि इससे समाज में विभाजन और मतभेद बढ़ने की आशंका है. हालांकि, कांग्रेस और उसके सहयोगी दल, जिनमें राजद, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, नेशनल कॉन्फ्रेंस भी शामिल है. उसने इसकी जोरदार वकालत की थी. उनका तर्क है कि समाज के सभी वर्गों को उनकी आबादी के हिसाब से सरकार और सरकारी तंत्र में हिस्सा मिलना चाहिए. इन दलों की ओर से बाकायदा ये नारा भी दिया था, 'जिनकी जितनी भागीदारी, उनकी उतनी हिस्सेदारी'. ऐसे में अब जाति जनगणना का घोषणा करके भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने कांग्रेस पर पलटवार किया है. यानी सरकार ने अपनी इस चाल से विपक्ष की चुनौती को कुंद कर दिया है.
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बिहार विधानसभा चुनाव के नजरिए से बहुत महत्वपूर्ण है यह फैसला
यह कदम इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह फैसला इस साल के अंत में बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों से ठीक पहले आया है, जहां जातिगत समीकरण हर चीज पर हावी है. कांग्रेस से लेकर राजद जैसे क्षेत्रीय क्षत्रपों और यहां तक कि सत्तारूढ़ जेडीयू तक, सभी दल राज्य में सत्ता पाने के लिए जातिगत मैट्रिक्स पर भरोसा करती हैं.
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