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MP News: बुंदेलखंड में आज भी दीपावली के दूसरे दिन मौनिया और दिवारी नृत्य की परंपरा है कायम

ऐसा कहा जाता है कि जब तक 12 गांव की परिक्रमा पूरी नहीं हो जाती. तब तक यह कहीं रास्ते में रुकते भी नहीं है. ऐसा कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने द्वापर युग में ग्वाल बनकर गाय चराई थी तो वैसे ही मौनिया भगवान कृष्ण का रूप धारण करते हैं. मौनिया बनने में पहले देवस्थान पर पूजन होता हैं. 12 गांव की परिक्रमा शुरू करने से पहले यह बछड़े के नीचे से निकलते हैं.

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MP News: बुंदेलखंड में आज भी दीपावली के दूसरे दिन मौनिया और दिवारी नृत्य की परंपरा है कायम
बुंदेलखंड में आज भी दीपावली के दूसरे दिन मौनिया और दिवारी नृत्य की परंपरा है कायम

MP News in Hindi: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के बुंदेलखंड (Bundelkhand) में मौनिया और दिवारी नृत्य की परंपरा कई पीढ़ियों से चली आ रही है. कई ग्रामीण सागर (Sagar) जिले में भगवान कृष्ण का रूप धारण कर मौनिया बनते हैं. मुंह से ना बोलने के कारण इन्हें मौनिया कहा जाता है. यह सुबह से पूजा पाठ के बाद 12 गांव की परिक्रमा पर निकल जाते हैं और जमकर नृत्य भी करते हैं. वहीं, यादव समाज के लोग सज-धजकर दिवारी नृत्य करते है. सबसे पहले गांव के लोग देव स्थान पर पहुंचकर पूजन करते है फिर दिवारी नृत्य की शुरुआत करते हैं. दिवारी नृत्य में हाथ मे लाठी पैर में घुंघरू बांधा जाता है. प्रदेश में बरसों पुरानी परंपरा आज भी चली आ रही है.

भगवान कृष्ण ने द्वापर युग मे ग्वाल बनाकर चराई थी गाय

बुंदेलखंड में दीपावली पर्व पर मौनिया बनने की परंपरा आज भी चली आ रही है. ग्रामीण भगवान श्री कृष्ण का रूप धारण कर मौनिया बनते हैं. ऐसी ही परंपरा सागर जिले के कई गांवो में आज भी परंपरागत तरीके से चली आ रही है. यहां पर गांव के लोग मौनिया का रूप धारण करते हैं. मौनिया गांव के देवस्थान पर पूजन करने के बाद 12 गांव की परिक्रमा के लिए निकल जाते हैं और शाम को 5 बजे तक उसी देवस्थान पर वापस आकर परिक्रमा समाप्त करते हैं. मौनिया बनने के बाद यह लोग मौन धारण कर लेते है. ना ही रास्ते में कहीं बैठते हैं और ना ही कुछ खाते हैं.

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परिक्रमा शुरू करने से पहले पूरा करते हैं ये रिवाज

ऐसा कहा जाता है कि जब तक 12 गांव की परिक्रमा पूरी नहीं हो जाती. तब तक यह कहीं रास्ते में रुकते भी नहीं है. ऐसा कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने द्वापर युग में ग्वाल बनकर गाय चराई थी तो वैसे ही मौनिया भगवान कृष्ण का रूप धारण करते हैं. मौनिया बनने में पहले देवस्थान पर पूजन होता हैं. 12 गांव की परिक्रमा शुरू करने से पहले यह बछड़े के नीचे से निकलते हैं और मौन धारण कर अपनी 12 गांव की परिक्रमा शुरू करते हैं. शाम को वापस आने पर देव स्थान पर मेले का आयोजन होता है और ग्रामीण लोगों में भी मौनिया को लेकर काफी हर्षोल्लास का माहौल देखने को मिलता है.

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