Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) में देश के अलग-अलग स्थानों पर रहने वाले एनआरआई (NRI) छात्रों ने एक याचिका दायर की है. याचिका दायर करने वालों ने बताया है कि उनसे 200 रुपए की जगह 4 लाख का शुल्क मांगा जा रहा था. एक तरह से इस याचिका में प्रोविजनल डिग्री के लिए लाखों रुपए की वसूली को चुनौती दी गई है. इस मामले में सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस रवि मलिमठ और जस्टिस विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने राज्य शासन और मेडिकल साइंस विश्वविद्यालय जबलपुर (Jabalpur) को नोटिस जारी कर जवाब भी मांगा है.
200 की जगह 4 लाख की मांग की गई
राजकोट (Rajkot) के रहने वाले डॉ विरल मांडलिक और इंदौर (Indore) के निवासी डॉ नियोगिता पाठक के साथ 15 अन्य लोगों ने याचिका दायर कर बताया कि प्रोविजनल डिग्री जारी करने की फीस प्रति छात्र 200 रुपए है, लेकिन उन्हें 4800 अमेरिकी डॉलर यानी 4 लाख रुपए का भुगतान करने को कहा गया है. डॉ विरल ने 2018 में आरडीजी मेडिकल कॉलेज, उज्जैन में एनआरआई कोटा के तहत एमबीबीएस कोर्स में प्रवेश लिया था. उन्होंने अपनी इंटर्नशिप पूरी की और मध्य प्रदेश मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी, मेडिकल कॉलेज कैंपस से एमबीबीएस की स्थायी डिग्री के पात्र बन गए.
विभिन्न मदों के लिए मांगे जा रहे हैं रुपए
अधिवक्ता शुभम भारद्वाज ने बताया कि पाठ्यक्रम के अंत में शुल्क की इतनी बड़ी राशि निर्धारित करना पूरी तरह गलत है. उन्होंने कहा कि प्रोविजनल डिग्री जारी करने का वास्तविक शुल्क प्रति छात्र मात्र 200 रुपए है. मेडिकल विवि में अभ्यावेदन देने के बावजूद जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तो हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई. याचिकाकर्ताओं से विभिन्न मदों में शुल्क मांगा गया है जिसमें ई-कंसोर्टियम के एक हजार, पुस्तकालय शुल्क के एक हजार, खेलकूद-सांस्कृतिक शुल्क के एक हजार, कल्याण निधि के 800, विश्वविद्यालय विकास के एक हजार और प्रोविजनल डिग्री शुल्क 200 रुपए शामिल हैं.
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कॉलेजों ने विश्वविद्यालयों पर फोड़ा ठीकरा
एनआरआई छात्रों ने लगातार मेडिकल विश्वविद्यालय प्रशासन और अपने मेडिकल कॉलेज से संपर्क किया. सभी ने इस फीस को माफ करने के लिए आवेदन दिए. इन छात्रों ने जबलपुर स्थित मेडिकल विश्वविद्यालय के कुलपति से भी मुलाकात कर इस फीस को गैरवाजिब बताते हुए खत्म करने की मांग की. छात्रों का आरोप है कि जब उन्होंने एडमिशन लिया था तब इस तरह की फीस का कोई उल्लेख नहीं किया गया था. जिन कॉलेजों में वह पढ़ रहे हैं उन कॉलेज प्रबंधन का कहना है कि यह फीस विश्वविद्यालय के द्वारा ली जा रही है जिसे कम करना उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं है.
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