Madhya Pradesh Naxal Free: 11 दिसंबर 2025 को मध्य प्रदेश के नक्सलमुक्त होने पर हर किसी के मन में सवाल उठ रहे होंगे कि एमपी में कहां से और कैसे नक्सलवाद की शुरुआत हुई. नक्सलवाद के खिलाफ पहली एफआईआर कहां दर्ज हुई? उसके बाद लड़ाई कितने वर्षों तक चली? मध्य प्रदेश के कितने जवानों ने शहादत दी और कितने निर्दोष लोगों का खून बहा?
एमपी में दीपक और रोहित अंतिम सक्रिय नक्सली
दरअसल, भारत में नक्सलवाद के जड़ से खात्मे की डेडलाइन 31 मार्च 2025 है, जबकि मध्य प्रदेश ने नक्सल मुक्त होने का लक्ष्य 26 जनवरी 2026 तय किया था. निर्धारित समय से पहले ही 11 दिसंबर 2025 को एमएमसी जोन के अंतिम सक्रिय नक्सली दीपक उर्फ सुधाकर और रोहित उर्फ मंगलू ने बालाघाट में सरेंडर कर दिया. 56 वर्षीय दीपक बालाघाट के पालाघोंदी और 36 वर्षीय रोहित बीजापुर (छत्तीसगढ़) के फतेनार का रहने वाला है. इनके सरेंडर के बाद सीएम डॉ. मोहन यादव ने एमपी के नक्सल मुक्त होने की घोषणा की.
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साल 1990: एमपी में बालाघाट से शुरू हुआ था नक्सलवाद
भारत में नक्सलवाद से सबसे अधिक छत्तीसगढ़ प्रभावित है. छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में 35 साल पहले, 1990 में लाल आतंक की शुरुआत हुई. बालाघाट जिले के सीतापाला थाना में नक्सलियों के खिलाफ पहली एफआईआर दर्ज हुई थी. उस वक्त नक्सलियों ने एक बस में आग लगा दी थी, जिसमें 15 लोग घायल हुए थे. इसके बाद नक्सलवाद बालाघाट से मंडला और डिंडोरी तक फैल गया. मंडला और डिंडोरी में नक्सली बहुत पहले ही सिमट गए थे, जबकि बालाघाट के कान्हा बफर जोन में सक्रियता बनी रही.
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साल 1991: पहले बड़े हमले में 15 पुलिसकर्मी शहीद
पहली एफआईआर के एक साल बाद ही 1991 में सीतापाला थाना क्षेत्र में नक्सलियों ने पहली बड़ी वारदात की. नक्सलियों ने पुलिस बस पर हमला किया, जिसमें 15 पुलिसकर्मी शहीद हुए और 15 घायल हुए.
साल 1998: दो पुलिसकर्मियों की हत्या
1991 की घटना के बाद भी नक्सली हमले कम नहीं हुए. 1998 में सीतापाला थाना क्षेत्र में एनकाउंटर के दौरान नक्सलियों ने दो जवानों की हत्या कर दी. इससे पहले तीन-स्टेप वाले ब्लास्ट में एक जवान की मौत हुई थी.
साल 2006: नक्सलियों ने किया बड़ा IED धमाका
2006 में नक्सलियों ने 50–60 किलो विस्फोटक से बड़ा IED ब्लास्ट किया, जिसमें एक ट्रक चालक और क्लीनर मारे गए. 2010 से 2013 के बीच टिमटिओला, तिकला और मंडला–बालाघाट के जंगलों में नक्सलियों ने चार पुलिसकर्मियों की हत्या की.
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इन्होंने तोड़ी नक्सलियों की कमर
बालाघाट मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़–महाराष्ट्र की सीमाओं पर स्थित है. नक्सल ऑपरेशनों के लिए एमपी पुलिस ने डीआरजी और हॉक फोर्स का गठन किया. हॉक फोर्स का मुख्यालय भोपाल से बालाघाट के कनकी में शिफ्ट किया गया. हॉक फोर्स को नक्सलाइट ऑपरेशन रिस्क अलाउंस दिया गया. नक्सलियों की कमर तोड़ने में डीआरजी, हॉक फोर्स, सीआरपीएफ और कोबरा फोर्स ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
35 साल में एमपी पुलिस के 38 जवान शहीद
बीते 35 वर्षों में नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में एमपी पुलिस के 38 जवान शहीद हुए. 11 दिसंबर 2025 को मध्य प्रदेश को नक्सल मुक्त घोषित करते समय सीएम मोहन यादव ने इन सभी 38 शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी. इसके अलावा 57 आम नागरिक भी लाल आतंक का शिकार बने.
ये जवान हुए शहीद
- मोहनलाल जखमोला
- प्रेमसिंह रावत
- तारकेश्वर पांडे
- अमलानंद कोटनाला
- जगपाल सिंह
- मोतीलाल नरवारिया
- रामचरण
- रविंद्रनाथ द्विवेदी
- श्रीकृष्ण
- बंजारीलाल मार्को
- करणसिंह
- वंश बहादुर प्रसाद
- जागेश्वर प्रसाद पांडे
- कन्हैयालाल
- गंगाप्रसाद मिश्रा
- देवेंद्र कुमार
- बैजनाथ सिंह परिहार
- रमेश कुमार पांडे
- राजेंद्र प्रसाद दुबे
- लल्लूलाल कौल
- शिवकुमार परते
- बिहारीलाल श्रीवास
- हनुमंत सिंह
- फूलसिंह कुमरे
- अर्जुन सिंह
- कृष्णा बाबू
- मुन्नालाल बिसेन
- रूपनारायण बंसल
- दंगलसिंह ठाकुर
- जगदीश दवडे
- जीतसिंह टेकम
- छन्नूलाल बिसेन
- सेदनलाल पटेल
- ऋक्षित शुक्ला
- कोमलप्रसाद चौधरी
- राजेंद्र प्रसाद उपाध्याय
- हरिचंद्र रहांगडाले
- आशीष शर्मा
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