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Rumali Roti : हर किसी को रहती है यहां इस मशहूर रोटी की चाव, महाराष्ट्र, गुजरात समेत अरब देशों तक जाते हैं कारीगर

How to make Rumali Roti : अजब एमपी में गजब की कहानियां है. पर्यटन, संस्कृति, लोक परंपराओं के लिए एमपी जितना खास है, तो अपने जायके के लिए भी एमपी किसी राज्य से कम नहीं है. आज इसी क्रम जानेंगे बुरहानपुर की मशहूर रुमाली रोटी का इतिहास, क्यों यहां आने वाले पर्यटकों के लिए ये रोटियां पहली पसंद होती है. 

Rumali Roti : हर किसी को रहती है यहां इस मशहूर रोटी की चाव, महाराष्ट्र, गुजरात समेत अरब देशों तक जाते हैं कारीगर
Rumali Roti : हर किसी को रहती है यहां इस मशहूर रोटी की चाव, महाराष्ट्र, गुजरात समेत अरब देशों तक जाते हैं कारिगर

Importance of Rumali Roti : मध्य प्रदेश के बुरहानपुर की बड़ी रुमाली रोटी (मांडा रोटी)  (Rumali Roti of Burhanpur)  की, तो बात ही अलग है. अब ये रोटियां बुरहानपुर की एक अलग पहचान गई हैं. तभी तो, यहां आने वाले पर्यटक रुमाली रोटी को बढ़े चाव से खाते हैं. क्योंकि देसी अंदाज में बनने वाली ये रोटियां बहुत ही जायकेदार होती हैं. कई बार तो बुरहानपुर में आने वाले देशी-विदेशी पर्यटक इस मांडा रोटी को देखकर इसके कायल हो जाते हैं, और इस रोटी को खाए बिना नहीं रह पाते. खैर ये अपना एमपी है, इसकी कहानी गजब है... जैसे रुमाली रोटी की है.

रुमाली रोटी का इतिहास

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बुरहानपुर का इतिहास जितना पुराना है, उतना ही पुराना यहां बनने वाली रोटी के आकार से भी बड़ी मांडा रोटी का इतिहास है.  मुगल काल से शुरू हुई, इस मांडा रोटी के शहर में 60 से अधिक परिवार हैं, जिनके लगभग 500 सदस्य मांडा रोटी से ही अपना जीवन यापन करते हैं. इतिहास के जानकार मोहम्मद नौशाद के अनुसार, इस रोटी बनाने की कला अफगानिस्तान से आई है.  1601 में मुगल शासन आया, तब मुगल शासकों ने बुरहानपुर को फौजी छावनी बनाई. मुगल शासन के भारत वर्ष में सैनिक बुरहानपुर फौजी छावनी  में आया करते थे, ऐसे में कम समय में अधिक मात्रा में भोजन तैयार करने का संकट खड़ा  हो गया.

इस बीच स्थानीय कारीगरों ने मुगल शासकों को कम समय में अधिक मात्रा में भोजन तैयार करने के लिए स्थानीय बावरियों ने बड़े आकार की रोटी, यानी मांडा रोटी  बनाने का सुझाव दिया, जिसे स्वीकार किया गया. युद्धस्तर पर मांडा रोटी तैयार करने का फरमान जारी हुआ.

500 ग्राम आटे में तैयार होती है एक रोटी

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मोहम्मद नौशाद  के अनुसार, मुगल शासन काल में एक मांडे रोटी ढाई बाय के आकार में करीब 500 ग्राम गेहूं के आटे में तैयार की जाती थी, वर्तमान में मांडा रोटी का आकार घटने के बाद यह मांडा रोटी पूरे देश में सबसे बडे आकार की और सबसे सस्ती रोटी  है. मांडा रोटी अन्य रोटियों की तुलना में काफी स्वादिष्ट और किफायती है. खास बात यह है कि बुरहानपुर के हर वर्ग के लोग इस मांडा रोटी का बडे चाव से अपने भोजन में सेवन करते  है मोहम्मद नौशाद का दावा है. सबसे बड़े आकार की रोटी मांडा रोटी,  एक किलो गेहूं के आटे में 4 पीस बनकर तैयार होती है.

वहीं, मप्र, महाराष्ट्र, गुजरात प्रदेशों में जाते हैं. बुरहानपुर के अलावा कहीं भी मांडा बनाने वाले कारीगर नहीं हैं. यहां तक महाराष्ट्र मप्र व गुजरात के कई शहरों में मांडा रोटी बनाने का कारोबार करने के लिए बुरहानपुर के कारीगर स्थाई रूप से इन शहरों में  शिफ्ट हो गए है.

अरब देशों तक है रुमाली रोटी बनाने वाले कारीगरों की डिमांड

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बुरहानपुर के पुराने बस स्टैंड के सामने मांडा रोटी बनाने वालों की दुकान है, और यह लोग कई पीढ़ियों से इस काम को करते चले आ रहे हैं. इस काम में काफी मेहनत होने के चलते मांडा बनाने वाले कारीगरों की नई पीढ़ियों ने इस पेशे से तौबा कर रहे हैं, जबकि मांडा तैयार करने वाले कारीगरों से आटे को मिक्स करने के लिए मिक्सर जैसे संसाधन आ चुके हैं, मांडा बनाने वाले कारीगरों के अनुसार, उनके ही कारीगर मांडा रोटी बनाने अरब देशों, श्रीलंका, नेपाल  आदि देशों में मांडा रोटी बनाने के लिए जाते हैं.

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