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MP News: महज 30 रुपए की वजह से 12 साल से अटकी हुई थी कोर्ट में सुनवाई, फीस जमा करने के लिए दिया 15 दिन का समय

Jabalpur News: उज्जैन निवासी कलाबाई ने 14 साल पहले, 2010 में, रेल दुर्घटना में हुए नुकसान के लिए रेलवे दावा अधिकरण में क्षतिपूर्ति की याचिका दायर की थी. जब उनकी याचिका खारिज हो गई, तो उन्होंने हाई कोर्ट में अपील की.

MP News: महज 30 रुपए की वजह से 12 साल से अटकी हुई थी कोर्ट में सुनवाई, फीस जमा करने के लिए दिया 15 दिन का समय
Jabalpur News: कोर्ट ने दिया 15 दिन का समय

Madhya Pradesh News: महज 30 रुपए की फीस न देने की वजह से 12 साल से कोर्ट में अटका हुआ था मामला. इस मामले को संज्ञान में लेते हुए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने आदेश दिया है कि अगर वृद्धा कलाबाई 15 दिनों के भीतर 30 रुपए की कोर्ट फीस जमा कर देती हैं, तो उनकी अपील को फिर से सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा. कोर्ट ने ये माना है कि महिला 30 रुपए देने में सक्षम हैं. यह मामला रेल दुर्घटना से संबंधित क्षतिपूर्ति का है. जिसे रेलवे दावा अधिकरण में चुनौती दी गई थी. वहां से राहत न मिलने पर कलाबाई ने हाई कोर्ट में अपील दायर की थी.

हाईकोर्ट ने माना महिला 30 रुपए देने में है सक्षम

हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति विवेक जैन की एकलपीठ ने 30 रुपए की मामूली कोर्ट फीस जमा न करने के कारण पिछले 12 साल से लंबित वृद्धा की अपील को 15 दिनों के भीतर निरस्त करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि कोई प्रमाण नहीं मिला कि कलाबाई 30 रुपए की फीस जमा करने में असमर्थ थी. कोर्ट ने निर्देश दिया कि यदि 15 दिनों के भीतर फीस जमा की जाती है, तो मामला पुनः सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया जाएगा, अन्यथा अपील निरस्त मानी जाएगी।

जानिए क्या है पूरा मामला

उज्जैन निवासी कलाबाई ने 14 साल पहले, 2010 में, रेल दुर्घटना में हुए नुकसान के लिए रेलवे दावा अधिकरण में क्षतिपूर्ति की याचिका दायर की थी. जब उनकी याचिका खारिज हो गई, तो उन्होंने हाई कोर्ट में अपील की. उस समय के न्यायमूर्ति आलोक आराधे की एकलपीठ ने अपील को सुनवाई के योग्य मानते हुए रेलवे दावा अधिकरण से रिकॉर्ड तलब किए थे. लेकिन तब से अब तक यह मामला केवल 30 रुपये की कोर्ट फीस जमा न होने की वजह से अटका हुआ है.

जानिए क्या है रेल दावा अधिकरण 

यह भारत में रेलवे से संबंधित विवादों और दावों के निपटारे के लिए स्थापित एक न्यायिक संस्था है. इसका गठन 1989 में रेलवे से जुड़े मामलों को तेजी से सुलझाने के उद्देश्य से किया गया था. यह अधिकरण यात्रियों, मालवाहक और अन्य व्यक्तियों द्वारा रेलवे के खिलाफ क्षतिपूर्ति, दुर्घटना, माल या सामान के नुकसान या देरी से संबंधित दावों को सुनता और निपटाता है. अधिकरण के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है.

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