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घोड़ों की नहीं MP के इस जिले में होती है बैलगाड़ियों की रेस, बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं लोग

आज के इस आधुनिक ज़माने में जहां ऑनलाईन गैम और मनोरंजन के हाईटेक साधन मौजूद है... तो वहीं, देश के कुछ जगहों पर आज भी खेल के परंपरागत तरीकों को तवज्जों दी जाती है. मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले से भी ऐसी ही खबर सामने आई है. जहां बैलगाड़ी रेस प्रतिस्पर्धा ने बुजुर्ग से लेकर जवान सभी का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर लिया.

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घोड़ों की नहीं MP के इस जिले में होती है बैलगाड़ियों की रेस, बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं लोग
घोड़ों की नहीं MP के इस जिले में होती है बैलगाड़ियों की रेस, बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं लोग

आज के इस आधुनिक ज़माने में जहां ऑनलाईन गैम और मनोरंजन के हाईटेक साधन मौजूद है... तो वहीं, देश के कुछ जगहों पर आज भी खेल के परंपरागत तरीकों को तवज्जों दी जाती है. मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले से भी ऐसी ही खबर सामने आई है. जहां बैलगाड़ी रेस प्रतिस्पर्धा ने बुजुर्ग से लेकर जवान सभी का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर लिया. बुरहानपुर जिला मुख्यालय से महज 10 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत पातोंडा में साल में दो बार बैलगाड़ी रेस का आयोजन होता है. इस प्रतिस्पर्धा में शामिल होने के लिए बुरहानपुर जिले के साथ-साथ आसपास के राज्य जैसे महाराष्ट्र के किसान आदि भी अपने बैलों को लेकर पहुंचते है. फिर अपने बैलों को बैलगाड़ी रेस में शामिल कर अपनी किस्मत आजमाते हैं. 

कैसे तय होता है विजेता? 

इस प्रतिस्पर्धा का आयोजन एक समिति की तरफ से किया जाता है. समिति ही एक खेत को मैदान के रूप में तैयार करती हैं. फिर दोनों तरफ बाउंड्री बनाई जाती है और दो तरफ आयोजन समिति के सदस्य निर्णायक के रूप में मौजूद रहते है. समिति का फैसला अंतिम फैसला होता है. दो-दो बैलगाड़ियों को दौड़ाया जाता है. करीब आधा किलोमीटर की इस दौड़ में जो बैलगाड़ी लक्ष्य के तरफ पहले पहुंचती है. उसे विजयी घोषित किया जाता है. 

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लोग उठाते हैं लुत्फ़ 

विजयी बैलगाड़ी के मालिक को तत्काल ईनाम के रूप में दोनों बैलो को रूमाल पहनाया जाता है व मालिक को स्टील का थाल दिया जाता है. ईनाम पाने केबाद बैल के मालिक किसान व उनके साथी इस तरह जश्न मनाते हैं जैसे क्रिकेट मेच जीतने के बाद टीम जश्न मनाया जाता है. गांव के बुजुर्गों के अनुसार, गांव में यह परंपरा करीब 2 सौ साल पुरानी है. इस आयोजन का मकसद मनोरंजन, हिंदू मुस्लिम एकता और ग्रामीणों में आपसी भाई चारा और मेल-मिलाप के लिए किया जाता है. इस बैलगाड़ी को देखने के लिए बडी संख्या में शौकिन पहुंचते है. 

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