
Madhya Pradesh School Education System: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के रायसेन (Raisen) जिले से एक ऐसी तस्वीर सामने आई है, जो सरकारी तंत्र की सुस्ती, सिस्टम की लापरवाही और बच्चों के भविष्य के साथ हो रहे खिलवाड़ की कहानी चीख-चीख कर बयां कर रही है.
दरअसल, चांदबड़ गांव में एक करोड़ की लागत से बना हाई स्कूल पिछले 8 साल से ताले में बंद है, जबकि बच्चों को आज भी जर्जर और खस्ताहाल बिल्डिंग में पढ़ाई करनी पड़ रही है.
बच्चों के भविष्य से खिलवाड़
चांदबड़ गांव में एक शानदार इमारत एक करोड़ रुपये की लागत से साल 2016-17 में बनवाया गया था. गांव वालों ने ज़मीन दान दी इसके बाद स्कूल बनकर तैयार हुआ. खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसका उद्घाटन किया था, लेकिन हैरानी की बात ये है कि उद्घाटन के 8 साल बीत जाने के बाद भी इस भवन में कभी भी एक भी कक्षा नहीं लग सकी. बंद ताले, खाली कमरे और सूनी दीवारें इस बात की गवाही दे रही हैं कि सिस्टम का सुस्त रवैया बच्चों के भविष्य पर भारी पड़ रहा है.
प्रशासन ने बताई ये कहानी
वहीं, इस पूरे मामले पर जब बीईओ राजेन्द्र श्रीवास्तव से बात की गई, तो उन्होंने कहा कि हमें जानकारी है कि भवन तैयार है, लेकिन DICE कोड की प्रक्रिया अटकी हुई है. हमने जिला स्तर पर भेजा है, जैसे ही कोड जारी होगा, संचालन शुरू करवा दिया जाएगा.
जर्जर स्कूल में हो रही है पढ़ाई
गांव में 170 बच्चे मिडिल और हाई स्कूल में पढ़ रहे हैं, लेकिन केवल 6 शिक्षक हैं. कक्षा 9 में 46 और कक्षा 10 में 24 छात्र-छात्राएं हैं. यानी 70 बच्चे हाई स्कूल के हैं लेकिन पढ़ाई मिडिल स्कूल के भवन में ही हो रही है, जो जर्जर हालत में है.
प्राचार्य को सता रहा बच्चों के भविष्य की चिंता
DICE कोड की तकनीकी अड़चन और सिस्टम की लापरवाही ने इस स्कूल को बस ‘उद्घाटन' तक ही सीमित कर दिया है. वहीं, इस पूरे मामले पर प्राचार्य अनीसा खान ने बताया कि हमने कई बार वरिष्ठ अधिकारियों को पत्र लिखे हैं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई. भवन चालू नहीं होने से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है.
लोग सरकार से मांग रहे हैं जवाब
ग्रामीणों की मांग है कि जल्द से जल्द हाई स्कूल के लिए अलग DICE कोड जारी किया जाए, ताकि बच्चों को बेहतर वातावरण मिल सके. ग्रामीण गंधर्व लोधी ने बताया कि हमने ज़मीन दी, ताकि गांव के बच्चे अच्छी पढ़ाई कर सकें, लेकिन स्कूल 8 साल से ताले में बंद है. सरकार को इसका जवाब देना चाहिए.
बच्चों के भविष्य पर संकट
कागज़ों पर सब कुछ सही है, लेकिन ज़मीन पर तस्वीर बेहद डरावनी है. सरकार की योजनाएं, अधिकारियों के दावे और सिस्टम की खामियां इन सबके बीच फंसे हैं चांदबड़ गांव के वो बच्चे, जिनका भविष्य ताले के पीछे बंद है. अब सवाल ये है, क्या बच्चों को उनका हक मिलेगा? क्या ये शानदार स्कूल भवन बच्चों की हंसी और पढ़ाई की आवाज़ों से गूंजेगा? या फिर ये सरकारी सुस्ती की भेंट चढ़ जाएगा? यानी यूं ही खंडहर में तब्दील हो जाएगा.
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