Haq Release: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने फिल्म हक के रिलीज पर रोक लगाने वाली याचिका को खारिज कर दिया. अब 7 नवंबर 2025 को सिनेमाघरों में यह फिल्म पूरे हक से रिलीज होगी. फिल्म 'हक' शाह बानो बेगम बनाम मोहम्मद अहमद खान (Shah Bano case movie) के उस ऐतिहासिक फैसले पर आधारित है, जिसने भारत में मुस्लिम महिलाओं के हक की तस्वीर बदलकर रख दी थी.
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Who was Shah Bano: शाह बानो की शादी व तलाक की कहानी क्या है?
साल 1932 में शाह बानो का निकाह एडवोकेट मोहम्मद अहमद खान से हुआ. दोनों के पांच बच्चे हुए. शादी के 14 साल बाद अहमद खान ने दूसरी महिला से शादी कर ली और पहली पत्नी शाह बानो से संबंध तोड़ लिए. अहमद खान ने तीन शब्द तलाक, तलाक, तलाक बोलकर शाह बानो व उसके बच्चों को घर से निकाल दिया. मुस्लिम पर्सनल लॉ के तीन तलाक (तलाक-उल-बिद्दत) के चंद सेकंड के बाद ही वो शादीशुदा से तलाकशुदा हो गईं.
शाह बानो वो पहली मस्लिम महिला थीं, जो तीन तलाक के खिलाफ हक के लिए लड़ीं और जीतीं भी. कोर्ट की ओर उठे शाह बानो के कदम इसलिए भी ऐतिहासिक थे, क्योंकि मुस्लिम पर्सनल लॉ में पत्नी के भरण-पोषण का प्रावधान इद्दत अवधि तक सीमित है. इद्दत की अवधि तलाक के बाद तीन महीने और पति की मृत्यु के बाद चार महीने दस दिन होती है. इस अवधि के बाद पति की कोई जिम्मेदारी नहीं होती.
Shah Bano Begum: 1985 में शाह बानो केस ने लिखा इतिहास
साल 1985 में शाह बानो की मेहनत रंग लाई और सुप्रीम कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 125 को मजहब से ऊपर मानते हुए मुस्लिम महिलाओं को तलाक के बाद भरण-पोषण की हकदार माना. शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने सियासी तूफान ला दिया था. कुछ मुस्लिम संगठनों ने फैसले को शरियत कानून के खिलाफ बताकर धरना-प्रदर्शन तक भी किया.
दबाव में आई केंद्र सरकार ने नया कानून 'मुस्लिम महिला (अधिकार संरक्षण) अधिनियम 1986' बनाया. इस नए कानून ने मुस्लिम महिलाओं को तलाक के बाद सामान्य नागरिक कानूनों के तहत भरण-पोषण का दावा करने से रोक दिया. साल 1992 में शाह बानो की ब्रेन हैमरेज से मौत हो गई थी.
Haq Movie, Emraan Hashmi: फिल्म हक पर रोक लगाने का तर्क
शाह बानो केस पर आधारित इमरान हाशमी व यामी गौतम की फिल्म 'हक' रिलीज की मांग को लेकर शाह बानो बेगम की बेटी सिद्दीका बेगम खान द्वारा दायर की गई थी. उन्होंने दावा किया कि फिल्म हक के निर्माताओं ने शाह बानो के परिवार या उत्तराधिकारियों की बिना अनुमति फिल्म बनाई है. उन्होंने अपनी मां शाह बानो की 'प्रतिष्ठा संबंधी अधिकार' विरासत में प्राप्त किए हैं.
Shah Bano Judgment: शाह बानो केस की टाइमलाइन (1943–2019)
- 1932: शाह बानो का विवाह मोहम्मद अहमद खान नामक वकील से हुआ था.
- 1975: शादी के लगभग चार दशक बाद, मोहम्मद अहमद खान ने शाह बानो को घर से निकाल दिया और गुजारा भत्ता देना बंद कर दिया. इसके बाद शाह बानो ने Criminal Procedure Code (CrPC) की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता की याचिका दायर की.
- 1978: मोहम्मद अहमद खान ने शाह बानो को "तीन तलाक" दे दिया. इसके बाद उन्होंने दावा किया कि तलाक के बाद वे अब अपनी पत्नी को कोई भरण-पोषण नहीं देंगे क्योंकि उन्होंने "मेहर (Mahr)" दे दिया है. यह मामला धीरे-धीरे अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा.
- 1980–1984: निचली अदालतों ने शाह बानो के पक्ष में फैसला दिया और कहा कि उन्हें गुजारा भत्ता मिलना चाहिए. मोहम्मद अहमद खान ने इस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील की.
- 1985: सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाया. अदालत ने कहा कि CrPC की धारा 125 धर्म से ऊपर है और सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होती है. मुस्लिम पुरुष तलाक के बाद भी गरीब पत्नी को भरण-पोषण देने से इनकार नहीं कर सकता. फैसले में कुरान की व्याख्या का भी उल्लेख किया गया कि इस्लाम भी तलाकशुदा महिला के आर्थिक अधिकार का समर्थन करता है.
- 1986: मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और कई धार्मिक संगठनों ने इस फैसले का विरोध किया. तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी सरकार ने दबाव में आकर Muslim Women (Protection of Rights on Divorce) Act, 1986 लाया, जिसने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सीमित कर दिया. कानून के तहत तलाकशुदा मुस्लिम महिला को केवल इद्दत अवधि (तीन महीने) तक ही भरण-पोषण मिल सकता था.
- 1986–2000: यह कानून लगातार विवादों में रहा. कई अदालतों ने शाह बानो फैसले की भावना को बरकरार रखते हुए महिलाओं के पक्ष में निर्णय दिए.
- 2001–2017: देशभर में "तीन तलाक" और मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को लेकर आंदोलन तेज हुए.
- 2017: सुप्रीम कोर्ट ने बानो केस में तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किया. यह शाह बानो केस की ही संवैधानिक विरासत थी.
- 2019: Triple Talaq Bill 2019 संसद से पारित हुआ, जिसके तहत तीन तलाक को कानूनी अपराध घोषित किया गया.
Shah Bano Story in Hindi: शाह बानो की बेटी की याचिका क्यों हुई खारिज?
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति प्रणव वर्मा ने शाह बानो की बेटी की याचिका खारिज कर दी और कहा कि किसी व्यक्ति को अपने जीवनकाल में प्राप्त हुई निजता या प्रतिष्ठा उसकी मौत के बाद समाप्त हो जाती है. इसे चल या अचल संपत्ति की तरह विरासत में नहीं लिया जा सकता. अदालत ने फिल्म निर्माताओं के इस तर्क को भी स्वीकार किया कि हक एक “प्रेरित” फिल्म है. यह एक काल्पनिक कहानी है और फिल्म में यह बात डिस्क्लेमर के माध्यम से स्पष्ट की गई है.