Haq Release Controversy: इमरान हाशमी और यामी गौतम की फिल्म “हक़” अब तय तारीख पर यानी 7 नवंबर को रिलीज होगी. इंदौर हाईकोर्ट ने फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया है. यह फिल्म देश के चर्चित शाह बानो केस पर आधारित है, जिसकी वजह से यह रिलीज से पहले ही विवादों में घिर गई थी. कोर्ट के फैसले के बाद अब फिल्म का रास्ता पूरी तरह साफ हो गया है.
हाईकोर्ट ने दी फिल्म को हरी झंडी
फिल्म हक़ की रिलीज को लेकर इंदौर में शाह बानो के परिजनों ने याचिका दायर की थी. उन्होंने आरोप लगाया था कि फिल्म में तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है और परिवार से कोई अनुमति नहीं ली गई. लेकिन जस्टिस प्रणय वर्मा की एकलपीठ ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद यह याचिका खारिज कर दी. अदालत ने कहा कि फिल्म पर काम फरवरी 2024 से चल रहा था और याचिका रिलीज से सिर्फ छह दिन पहले, यानी 1 नवंबर को दायर की गई, जो देरी से की गई कार्रवाई है.
फिल्म की रिलीज डेट बरकरार
अब फिल्म 7 नवंबर को देशभर के सिनेमाघरों में रिलीज होगी. इस फिल्म का निर्देशन सुपर्ण वर्मा ने किया है और इसमें इमरान हाशमी और यामी गौतम मुख्य भूमिकाओं में हैं. फिल्म हक़ 1985 के चर्चित शाह बानो केस से प्रेरित है, जिसने भारत में महिला अधिकारों को लेकर एक ऐतिहासिक बहस को जन्म दिया था.
क्या है शाह बानो केस?
शाह बानो केस की शुरुआत 1978 में हुई थी. 62 वर्षीय शाह बानो बेगम ने अपने तलाकशुदा पति मोहम्मद अहमद खान के खिलाफ भरण-पोषण की मांग करते हुए अदालत में याचिका दायर की थी. अहमद खान एक जाने-माने वकील थे जिन्होंने शाह बानो से 1932 में शादी की थी. दोनों के पांच बच्चे थे. तीन बेटे और दो बेटियां.
पति ने तलाक देकर घर से निकाल दिया
विवाह के कई साल बाद, मोहम्मद अहमद खान ने दूसरी शादी कर ली. कुछ समय तक दोनों पत्नियां एक साथ रहीं, लेकिन 1978 में उन्होंने शाह बानो को तलाक दे दिया और घर से निकाल दिया. उन्होंने इद्दत अवधि (तीन महीने) के लिए भरण-पोषण देने का वादा किया, लेकिन बाद में पैसे देना बंद कर दिया.
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शाह बानो की कानूनी लड़ाई
पति की बेरुखी के बाद शाह बानो ने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत अदालत में याचिका दायर की. यह धारा किसी भी ऐसी महिला को अपने पति से भरण-पोषण की मांग करने का अधिकार देती है जो खुद का खर्च उठाने में असमर्थ हो, चाहे वह किसी भी धर्म की क्यों न हो. शाह बानो ने अपनी और अपने बच्चों की परवरिश के लिए यह कानूनी कदम उठाया.
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
लगभग सात साल चली कानूनी लड़ाई के बाद, यह मामला 1985 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. पांच जजों की बेंच ने शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि किसी भी धर्म की महिला धारा 125 CrPC के तहत भरण-पोषण की हकदार है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “कानून की नैतिकता धर्म से ऊपर है”, जिससे यह फैसला भारतीय न्याय व्यवस्था में महिला अधिकारों की दिशा में एक बड़ा कदम बन गया.