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This Article is From Sep 13, 2023

ग्वालियर में जान हथेली पर रखकर निकलती है शव यात्रा, नदी पार कर अंतिम संस्कार करने जाते हैं लोग

दरअसल ये दोनों गांव हैं तो एकदम नजदीक लेकिन इनकी विडंबना यह है कि इनके विकास खंड अलग-अलग हैं. एक गांव डबरा क्षेत्र में है तो दूसरा भितरवार क्षेत्र में. अफसर कहते हैं कि इस कारण इस नदी पर रपटा बनाने के प्रस्ताव की स्वीकृति में दिक्कत आ रही है.

ग्वालियर में जान हथेली पर रखकर निकलती है शव यात्रा, नदी पार कर अंतिम संस्कार करने जाते हैं लोग

ग्वालियर : मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव आ गए हैं. नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए बीजेपी सरकार जहां जनआशीर्वाद यात्रा निकालकर सरकार की उपलब्धियां और विकास कार्य बताने के लिए जनता के बीच जा रही है, तो वहीं कांग्रेस कमलनाथ के नेतृत्व वाली पंद्रह महीने की सरकार के विकास कार्य गिना रही है. लेकिन ग्वालियर के डबरा तहसील के सेंकरा गांव की ओर किसी का ध्यान नहीं है. गांव के लोगों को किसी परिजन की मौत के बाद अंतिम संस्कार के लिए कमर तक पानी में जान हथेली पर लेकर नदी पार करके जाना पड़ता है. 

ग्वालियर जिले में आज भी कुछ गांव मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. सेंकरा और सिरसा गांव में नोन नदी पर रपटा न होने के चलते अंतिम संस्कार के लिए शव यात्रा को बीच नदी से होकर श्मशान तक ले जाना पड़ता है. कांग्रेस ने BJP के विकास के दावों पर तंज कसा है तो वहीं BJP ने कहा है कि रपटा का निर्माण जल्द कराएंगे. खबर के साथ नजर आ रही तस्वीर ग्वालियर जिले से सामने आई है. नदी के बीच से निकल रही यह शव यात्रा डबरा तहसील के सिरसा गांव से शुरू हुई है जिसे दूसरे गांव सेंकरा तक जाना था.

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बारिश के दिनों में बढ़ जाता है खतरा
सिरसा में श्मशान नहीं है इसलिए लोगों को अंतिम संस्कार के लिए शवों को सेंकरा के श्मशान ले जाना पड़ता है जिसके रास्ते में नून नदी पड़ती है. इसलिए बरसात में उफनती इस नदी के बीच से होकर निकलना गांव वालों की मजबूरी है क्योंकि इस नदी पर पुल तो दूर रपटा भी नहीं है. सामान्य दिनों में तो नदी में पानी कम और बहाव धीमा रहता है लेकिन बरसात के दिनों में नदी के तेज बहाव के कारण किसी के भी डूबने और बह जाने की आशंका बनी रहती है.

कई बार दुर्घटनाएं होते-होते बचीं इसलिए पहले यह चेक किया जाता है कि शव यात्रा में शामिल होने वाले लोगों को तैराकी आती है या नहीं या उनकी हाइट कम तो नहीं है. ऐसे में बुजुर्गों को साथ ले जाना बहुत बड़ी चुनौती होती है.

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किसी सरकार में नहीं मिला पुल
दरअसल ये दोनों गांव हैं तो एकदम नजदीक लेकिन इनकी विडंबना यह है कि इनके विकास खंड अलग-अलग हैं. एक गांव डबरा क्षेत्र में है तो दूसरा भितरवार क्षेत्र में. अफसर कहते हैं कि इस कारण इस नदी पर रपटा बनाने के प्रस्ताव की स्वीकृति में दिक्कत आ रही है. विडंबना देखिए कि सरकार कांग्रेस की रही हो या बीजेपी की, डबरा क्षेत्र का विधायक ज्यादातर समय मंत्री रहा. पहले नरोत्तम मिश्रा बीजेपी से विधायक बनते थे जो बीजेपी के कद्दावर नेता और वर्तमान में प्रदेश के गृहमंत्री हैं. वहीं कांग्रेस की सरकार बनी तो यहां से इमरती देवी जीतकर मंत्री बनीं लेकिन इस नदी पर रपटा नहीं बन पाया.

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