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This Article is From Nov 01, 2023

Gwalior News : म्यूजिक सिटी बनने पर खुशी का महौल, संगीत सम्राट तानसेन-बैजू बावरा हैं यहां की पहचान

जाने-माने संगीतज्ञ नवनीत कौशल ने एनडीटीवी (NDTV) से खास बातचीत में कहा कि यह ग्वालियर के लिए गौरव की बात है, क्योंकि ग्वालियर का इतिहास और रिश्ता संगीत से बहुत पुराना रहा है, चाहे राजा मानसिंह (Raja Maan Singh) हों, संगीत सम्राट तानसेन हों, बैजू बावरा हों, हस्सू खा- हद्दु खा हों ये सभी संगीत के क्षेत्र में जाने-माने नाम हैं और सबका रिश्ता ग्वालियर से ही रहा है.

Gwalior News : म्यूजिक सिटी बनने पर खुशी का महौल, संगीत सम्राट तानसेन-बैजू बावरा हैं यहां की पहचान
ग्वालियर:

Madhya Pradesh News :  ग्वालियर और भारतीय शास्त्रीय संगीत (Indian Classic Music) परंपरा से रिश्ता किसी से छुपा नहीं है. संगीत सम्राट तानसेन (Tansen) से लेकर बैजू बावरा (Baiju Bawra) तक यहीं से आए और सदियों पहले शुरू हुई यहां की संगीत परंपरा आज तक कायम है. अब यूनेस्को (UNESCO) ने भी ग्वालियर को संगीत सिटी (Gwalior Music City) घोषित करने का ऐलान किया है. इससे ग्वालियर के संगीत प्रेमी खुश हैं और शहर में जश्न का माहौल है. केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia Minister of Civil Aviation) से लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (CM Shivraj Singh Chouhan) और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ (Kamal Nath) तक ने इस उपलब्धि पर प्रसन्नता जाहिर की है.

संगीतकार बोले , ग्वालियर का संगीत से पुराना रिश्ता

शास्त्रीय संगीत से जुड़े शहर के जाने-माने संगीतज्ञ नवनीत कौशल ने ग्वालियर को यह गौरव मिलने पर खुशी जाहिर की है. कौशल ने एनडीटीवी (NDTV) से खास बातचीत में कहा कि यह ग्वालियर के लिए गौरव की बात है, क्योंकि ग्वालियर का इतिहास और रिश्ता संगीत से बहुत पुराना रहा है, चाहे राजा मानसिंह (Raja Maan Singh) हों, संगीत सम्राट तानसेन हों, बैजू बावरा हों, हस्सू खा- हद्दु खा हों ये सभी संगीत के क्षेत्र में जाने-माने नाम हैं और सबका रिश्ता ग्वालियर से ही रहा है.

कौशल कहते हैं कि गौरव की बात है कि अब ग्वालियर शहर यूनेस्को में संगीत नगरी के रूप में जुड़ रहा है. संगीत में ग्वालियर ने जो गौरव प्राप्त किया था वह और आगे बढ़ेगा. ग्वालियर को ध्रुपद और ख्याल गायकी के घराने के रूप में भी जाना जाता है. जिसका इतिहास सैकड़ों साल पुराना है.

कौशल कहते है कि ध्रुपद और ख्याल गायकी का एक अपना अलग स्टाइल है और इस गायकी में गमक यानी गंभीरता होती है, बंदिशें ज्यादा फैलाते नहीं हैं. 48 मात्राओं की जगह 24 मात्राओं में ही बंदिश पूरी की जाती है. ग्वालियर की ये बहुत पुरानी परंपरा है और कई सारे लोग इसे सीखने भी आ रहे हैं. नए कलाकार भी देखने को मिल रहे हैं.

बढ़ेगा शास्त्रीय संगीत की शिक्षा का महत्व 

ग्वालियर को यूनेस्को में संगीत नगरी का तमगा मिलने के बाद ग्वालियर के राजा मानसिंह संगीत एवं कला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. साहित्य कुमार ने भी खुशी जाहिर की है. उन्होंने कहा कि इसके लिए मध्य प्रदेश के साथ-साथ ग्वालियर की जनता और संगीत साधना से जुड़े लोगों को बहुत-बहुत बधाई. ग्वालियर की संगीत साधना की ऐतिहासिक परंपरा रही है चाहे वह तानसेन हो या बैजू बावरा ग्वालियर के लिए इनका गौरव अतुलनीय है. यूनेस्को में ग्वालियर के संगीत नगरी के रूप में शामिल होने से हमारी परंपरा का परचम पूरे विश्व में लहराएगा. 

संगीत विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं में भी उत्साह

राजा मानसिंह संगीत विश्वविद्यालय (Raja Man Singh Tomar University) के छात्र-छात्राओं में भी उत्साह का माहौल है गायन से जुड़ी छात्रा का कहना है कि के लिए यह बहुत गौरव का मौका है. विश्वविद्यालय में शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ले रहे छात्र का कहना है कि तानसेन की नगरी को इतना बड़ा सम्मान मिलना बड़ी बात है. ग्वालियर पहले से ही संगीत की राजधानी था और अब विश्व पटल पर भारत का नाम उभरा है. 

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने लिखी थी चिट्ठी 

ग्वालियर का नाम UNESCO के सिटी में शामिल हो इसके लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जून में समर्थन पत्र लिखा था. उन्होंने इस पत्र में ग्वालियर के महान सांस्कृतिक व संगीत के इतिहास की चर्चा की व ग्वालियर घराने के महान संगीतकार बैजू बावरा व तानसेन का भी ज़िक्र किया था. 

आज भी चल रही है गुरु-शिष्य परंपरा

इस समर्थन पत्र में केंद्रीय मंत्री ने ग्वालियर घराने में अभी भी चल रही है गुरु-शिष्य परंपरा की व्याख्या की थी. उसमें उल्लेख था कि किस प्रकार आज भी सिंधिया घराने द्वारा ऐतिहासिक संगीत व पारम्परिक वाद्ययंत्र को बजाने वाले कलाकार व उनकी कला जीवित रहे इसके लिए सिंधिया घराने द्वारा उनका संरक्षण किया जाता है.

यह भी पढ़ें : MP News : तानसेन की जन्मस्थली ग्वालियर को यूनेस्को ने दी “City of Music” की मान्यता, जानिए यह क्यों है खास?

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