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Govardhan Puja 2023: यहां दिवाली के बाद निकलती है मौनी नृत्य की टोलियां, हजारों साल पुरानी है ये परंपरा

Govardhan Puja Worship: बुंदेलखंड के छतरपुर में दीपावली के एक दिन बाद होने वाली मौनिया नृत्य की धूम मची है. यहां मौनी नर्तकों की टोली गांव-गांव में पहुंच रहीं हैं. दरअसल, इसे यहां होने वाली गोवर्धन पूजा  के साथ मनाया जाता है. इसे गोवर्धन पर्वत उठाने के बाद भगवान कृष्ण की भक्ति में प्रकृति पूजा की परम्परा के तौर पर मनाया जाता है.

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Govardhan Puja 2023: यहां दिवाली के बाद निकलती है मौनी नृत्य की टोलियां, हजारों साल पुरानी है ये परंपरा

बुंदेलखंड में दीपावली के बाद नाचते गाते मौनी नृत्य की टोलियां निकलती है. यह परंपरा यहां हजारों साल से चली आ रही है.यह नृत्य यादव जाति के लोग ज्यादा करते हैं, क्योंकि यह भगवान कृष्ण को अपनी जाति का मानकर उनकी उपासना करते हैं. बुंदेलखंड के लगभग सभी जिलों में मौनी नृत्य का आयोजन किया जाता है.

उत्तर प्रदेश  मध्य प्रदेश

हजारों साल पुरानी ये परंपरा पूरी तरह कृष्ण भक्ति को समर्पित है. इसमें प्रकृति और गोवंश के प्रति संरक्षण का संदेश दिया जाता है. मौनी बिना कुछ खाए और बिना बोले कई किलोमीटर पैदल नाचते गाते चलते हैं. मौनी नृत्य की कहानी बुंदेलखंड में राजा बलि और भगवान विष्णु के बावन अवतार से जुड़ी हुई है.

ये है परंपरा

बुंदेलखंड के छतरपुर में दीपावली के एक दिन बाद होने वाली मौनिया नृत्य की धूम मची है. यहां मौनी नर्तकों की टोली गांव-गांव में पहुंच रहीं हैं. दरअसल, इसे यहां होने वाली गोवर्धन पूजा  के साथ मनाया जाता है. इसे गोवर्धन पर्वत उठाने के बाद भगवान कृष्ण की भक्ति में प्रकृति पूजा की परम्परा के तौर पर मनाया जाता है. इसे दिवारी नृत्य भी कहते हैं. मौनियां की टीम 12-12 गांव जाकर 12 घंटे तक नृत्य करती है. एक टोली जब इसे शुरू करती है, तो उसे मौन साधना कर 12 अलग-अलग गांव में 12 घंटे तक भ्रमण करती है. उसके बाद इसका विसर्जन करा दिया जाता है.

ये है ऐतिहासिक तथ्य

प्रसिद्ध इतिहासकार हरगोविंद कुशवाहा बताते हैं कि मोनिया बुंदेलखंड का सबसे प्राचीन और प्रमुख लोक नृत्य है. इसमें 12 गांव में 12 घंटे तक नाच गाकर परंपरा निभाई जाती है, ताकि प्रकृति की रक्षा और गाय बैलों का संरक्षण हो. इसके पहले इसकी टोली में शामिल ग्वाले मौन साधना की शपथ लेते हैं, फिर उनकी टोली निकलती है. इसमें एक नेता होता है, जिसे बरेदी कहते हैं. यह टोलियां जो गीत गाते हुए चलती है, उनमें शृंगार, वैराग्य, नीति, कृष्ण, महाभारत, धर्म और दिवारी गाई जाती है.

12 घंटे तक 12 गांवों में चलता है नृत्य

दिवारी एक परंपरागत लोकनृत्य है, जिसे भक्त प्रहलाद के नाती राजा बलि के वंश से जोड़कर देखा जाता है. बुंदेलखंड के ऐरच में ही भक्त प्रहलाद के राज का इतिहास बताया जाता है. यहां प्रहलाद के पुत्र विरोचन थे, जिनका पुत्र ही आगे चलकर बलि हुआ. यहां से भगवान विष्णु के बावन अवतार पर भी कथा प्रचलित है.  बताया जाता है कि राजा बलि को छलने के लिए ही बावन अवतार लिया गया था. इसके पहले वैरोचन की पत्नी जब सती हो रही थीं, तो उन्हें भगवान ने दर्शन देकर कहा था कि आपके होने वाले पुत्र के सामने हम स्वयं भिक्षा मांगने के लिए आएंगे. इसे सुनकर सती होने के लिए पहुंची उनकी पत्नी ने दिवारी गायन शुरू कर दिया था. इसमें उन्होंने गाया था— ‘भली भई सो ना जरी अरे वैरोचन के साथ, मेरे सुत के सामने कऊं हरि पसारे हाथ…', इस गीत के साथ ही मौनिया नृत्य शुरू कर देते हैं, जो पूरे 12 घंटे तक 12 ग्रामों में चलता है. हरगोविंद बताते हैं कि यह 12 घंटे तक चलता है और उसके बाद मौनी दशाश्वमेध घाट पर इसका विसर्जन कर देते हैं.

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इसलिए होती है गोवर्धन पूजा

गोवर्धन पूजा बुंदेलखंड के तकरीबन सभी गांव में होती है. बताया जाता है कि यह भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई है. इसमें हिन्दू धर्मावलम्बी घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन नाथ की आकृति बनाकर उनका पूजन करते हैं. गोवर्धन पूजा करने के पीछे धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण इंद्र का अभिमान चूर करना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर गोकुल वासियों की इंद्र से रक्षा की थी. माना जाता है कि इसके बाद भगवान कृष्ण ने स्वयं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन 56 भोग बनाकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का आदेश दिया दिया था. तभी से गोवर्धन पूजा की प्रथा आज भी कायम है.

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