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गाय गोहरी पर्व; यहां जमीन पर लेटे इंसानों के ऊपर दोड़ती हैं गाय, श्रद्धा या अंधविश्वास... कैसी है ये परंपरा

Gai Gohari Parv: इस अनोखे पर्व की सबसे खास परंपरा होती है मन्नतधारियों के ऊपर से गायों का निकालना. आस्था के अनुसार, जो व्यक्ति अपनी किसी मनोकामना की पूर्ति के लिए मन्नत मांगता है, वह अपनी मन्नत पूरी होने पर इस दिन जमीन पर लेट जाता है, और उसके ऊपर से सैकड़ों गायें गुज़रती हैं. इसे मन्नत चुकाने की परंपरा कहा जाता है.

गाय गोहरी पर्व; यहां जमीन पर लेटे इंसानों के ऊपर दोड़ती हैं गाय, श्रद्धा या अंधविश्वास... कैसी है ये परंपरा
गाय गोहरी पर्व; यहां जमीन पर लेटे इंसानों के ऊपर दोड़ती हैं गाय, श्रद्धा या अंधविश्वास... कैसी है ये परंपरा

Gai Gohari Parv: दीपावली के दूसरे दिन मनाया जाने वाला पड़वा पर्व, वहीं धार जिले के ग्रामीण अंचलों में सिर्फ खुशियों का नहीं, बल्कि गायों के प्रति श्रद्धा और आस्था का पर्व भी माना जाता है. इसी दिन गाय गोहरी पर्व पूरे हर्षोल्लास और परंपरा के साथ मनाया जाता है. इस बार भी धार जिले के सरदारपुर क्षेत्र के गवलीपुरा गांव में आज यह पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया गया. गांव के मुख्य मार्ग को दीपों, फूलों और रंगोलियों से सजाया गया, वहीं गौमाताओं को भी रंग-बिरंगे कपड़ों, फूलों की माला और घंटियों से सजाया गया. इस दौरान ग्रामीणों ने पारंपरिक वाद्ययंत्रों की थाप पर नृत्य करते हुए पर्व का स्वागत किया.

क्या है परंपरा?

इस अनोखे पर्व की सबसे खास परंपरा होती है मन्नतधारियों के ऊपर से गायों का निकालना. आस्था के अनुसार, जो व्यक्ति अपनी किसी मनोकामना की पूर्ति के लिए मन्नत मांगता है, वह अपनी मन्नत पूरी होने पर इस दिन जमीन पर लेट जाता है, और उसके ऊपर से सैकड़ों गायें गुज़रती हैं. इसे मन्नत चुकाने की परंपरा कहा जाता है.

मान्यता है कि यह परंपरा सदियों पुरानी है. लोग अपनी मन्नत पूरी होने पर एक वर्ष, तीन वर्ष, पाँच वर्ष या आजीवन हर पड़वा के दिन इसी तरह अपनी आस्था निभाते हैं. ग्रामीण मानते हैं कि गाय के चरणों से निकलने वाला स्पर्श न केवल शुभ होता है, बल्कि जीवन में समृद्धि और सुख-शांति लाता है.

गाय गोहरी पर्व के अवसर पर गांव में भक्ति गीतों, आरती और सामूहिक भोज का भी आयोजन किया गया. पूरे कार्यक्रम के दौरान वातावरण में “जय गोमाता”, “गोवर्धनधारी की जय” के जयकारों से भक्तिमय माहौल बना रहा. इस तरह गवलीपुरा में आज का दिन गायों, ग्रामीणों और परंपरा के इस पवित्र संगम का साक्षी बना.

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