विज्ञापन

Hingot Mela: परंपरा के नाम पर बरसे गोले; देशी ग्रेनेड से योद्धा एक-दूसरे पर करते हैं हमला

Hingot Mela: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और जिला प्रशासन से 2017 में जवाब मांगा था, लेकिन आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी है. इस परंपरा पर प्रतिबंध लगे या इसे सुरक्षित तरीके से आयोजित किया जाए – यह बहस अब और तेज होती जा रही है.

Hingot Mela: परंपरा के नाम पर बरसे गोले; देशी ग्रेनेड से योद्धा एक-दूसरे पर करते हैं हमला
Hingot Mela: परंपरा के नाम बरसें गोले; देशी ग्रेनेड से योद्धा एक-दूसरे पर करते हैं हमला

Hingot Mela: दीपावली के दूसरे दिन इंदौर से 40-50 किलोमीटर दूर स्थित गौतमपुरा कस्बे में एक बार फिर आस्था, परंपरा और जोखिम का अनोखा संगम देखने को मिला. यहां सदियों पुरानी परंपरा हिंगोट युद्ध (Hingot War) का आयोजन हुआ, जिसमें दो गांवों के युवक जलते हुए अग्निबाण एक-दूसरे पर फेंकते हैं. हजारों की भीड़ ढोल-नगाड़ों की गूंज के बीच इस खतरनाक लेकिन रोमांचकारी परंपरा की साक्षी बनी. हर साल की तरह इस बार भी गौतमपुरा के तुर्रा और रूणजी के कलंगी दल मैदान में आमने-सामने उतरे. युद्ध की शुरुआत देवनारायण मंदिर के दर्शन के बाद हुई, जहां दोनों दल निशान लिए पहुंचे. शाम को जैसे ही पहला हिंगोट हवा में लहराया, मैदान में आग और बारूद का तांडव शुरू हो गया.

धार्मिक परंपरा या जानलेवा खेल?

हिंगोट युद्ध को लेकर वर्षों से बहस जारी है. 2017 में एक युवक की मौत के बाद इस परंपरा की वैधता पर कानूनी सवाल खड़े हुए थे. हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी, जिसमें इसे अमानवीय परंपरा बताकर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी. मामला अभी लंबित है, जवाब अब तक पेश नहीं हुआ है, और आयोजन पहले की तरह जारी है.

क्या है इतिहास?

स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यह परंपरा मुगल काल में शुरू हुई थी, जब मराठा सैनिकों ने मुगलों से लड़ने के लिए सूखे फलों में बारूद भरकर गुरिल्ला युद्ध का तरीका अपनाया था. बाद में यह युद्धाभ्यास धार्मिक आस्था से जुड़कर परंपरा बन गया. आज यह युवाओं के लिए शौर्य और स्वाभिमान का प्रतीक बन गया है.

हर साल घायल होते हैं दर्जनों योद्धा

हालांकि इसे खेल कहा जाता है, लेकिन आंकड़े इसकी भयावहता को उजागर करते हैं. हर साल 20 से 40 लोग घायल होते हैं, कुछ की आंखों की रोशनी तक चली जाती है. प्रशासन सुरक्षा के नाम पर फायर ब्रिगेड, पुलिस और एम्बुलेंस तैनात करता है, पर हादसे फिर भी नहीं रुकते. स्थानीय निवासी कहते हैं, “हिंगोट सिर्फ परंपरा नहीं, हमारी पहचान है. मुगलों से लड़ने की याद है.” वहीं कुछ बुजुर्ग मानते हैं कि आज का हिंगोट युद्ध मूल परंपरा से भटक चुका है. युवाओं में जोश है, लेकिन कभी-कभी शराब के नशे में उपद्रव भी हो जाता है, जिससे इसकी छवि को धक्का पहुंचता है.

कैसे बनते हैं 'हिंगोट'?

हिंगोट एक जंगली फल है, जिसका बाहरी खोल बेहद सख्त होता है. इसे सुखाकर अंदर का गूदा निकाला जाता है और उसमें बारूद भरकर उसे पीली मिट्टी से बंद कर दिया जाता है. जलने पर यह स्थानीय देसी बम की तरह फटता है.

यह भी पढ़ें : PM Kisan 21st Installment: अन्नदाताओं को दिवाली पर नहीं मिली खुशखबरी; किन किसानों 2-2 हजार रुपये मिलेंगे

यह भी पढ़ें : Anukampa Niyukti: शहीद ASP आकाश राव गिरपुंजे की पत्नी को मिली अनुकम्पा नियुक्ति, DSP बनीं स्नेहा

यह भी पढ़ें : उज्जैन में श्री महाकालेश्वर बैंड व श्री अन्न लड्डू प्रसादम शुरू; CM मोहन ने फाउंटेन शो का किया लोकार्पण

यह भी पढ़ें : Pado Ki Ladai: 85 साल पुरानी परंपरा; पाड़ों की लड़ाई में 'भोला किंग' व 'दोहरा सरदार' का दिखा जलवा

MPCG.NDTV.in पर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें. देश और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं. इसके अलावा, मनोरंजन की दुनिया हो, या क्रिकेट का खुमार,लाइफ़स्टाइल टिप्स हों,या अनोखी-अनूठी ऑफ़बीट ख़बरें,सब मिलेगा यहां-ढेरों फोटो स्टोरी और वीडियो के साथ.

फॉलो करे:
Close