Fertilizer Crisis in Rabi Crop Season: डीएपी (DAP) खाद (Fertilizer) को लेकर देश और मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) दोनों परेशान हैं. कई हिस्सों में किसानों को यह खाद इस समय आसानी से मुहैया नहीं हो पा रही है, इसकी वजह से रबी फसलों की बुवाई भी प्रभावित हो रही है. डीएपी खाद (DAP Fertilizer) के सब्सीट्यूट भारत में मौजूद हैं, लेकिन किसान (Farmers) उनकी तरफ रुख करना नहीं चाहता. यही वजह है कि डीएपी खाद की मांग लगातार देश और प्रदेश दोनों में बढ़ती जा रही है. अक्टूबर-नवंबर में देश और प्रदेश के कई हिस्सों में रबी फसलों की बोनी होती है, इस समय DAP यानी डाई अमोनियम फॉस्फेट की जरूरत होती है. लेकिन खाद की आपूर्ति नहीं हो पा रही है ऐसे में किसान खाद के लिए लंबी-लंबी कतारों में परेशान दिख रहे हैं. आइए NDTV की इस रिपोर्ट में देखिए आखिर ये संकट क्यों बना हुआ है.
स्टॉक कम, मांग ज्यादा
जब गेहूं समेत रबी की फसलों की बुवाई शुरू हुई तो देश में डीएपी का स्टॉक अक्टूबर में 21.76 लाख मीट्रिक टन का बताया गया, यह पिछले साल की तुलना में लगभग 15 लाख मीट्रिक टन कम है. पिछले साल इस डीएपी (DAP Stock) खाद का स्टॉक देश के पास 37.45 लाख मीट्रिक टन था. वहीं अंतरराष्ट्रीय बाजार में डीएपी और इसके कच्चे माल की कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी देखी जा रही है. इसके साथ-साथ आयात में लगातार कमी रिकॉर्ड की गई है.
घाटे में जा रही हैं कंपनियां, EV में बढ़ रहा इस्तेमाल
अंतरराष्ट्रीय बाजार में जून से सितंबर में डीएपी की कीमतें 509 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 620 से 640 डॉलर प्रति टन होना बताई गई है. घरेलू बाजार में डीएपी की अधिकतम खुदरा कीमत 27,000 रुपए प्रति टन है. सरकार 21,676 रुपए टन की सब्सिडी देती है. 620 डॉलर प्रति टन की आयतित कीमत पर 5% सीमा शुल्क, बैगिंग, ढुलाई, बीमा और डीलर मार्जिन सहित सभी खर्च मिलाकर इस खाद पर लागत 61,000 रुपए प्रति टन आती है, जबकि कंपनियों की आमदनी 53,900
रुपए प्रति टन होती है. इस लिहाज से कंपनियों को 7100 रुपए का घाटा भी उठाना पड़ रहा है.
वहीं अन्य दो तरह की बैटरियां निकल व कोबाल्ट तकनीक पर आधारित हैं, ये दोनों ही तत्व फॉस्फोरस की तुलना में बहुत महंगे व कम उपलब्ध हैं यानी फॉस्फोरस से बनने वाली बैटरी सस्ती पड़ती है. यही वजह है कि खाद संकट बढ़ा हुआ है. चीन ने 2023 में दो-तिहाई बैटरी फॉस्फोरस आधारित बनाई और यह देश सालाना 50 लाख टन डीएपी का निर्यात करता था, जिसमें से 2023 में भारत ने 17 लाख टन डीएपी का आयात चीन से किया.
DAP के सब्सीट्यूट मौजूद, लेकिन किसानों की नहीं है रुचि
भारत में डीएपी खाद के सब्सीट्यूट के रूप में सुपर खाद के साथ यूरिया का मिश्रण भी इसकी पूर्ति कर सकता है, लेकिन किसान इसमें रुचि नहीं रखता. एनपीके (NPK) भी मौजूद है, लेकिन किसान इसकी तरफ भी रुख नहीं करता. यही वजह है कि उसकी मांग लगातार बनी रहती है. इन दोनों खादों की तुलना में डीएपी ₹50 से ₹55 रुपए तक महंगी पड़ती है, लेकिन किसान फिर भी उन्हें खरीदने के लिए दिलचस्पी नहीं दिखता. यही वजह है कि इसकी डिमांड लगातार न केवल लगातार बढ़ती है बल्कि DAP की कमी देश और प्रदेश में महसूस की जाती है.
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