विदिशा में गुरुवार को बड़ी संख्या में रक्षा समिति (Raksha Samiti) के सदस्यों ने आत्महत्या करने की कोशिश की. जानकारी के मुताबिक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chouhan) द्वारा की गई घोषणाओं को सरकार द्वारा अमल में नहीं लाने की वजह से रक्षा समिति के सदस्य आत्महत्या करने के लिए बेतवा घाट (Betwa Ghat) पहुंचे. प्रशासन को इसकी सूचना मिलते ही पुलिस बल के सहयोग से सभी को रोक लिया गया है. तहसीलदार के एन ओझा ने बताया कि खबर मिलने पर सभी को रोका गया है. इनकी जो भी मांगे हैं उसके बारे में उच्च अधिकारियों को बता दिया गया है.
दरअसल, 24 अप्रैल को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ग्राम और नगर रक्षा समिति के कई बड़ी घोषणाएं की थीं. उन्होंने कहा था कि रक्षा समिति के सदस्यों को पुलिस पद और मानदेय दिया जाएगा, लेकिन आज तक इस घोषणा के अमल में नहीं आने की वजह से हजारों की संख्या में रक्षा समिति के सदस्य बेतवा घाट पर पहुंचकर आत्महत्या करने पहुंचे.
हमारे पास आत्महत्या के अलावा कोई चारा नहीं
रक्षा समिति के जिला अध्यक्ष दीपक तिवारी ने आरोप लगाते हुए कहा कि 24 अप्रैल को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल में एक बड़ा आयोजन किया था. जिसमें प्रदेश भर के रक्षा समिति के लोग शामिल हुए थे. मुख्यमंत्री ने रक्षा समिति सदस्यों को लेकर बहुत सारी घोषणाएं की थीं, लेकिन इन घोषणाओं को पूरा करने के लिए आदेश आज तक जारी नहीं हुआ है. उन्होंने कहा कि जब सरकार ही नहीं सुन रही है तो हम लोगों के पास आत्महत्या के अलावा कोई चारा नहीं बचा है.
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टीकमगढ़ से विदिशा पहुंचकर नंदू, सरकार से इच्छा मृत्यु मांग रहे हैं. नंदू कहते हैं कि मेरा लड़का 15 साल ने रक्षा समिति में नौकरी कर रहा था. पुलिस के साथ मेरा लड़का हरियाणा गया, जहां हादसे में उसकी मौत हो गई. इसके बाद प्रशासन ने आश्वाशन दिया था कि परिवार के एक सदस्य को चपरासी का पद दिया जाएगा और आर्थिक मदद भी की जाएगी, लेकिन आज तक हम लोगों को ना तो सरकार से कोई मदद मिल सकी है और ना ही परिवार के किसी सदस्य को नोकरी मिली है. उन्होंने कहा कि अब हम लोगों के पास मरने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है.
सिस्टम के चक्कर काट रहे पीड़ित
35 साल की मनका रैकवार ने कम उम्र में ही अपना पति खो दिया. मनका बताती हैं कि उनके पति रक्षा समिति के सदस्य थे. पुलिस की मदद के लिए हरियाणा गए लेकिन वहां से फिर कभी घर नहीं लोटे. जिसके बाद परिवार की जिम्मेदारी मेरे कंधो पर आ गई है. सरकार ने वादा किया था कि नौकरी के साथ आर्थिक मदद की जाएगी, लेकिन सरकारी सिस्टम के चक्कर काट-काट कर आज दो साल गुजर गए. अभी तक हमारी कोई सुनवाई नहीं हो सकी है.
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