
Madhya Pradesh Public Service Commission: मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (MPPSC) द्वारा आयोजित राज्य सेवा परीक्षा, 2023 (State Service Examination 2023) के प्रारंभिक परीक्षा में पूछे गये 3 विवादित प्रश्नों से जुड़े मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने विषय विशेषज्ञों की रिपोर्ट पर असंतोष जाहिर करते हुए अपनी तल्ख टिप्पणी में कहा है कि पीएससी (PSC) को इस तरह का रवैया नहीं अपनाना चाहिए. समाधान का रास्ता आवश्यक है. इस तरह का मामला अभ्यर्थियों के भविष्य से जुड़ा होता है, इसलिए गम्भीरता अपनानी चाहिए. गंभीरता नहीं बरती गई इसीलिए यह मामला कोर्ट में आया है.
12 मार्च को MPPSC सचिव होंगे हाजिर
जस्टिस विवेक अग्रवाल (Justice Vivek Aggarwal) की एकलपीठ ने 12 मार्च को पीएससी के सचिव (MPPSC Secretary) को हाजिर होकर जवाब पेश करने के निर्देश दिए हैं. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को अंतरिम रूप से मुख्य परीक्षा में शामिल कराने के निर्देश भी दिए हैं. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता का चयन याचिका के अंतिम निर्णय से बाध्य होगा.
क्या है मामला?
भोपाल के अभ्यर्थी आनंद यादव ने राज्य सेवा परीक्षा, 2023 की प्रारंभिक परीक्षा में पूछे गये 3 विवादित प्रश्नों को चुनौती दी है. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अंशुल तिवारी ने बताया कि फ्रीडम ऑफ प्रेस (Freedom of Press) से जुड़े एक सवाल पर कोर्ट ने विषय विशेषज्ञों की रिपोर्ट तलब की थी. पीएससी की ओर से प्रस्तुत रिपोर्ट को संतोषजनक नहीं पाते हुए कोर्ट ने सचिव को तलब किया है.
कौन प्रश्न थे विवादस्पद?
परीक्षा में पूछा गया था कि भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) कब शुरु हुआ था? और मप्र चुनाव आयोग का गठन (Formation of MP Election Commission) कब हुआ था? इन दोनों प्रश्नों के चार-चार विकल्प दिए गए थे, बाद में पीएससी ने इन चारों विकल्पों को गलत बताते हुए प्रश्न विलोपित कर दिए. इस मामले को लेकर अलग-अलग याचिकाएं हाई कोर्ट की विभिन्न खंडपीठों के समक्ष प्रस्तुत हुई. इसमें कहा था कि दोनों प्रश्नों के दिए गए चारों विकल्पों में से एक उत्तर सही है. इसलिए प्रश्नों को विलोपित नहीं किया जा सकता.
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