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Gwalin Puja on Diwali: बुंदेलखंड में दीपावली पर लक्ष्मी पूजा से पहले क्यों की जाती है ग्वालिन की पूजा?

Bundelkhand में Diwali केवल Lakshmi Puja तक सीमित नहीं है, बल्कि यहां सदियों पुरानी Gwalin Puja की परंपरा भी निभाई जाती है. मान्‍यता है कि बिना ग्‍वालिन पूजा के दीपावली अधूरी रहती है. Sagar district समेत पूरे बुंदेलखंड में मिट्टी की Gwalin idol के आगे 16 दीप जलाए जाते हैं, जो Chandra की 16 कलाओं का प्रतीक हैं. पूजा में wheat grains डालने की परंपरा भी है, जिससे घर में prosperity और ann samriddhi बनी रहती है. यह परंपरा आज भी बुंदेलखंड की cultural identity मानी जाती है.

Gwalin Puja on Diwali: बुंदेलखंड में दीपावली पर लक्ष्मी पूजा से पहले क्यों की जाती है ग्वालिन की पूजा?

Gwalin Puja on Diwali: बुंदेलखंड की धरती अपनी परंपराओं और लोक विश्वासों के लिए जानी जाती है. यहां दीपावली का पर्व केवल रोशनी और लक्ष्मी-गणेश की पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें ग्वालिन की पूजा का भी विशेष स्थान है. ऐसा माना जाता है कि बिना ग्वालिन की पूजा के दीपावली अधूरी रहती है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और आज भी बुंदेलखंड के हर घर, प्रतिष्ठान और मंदिर में पूरे श्रद्धा भाव से निभाई जाती है. 

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बुंदेलखंड के सागर ज‍िले में दीपावली पर ग्वालिन की प्रतिमा के साथ रखे जाने वाले 16 दीप चंद्रमा की सोलह कलाओं का प्रतीक माने जाते हैं. वहीं कई घरों में पांच, सात या नौ दीप भी जलाए जाते हैं, जो प्रकृति के पंच तत्व, नवग्रहों और संगीत के सात स्वरों का प्रतीक हैं. यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि लोकजीवन की वैज्ञानिक और सांस्कृतिक सोच को भी दर्शाती है. 

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ग्‍वाल‍िन पूजा की लोक मान्‍यता

पंडित ब्रजेश दीक्षित बताते हैं कि ग्वालिन को किसान की पत्नी के रूप में पूजा जाता है. दिवाली के समय ही गेहूं की फसल की बुआई शुरू होती है. इसलिए पूजा के दीपों में गेहूं के दाने डालने की परंपरा भी निभाई जाती है. लोक मान्यता है कि ऐसा करने से घर में अन्न की कभी कमी नहीं होती और किसान परिवार पूरे वर्ष समृद्ध रहता है.

अन्न और समृद्धि की प्रतीक है ग्वालिन

ग्वालिन की पूजा को अन्न और समृद्धि की प्रतीक पूजा माना जाता है. बुंदेलखंड के ग्रामीण इलाकों में महिलाएं दीपावली की सुबह या शाम ग्वालिन की मिट्टी की प्रतिमा को सजाकर पूजा करती हैं. पूजा के बाद ग्वालिन के आगे दीप जलाए जाते हैं, जिसमें तेल, बत्ती और गेहूं के दाने डाले जाते हैं. माना जाता है कि यह दीपक वर्षभर घर में सुख, शांति और समृद्धि बनाए रखते हैं. 

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कहा जाता है कि ग्वालिन की पूजा करने से किसान के मान-सम्मान में वृद्धि होती है, क्योंकि वह अन्न की देवी का स्वरूप मानी जाती हैं. इस परंपरा के माध्यम से किसान अपनी भूमि, अन्न और श्रम के प्रति सम्मान प्रकट करता है.

लोक आस्थाओं से जुड़ी यह परंपरा आधुनिक युग में भी अडिग और जीवित है. शहरों में भले ही दीपावली की चमक आधुनिकता में घुल चुकी हो, लेकिन बुंदेलखंड के गांवों में आज भी ग्वालिन की पूजा दीपावली की आत्मा मानी जाती है. यही वजह है कि यहां की हर दीपावली, ग्वालिन के बिना अधूरी मानी जाती है. यह परंपरा आज भी बुंदेलखंड की सांस्कृतिक पहचान बनी हुई है. 

 

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