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This Article is From Oct 15, 2023

Jabalpur: अपने पुश्तैनी काम में हाथ बंटा रहीं प्रजापति समाज की बेटियां, संवारती हैं मां भगवती का रूप

मां भगवती की मूर्ति निर्माण में लगी बेटियों को देखकर आसपास के लोग भी काफी खुश होते हैं, यूं तो बस्ती के ज्यादातर लोगों का पारंपरिक काम यही है, लेकिन बेटियों के इस काम की सराहना आसपास के लोग काफी करते हैं.

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Jabalpur: अपने पुश्तैनी काम में हाथ बंटा रहीं प्रजापति समाज की बेटियां, संवारती हैं मां भगवती का रूप
देवी प्रतिमाओं को मूर्त रूप प्रदान करना इनका पुश्तैनी काम है.

Shardiya Navratri: शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ रविवार से हो रहा है. अगले 9 दिनों में मां शारदा के नौ रूपों की पूजा की जाएगी. भारतीय समाज में कन्याओं को देवी का ही स्वरूप माना जाता है. बेटियां आज हर क्षेत्र में पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं. ऐसे में देवी की प्रतिमाओं के निर्माण में वे कैसे पीछे रह सकती हैं. जबलपुर में प्रजापति समाज की बेटियां अपने पुश्तैनी काम को बखूबी अंजाम दे रही हैं और आदिशक्ति की प्रतिमाओं को मूर्त रूप दे रही हैं. 

जबलपुर में मूर्ति बनाने में अपने परिवार की मदद करने वाली श्रुति प्रजापति बीएससी फाइनल की छात्रा हैं. उनके साथ पढ़ने वाली सहेलियों ने नवरात्रि पर मंदिरों के दर्शन, गरबा से लेकर सड़कों पर उमड़ने वाली भीड़ का हिस्सा बनकर मौज मस्ती का प्लान बना रखा है, लेकिन श्रुति के मन में देवी की आराधना का खयाल है. श्रुति के लिए शारदीय नवरात्रि का अलग ही महत्व है. हजारों लोगों की आस्था का केंद्र बनने वाली देवी प्रतिमाओं को मूर्त रूप प्रदान करना इनके पिता का पुश्तैनी काम है. बड़ी बात यह है कि बचपन से इस काम को देखते-देखते  श्रुति भी इस काम में निपुण हो गई हैं. अब वे इस काम में अपने परिवार का हाथ बंटाती हैं.

युवा पीढ़ी को अपने पुश्तैनी काम से भागना नहीं चाहिए

मूर्ति बनाने के काम में श्रुति की बड़ी बहन साक्षी भी पीछे नहीं हैं. एमए कर रहीं साक्षी यूं तो पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों को ट्यूशन भी देती हैं, लेकिन त्योहारी सीजन में गणेश और देवी प्रतिमा बनाने के काम भी करती हैं. साक्षी का कहना है कि यह काम करते हुए हमने अपने दादा को देखा और पिताजी को भी इस काम को करते देखा है. साक्षी कहती हैं कि युवा पीढ़ी को अपने पुश्तैनी काम से भागना नहीं चाहिए, भले ही मैं लड़की हूं, पर इस काम को करने के बाद जो संतुष्टि मिलती है उसकी बात ही अलग है. हमारे पिता ने यही काम करके हमें पाला-पोसा है, हमारा कर्तव्य है कि हम उनका हाथ बटाएं.

देवी प्रतिमाओं को मूर्त रूप प्रदान करना इनका पुश्तैनी काम है.

यहां की बेटियां मूर्ति निर्माण के साथ इनका श्रृंगार भी करती हैं.

लोगों से मिलता है फीडबैक

इसी परिवार की अंजलि कहती हैं कि आखिर जब लड़कियां हर क्षेत्र में बराबरी की बात करती हैं तो हम मृदा शिल्प के इस हुनर से क्यों परहेज करें, आखिर यह हमारा पुश्तैनी काम है. हम काफी खुशी के साथ मूर्तियों का निर्माण भी करते हैं और श्रृंगार भी. जब समितियों में हमारी बनाई मूर्तियां स्थापित होती हैं, तो हम दर्शन करने जाते हैं और लोगों का फीडबैक भी लेते हैं.

बेटियों की मूर्ति कला को देखकर लोग होते हैं खुश

नारायणी की मूर्ति निर्माण में लगी बेटियों को देखकर आसपास के लोग भी काफी खुश होते हैं, यूं तो बस्ती के ज्यादातर लोगों का पारंपरिक काम यही है, लेकिन लोग यह कहने से नहीं चूकते कि भगवती के स्वरूप को चार चांद लगाने में स्वयं शक्ति का स्वरूप इन बेटियों के रूप में काम करता है.

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