
MP Cough syrup Death Case: मध्य प्रदेश में जिस जहरीली कफ सिरफ पीने से 20 से ज्यादा बच्चों की मौत हो जाती, उसकी निर्माता कंपनी के बारे में सरकार को जानकारी तक नहीं थी. तमिलनाडु की दवा कंपनी कई वर्षों से कफ सिरप सहित कई दवाओं का निर्माण करके देश के अलग-अलग हिस्सों में भेज रही है. डॉक्टर की सलाह या कहें सीधे दुकान पर जाकर इन दवाओं को खरीद कर इस्तेमाल किया जा रहा था, इसके बावजूद यह सब केंद्र सरकार की नजरों में नहीं है.
केंद्र सरकार को नहीं पता था कफ सिरप कंपनी का नाम
यह बात जानकर आश्चर्य हो रहा होगा, लेकिन हकीकत में मध्य प्रदेश में जब बच्चों की मौत का मामला सामने आया और जांच दिल्ली तक पहुंची, तो शुरुआत में किसी जहरीले रसायन का पता नहीं चला. लेकिन तमिलनाडु की जांच के बाद जब कंपनी का उत्पादन प्लांट सील कर दिया गया. जब यह जानकारी केंद्रीय अफसरों के पास पहुंची तो वो सन्न रह गए.
सरकारी दस्तावेजों में नहीं दर्ज था 'कोल्ड्रिफ' और 'श्री सन फार्मा' का नाम
दरअसल, नई दिल्ली स्थित एफडीए भवन में जब कंपनी के कागजात खंगाले गए तो पता चला कि कोल्ड्रिफ सिरप और श्री सन फार्मा कंपनी का नाम सरकारी दस्तावेजों में कहीं दर्ज ही नहीं हैं. ऐसे में अब सवाल उठता है कि ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई कंपनी एक दशक से भी अधिक समय से दवा का निर्माण कर रही है और उस दवा को पांडिचेरी, ओडिशा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों भेजा जा रहा, जहां उसकी धड़ल्ले से बिक्री हो रही है. लेकिन केंद्र को जानकारी नहीं है? इस मामले में सवाल पूछने पर केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन की ओर से कहा गया कि कंपनी को लइसेंस तमिलनाडु ने दिया और पांच साल बाद इसे रिन्यू भी कर दिया गया, लेकिन इसकी जानकारी केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन को नहीं दी गई.
नाम न छपने की शर्त पर सीडीएससीओ से जुड़े एक अधिकारिक कहा कि 2011 में तमिलनाडु सरकार ने कंपनी को लाइसेंस दिया और 2016 में उसका नवीनीकरण भी कर दिया, लेकिन राज्य ने कभी भी केंद्र सरकार को दवा कंपनी के बारे में जानकारी नहीं भेजी, जिससे ये सिस्टम से बाहर बनी रही.
कंपनी क्यों नहीं थी सिस्टम में?
अधिकारी ने बताया कि साल 2017 से पहले लाइसेंसिंग की पूरी जिम्मेदारी राज्यों की थी, लेकिन 2017 में नियम बदलाव किया गया जिसके बाद अब केंद्र और राज्य को मिलकर कंपनी का निरीक्षण करना होता है और इसके बाद लाइसेंस दिया जाता है. वहीं 2017 से पहले जिन कंपनियों का लाइसेंस मिल चुका है, वो इस नियम के दायरे में नहीं आती हैं. यही वजह है कि तमिलनाडु की यह कंपनी श्री सन फार्मा निगरानी में नहीं आई.
कैसे हुआ कंपनी का खुलासा?
मध्य प्रदेश में जब बच्चों की मौत का मामला सामने आया तो केंद्र और राज्य की टीमों ने छिंदवाड़ा जाकर अलग-अलग दवाओं के 19 सैंपल लिए. इसमें से छह सैंपल की जांच केंद्रीय टीम ने की, जबकि 13 सैंपल की जांच मध्य प्रदेश के औषधि नियंत्रण विभाग को मिली.
जांच की प्रक्रिया 29 सितंबर से 2 अक्टूबर तक चली. हालांकि तब तक कफ सिरप में डायथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) का पता नहीं चल पाया. इसके अलावा केंद्रीय टीम के 6 और MP FDA के तीन सैंपल की जांच में किसी भी जहरीली पदार्थ की पृष्टी नहीं हुई. इसके बाद मध्य प्रदेश सरकार ने 'कोल्ड्रिफ' और 'श्री सन फार्मा' की जांच करने के लिए तमिलनाडु सरकार को पत्र लिखा.
3 अक्टूबर की रात तमिलनाडु ने बताया कि कंपनी के कफ सिरप में जानलेवा रसायन डायथिलीन ग्लाइकॉल की मात्रा 48% पाई गई, जो कि तय सीमा 0.1% से काफी ज्यादा है. इसलिए फैक्ट्री को सील कर दिया गया है. इस एक्शन के बाद केंद्र सरकार को पहली बार कंपनी का नाम पता चला.
केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि हमारे पास तब तक कंपनी और दवा का कोई रिकॉर्ड नहीं था. ऐसे में संभव है कि दूसरे राज्यों को भी इसकी सूचना नहीं हो, इसलिए जब अलर्ट जारी किया गया तो अन्य राज्यों ने भी इस दवा पर बैन लगाना शुरू किया.
श्रीसन जैसी देश में कितनी कंपनी?
सीडीएससीओ के अधिकारी ने बताया कि अभी कुछ भी कहना सही नहीं है. लेकिन सीडीएससीओ ने सभी राज्यों से उनके यहां की कफ सिरप निर्माता कंपनियों की लिस्ट मांगी है. इसके बाद देश की इन सभी कफ सिरप निर्माता कंपनियों का ऑडिट किया जाएगा.
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