
Climbing Mobile Tower: मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में अब मांगें मनवाने के दो ही रास्ते बचे हैं, एक धरना प्रदर्शन और दूसरा मोबाइल टावर (Mobile Tower) पर चढ़ जाना. इसमें भी झीलाें का बाजी मार रहा है, क्योंकि भोपाल तो टावर-टॉपिया बन चुका है साहब! यहां टावर पर चढ़ना अब न नाटक है, न विरोध ये अब लोक-कला बन चुका है. कोई वेतन के लिए चढ़ा है, कोई गुटखा खा-खाकर गगन चुम्बन कर रहा है और कोई तो ठेले के लिए जान हथेली पर रखकर नेटवर्क ढूंढने निकल पड़ा. टावर की ऊंचाई जितनी, दुख की गहराई उतनी. अब इन टावरों से सिग्नल नहीं, संवेदनाएं उड़ती हैं. पहले लोग मन्नत के धागे बांधते थे, अब गुस्से के तागे लेकर ऊपर चढ़ जाते हैं. आइए देखते हैं भोपाल के कुछ मामले.
सैलरी के लिए टावर पर चढ़ गए
11 जनवरी : विनोद कुमार भोपाल के भदभदा घाट की बस्ती में रहते हैं. गार्ड की नौकरी करते थे, मालिक ने 2 महीने की तनख्वाह नहीं दी तो विनोद जी, सीधे पॉलिटेक्निक चौराहे के टावर पर चढ़ गए. वहां से आवाज़ दी 'पैसा दो वरना यहीं 5G बन जाऊंगा!'
विनोद ने दूसरा चुना. ऊपर चढ़े, नीचे उतरवाए गए-तब जाकर मालिक की नींद खुली.
31 जनवरी: बरखेड़ी के विवेक ठाकुर ने साबित कर दिया कि नशा सिर पर चढ़े या आदमी, दोनों का उतरना मुश्किल होता है. साहब मोबाइल नेटवर्क से जुड़ने नहीं, सामाजिक disconnect दिखाने चढ़े थे.
24 फरवरी: कमल यादव टावर पर चढ़े, क्योंकि पुलिस उनके मूंगफली के ठेले को रोज़ ठेले देती थी. ऊपर से कहा- 'अब या तो ठेला मिलेगा, या मैं आसमान से मूंगफली बरसाऊंगा! लोग भी समझे -ग़लती उनकी नहीं, मूंगफली की थी.बेचारे को समझ नहीं आया कि अब व्यावसायिक समस्याओं का हल व्यापार मंडल से नहीं, वर्टिकल स्केलिंग से होगा.
10 मार्च: आसाराम चौराहे के कमलेश यादव ने पारिवारिक तनाव को ऊंचाई दे दी. कुछ लोग समस्या के हल के लिए थाने जाते हैं, भोपाल में लोग टावर की छत पर जाते हैं!"
भारत टॉकीज के पास राजू जी 80 फीट ऊंचे टावर पर गुटखा खा रहे थे. ऊपर से जनता को लाइव डेमो दे रहे थे कि गुटखे के साथ अगर हाइट हो, तो नशा सरकारी हो जाता है. एक हाथ में गुटखा, दूसरा में टावर. गुटखा खा रहे थे और सिस्टम को चबा रहे थे.
पुलिस-नगर निगम आमने-सामने
सरकार की एजेंसियों के बीच टावर की जिम्मेदारी टेबल टेनिस की गेंद बन चुकी है. पुलिस कहे 'हमारा नहीं', नगर निगम बोले 'हमसे ना हो पाएगा', टावर वाले बोले 'हम तो नेटवर्क देते हैं, समाधान नहीं.
भोपाल महापौर मालती राय ने कहा कि टावर हमारी जिम्मेदारी नहीं है- अब जनता को भी चाहिए कि वे टावर पर चढ़कर समस्या का समाधान ना ढूंढें. शायद खस्ताहाल नगर निगम मन ही मन निगम सोच रहा है-अगली बार चढ़े तो टिकट लेकर चढ़ना पड़ेगा!
भोपाल के विभिन्न पुलिस स्टेशन के आंकड़े क्या कहते हैं?
- 2020 – भोपाल में टावर पर 20 लोग चढ़े
- 2021 – 24 मामले
- 2022 – 16 केस
- 2023 – 12 मामले
- 2024 – में 36 चढ़े (सबसे ऊंची उड़ान)
- 2025 – अप्रैल में अबतक 16 टॉवर-कूद केस आ चुके हैं
सबसे ज्यादा कूद-भाग वाले टावर की बात करें तो बैरागढ़, भारत टॉकीज, एमपी नगर, पॉलीटेक्निक चौराहा, बोर्ड ऑफिस क्षेत्र में हैं. जबकि भोपाल में पुलिस और निजी एजेंसियों के मिलाकर 345 टावर हैं.
पुलिस परेशान
ऐसे मामलों में सबसे ज़्यादा मेहनत पुलिस की होती है-फोन 100 नंबर पर जाता है, फिर दौड़ता है थाना. एक आदमी को मनाने के लिए 12 पुलिसकर्मी लगते हैं, और बाक़ी लोग वीडियो बनाने में. हालत ये है कि देश में सबसे ज्यादा टावर पर चढ़ने की घटनाएं मध्य प्रदेश में हो रही हैं. पुलिस के सर्विलांस और वायरलेस टॉवर पर सबसे ज्यादा लोग चढ़ रहे हैं जिनमें फेंसिंग नहीं हैं. निजी एजेंसी के टॉवर पर फेंसिंग के चलते घटनाएं नहीं होती.
पुलिस का क्या कहना है?
एडिशनल सीपी अवधेश गोस्वामी का कहना है कि "इस तरह की घटनाओं की बढ़ोतरी हुई है लोगों की समस्या अलग-अलग तरह की रहती हैं, लोगों को समझा-बुझा कर उतरा जाता है, काउंसलिंग की जाती है, सभी एजेंसी मिलकर काम करती है. हर किसी की समस्या अलग और हर समाधान की ऊँचाई एक जैसी-टावर जितनी! हम उतार लेते हैं, समझा लेते हैं, पर टावर लगवाने वाले गायब हैं!"
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